दिनेश निगम ‘त्यागी’
छतरपुर जिले की मलेहरा विधानसभा सीट परंपरागत तौर पर भाजपा की है। 1962 से लेकर अब तक अपवाद छोड़ दें तो यहां से भाजपा का विधायक चुनकर ही विधानसभा पहुंचता रहा है। 1998 में कांग्रेस के टिकट पर लड़े प्रद्युम्न सिंह लोधी ने भाजपा को झटका देकर जीत दर्ज की थी। बागी होकर अब वे भाजपा में शामिल हो गए। उनके इस्तीफे के कारण मलेहरा सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। भाजपा ने पूर्व विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी को ही अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने यहां भाजपा के नहले पर दहला जड़ा है। पार्टी ने मानस प्रवचन करने वाली भगवधारी रामसिया भारती को मैदान में उतार कर मुकाबले को रोचक तो बनाया ही, भाजपा के सामने कड़ी चुनौती प्रस्तुत कर दी है। प्रद्युम्न की तरह रामसिया भी लोधी समाज से हैं।
लंबे अंतराल बाद ही जीते दूसरे दल….
मलेहरा विधानसभा सीट के मिजाज पर नजर डालें तो यहां से आमतौर पर भाजपा ही चुनाव जीतती रही है। हालांकि भाजपा को बीच-बीच में झटका भी मिला है। 1962 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के दशरथ जैन जीते इसके बाद 1980 में भाकपा के कपूरचंद घुवारा ने भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ा। इसके बाद फिर भाजपा दो चुनाव जीती लेकिन 1993 में उमा यादव ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज कर भाजपा के विजय रथ को रोका। इसके बाद 1918 में कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और अब उनके इस्तीफे के कारण ही इस सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। यहां से एक चुनाव उमा भारती की पार्टी भाजश से रेखा यादव भी जीत चुकी हैं। उमा भारती खुद मुख्यमंत्री रहते यहां से विधायक बनी थीं।
लोधी, यादव, दलितों के निर्णायक वोट….
लगभग सवा दो लाख मतदाताओं वाली मलेहरा सीट में लोधी, यादव एवं दलित वर्ग के मतदाता सर्वाधिक व निर्णायक भूमिका में हैं। 1980 में कपूरचंद घुवारा को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो यहां से लोधी तथा यादव प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहे हैं। क्षेत्र में लोधी मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार एवं यादव 35 हजार के आसपास हैं। दलित और आदिवासी वर्ग के भी लगभग 45 हजार वोट हैं। अंचल में क्षत्रियों का दबदबा रहा है लेकिन वे कभी चुनाव नहीं जीते। अलबत्ता, क्षेत्र में क्षत्रिय 7 हजार, ब्राह्मण 10 हजार तथा जैन समाज के भी क्षेत्र में लगभग 10 हजार वोट हैं। जैन समाज के कपूरचंद घुवारा एवं दशरथ जैन यहां से चुनाव जीत चुके हैं।
भाजपा में भितरघात के स्वर ज्यादा….
मलेहरा के उप चुनाव में भाजपा के अंदर से भितरघात के स्वर ज्यादा सुनाई पड़ रहे हैं। प्रद्युम्न के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से पूर्व विधाायक रेखा यादव एवं प्रद्युम्न सिंह से पिछला चुनाव हारीं पूर्व मंत्री ललिता यादव के असंतोष का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है। 2018 में भाजपा ने रेखा यादव का टिकट काटकर ललिता यादव को छतरपुर से मलेहरा ट्रांसफर किया था। नतीजे में भाजपा दोनों सीटें हार गई थी। कांग्रेस से दगाबाजी करने के कारण लोधी मतदाता भी इस बार नाराज है। कांग्रेस ने लोधी समाज की साध्वी रामसिया को टिकट देकर इसे भुनाने की कोशिश की है।
कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में नाराजगी….
भाजपा जैसी स्थिति कांग्रेस में भी हैं। रामसिया को प्रत्याशी बनाने से मलेहरा के स्थानीय कांग्रेसी नेता नाराज हैं। सबसे ज्यादा खतरा कांग्रेस से दावेदार रहे आनंद सिंह एवं मंजुला देवड़िया से है। कांग्रेस इस बार यहां से स्थानीय प्रत्याशी की मांग कर रही थी लेकिन यह मांग पूरी नहीं हुई। हालांकि मंजूला देवड़िया को मनाने में पार्टी सफल होती दिख रही है लेकिन आनंद सिंह बागी तेवर अपनाए हुए हैं। तिलक सिंह लोधी को टिकट न देने का नुकसान भी हो सकता था लेकिन रामसिया के कारण यह थम सकता है।
विकास, पिछड़ापन व बगावत मुद्दा….
मलेहरा में अधिकांश समय भाजपा का कब्जा रहा। मुख्यमंत्री रहते उमा भारती ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। बावजूद इसके क्षेत्र पिछड़पन से उबर नहीं पाया। कांग्रेस प्रद्युम्न की पार्टी की साथ गद्दारी और इस पिछड़ेपन को लेकर मैदान में उतरने की तैयारी में है। इसके विपरीत प्रद्युम्न लोधी विकास के मुद्दे को लेकर प्रचार अभियान चला रहा है। एक तरफ उनका कहना है कि कमलनाथ सरकार के रहते क्षेत्र में कुछ नहीं हुआ। दूसरी ओर वे बता रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनते ही विकास के कई काम शुरू हो गए। इस तरह विकास, पिछड़ापन, बेरोजगारी एवं पार्टी से गद्दारी उप चुनाव में प्रमुख मुद्दे के तौर पर उभर रहे हैं।
भाजपा की ताकत और कमजोरी….
मलेहरा क्षेत्र में भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका गांव-गांव तक फैला प्रतिबद्ध मतदाता और कार्यकर्ता है। आमतौर पर उमा भारती की पंसद के प्रत्याशी को भाजपा यहां से टिकट देती रही है। इस बार भी ऐसा ही है। उमा खुद यहां से विधायक रहीं और उनके बड़े भाई स्वामी प्रसाद लोधी भी। इस लिहाज से उमा भाजपा के लिए तुरुप का इक्का हैं। भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि पहली बार पार्टी ने बाहरी के साथ दूसरी पार्टी से आए नेता को प्रत्याशी बना दिया। इसकी वजह से भाजपा नेता व कार्यकर्ता बागी प्रत्याशी के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे हैं।
कांग्रेस की ताकत और कमजोरी….
कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी पिछला चुनाव बड़े अंतर से जीते थे जबकि आमतौर पर कांग्रेस यहां जीत भले नहीं लेकिन कम अंतर से हारती रही है। कांग्रेस की ताकत यह है कि पार्टी से बगावत करने के बावजूद क्षेत्र के आम कार्यकर्ता ने पाला नहीं बदला, वह कांग्रेस में ही है। दूसरा, भाजपा से नाराज यादव मतदाता इस बार कांग्रेस का साथ दे सकता है। तीसरा, कांग्रेस ने एक साध्वी को मैदान में उतारा है जो लोधी समाज से हैं। उन्हें समर्थन मिलता दिख रहा है। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उमा भारती की तरह पार्टी के पास ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है जो चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखता हो। दूसरा, स्थानीय प्रत्याशी के मुद्दे पर कांग्रेस के कुछ नेता बगावती तेवर अपनाए हैं।