दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों के उप चुनाव के लिए बाहर से देखने में कांग्रेस खासी सक्रिय दिखाई पड़ती है। जीतने वाले प्रत्याशी तय करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा तीन सर्वे कराने की चर्चा है। प्रचार अभियान की रणनीति बनाने कई बैठकें हुई हैं और प्रमुख नेताओं को जवाबदारी सौंपी गई है। इस दौरान कांग्रेस ने जैसे अभियानों की घोषणा की उन्हें देखकर लगा कि भाजपा और सरकार को चौतरफा घेरने की योजना पर काम शुरू हो गया है।
कमलनाथ सहित कांग्रेस के प्रमुख नेता यह सोचकर गदगद हैं कि जनता बागियों के खिलाफ है। इसलिए उप चुनाव में पार्टी की जीत तय है। सरकार जाने के बाद से कमलनाथ, दिग्विजय सिंह सहित कई नेताओं ने भाजपा एवं सरकार के खिलाफ ट्वीटर एवं बयानाबजी का युद्ध छेड़ रखा है। पर मैदान में जाने पर लगता है कि कांग्रेस की पूरी तैयारी कागजी है। उसके द्वारा शुरू किए गए सारे अभियान सिर्फ बयानों तक सीमित हैं। मैदान में ये टॉय-टॉय फिस्स हैं। इसके विपरीत भाजपा अपनी स्टाइल में मैदान में उतर गई है। कांग्रेस ने भी मैदानी मोर्चा नहीं संभाला तो उप चुनावों के नतीजे उसके लिए घातक साबित हो सकते हैं।
कहीं नहीं दिखा ‘गद्दी छोड़ो’ अभियान….
कमलनाथ द्वारा बुलाई एक बैठक में भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदेश भर में ‘गद्दी छोड़ो’ अभियान चलाने का निर्णय लिया गया था। तय हुआ था कि कांग्रेस भाजपा को संभलने का मौका नहीं देगी। ‘गद्दी छोड़ो’ अभियान जिला से लेकर ब्लाक एवं बूथ स्तर तक चलना था। अभियान से हर गांव व घर को जोड़ा जाना था। यह अभियान सिर्फ घोषणाओं तक सीमित होकर रह गया। प्रदेश के किसी हिस्से में इस अभियान की दस्तक सुनाई नहीं पड़ी।
‘रोजगार दो’ अभियान का भी बुरा हश्र….
बेरोजगारी को लेकर अभियान चलाने की जवाबदारी युवा कांग्रेस ने अपने कंधों में ली है। इसके शुभारंभ के लिए युकां के राष्ट्रीय अध्यक्ष भोपाल आए थे। इसे हर प्रदेश में चलाया जाना था। प्रदेश में चूंकि 27 सीटों के लिए उप चुनाव होना है। इसलिए इसे यहां ज्यादा गति देने की योजना बनी। यह सोशल मीडिया में चलना था और मैदान में भी। प्रदेश युकां ने अभियान का नाम ‘रोजगार दो’ रखा। संगठन ने इसे प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों में चलाने की घोषणा की थी। इसके तहत सोशल मीडिया में वीडियो अपलोड कर सरकार से रोजगार की मांग करना थी। मांग अलग अलग क्षेत्रों के युवा करते दिखने वाले थे। इस अभियान का हश्र भी गद्दी छोड़ो अभियान की तरह हुआ। इसका असर किसी क्षेत्र में दिखाई नहीं पड़ रहा। यह भी टॉय-टॉय फिस्स होता दिख रहा है।
मंत्रिमंडल की संख्या नहीं बन सका मुद्दा…
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब मंत्रिमंडल में 28 मंत्रियों को शामिल किया, तब कांग्रेस का कहना था कि मंत्रिमंडल में शामिल सदस्यों की संख्या संवैधानिक व्यवस्था से ज्यादा है। मंत्रिमंडल में कुल 34 मंत्री हो गए हैं, विधानसभा में सदस्यों की संख्या के 15 फीसदी से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते। कांग्रेस का कहना था कि राज्य मंत्रिमंडल में शामिल चेहरों की संख्या विधायकों की कुल संख्या के अनुपात में ज्यादा है। इस कारण प्रदेश में असंवैधानिक हालात बन गए हैं। कांग्रेस ने इसे लेकर भी जनता के बीच अभियान चलाने का निर्णय लिया था। कोर्ट में मामला ले जाने की बात भी हुई थी लेकिन यह अभियान भी ठंडे बस्ते में चला गया।
सिंधिया-शिवराज के मुकाबले गोविंद….
प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों में वैसे तो मुकाबला भाजपा के ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा कांग्रेस के कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह के बीच है लेकिन चंबल-ग्वालियर अंचल में पूर्व मंत्री डा. गोविंद सिंह ने मोर्चा संभाल रखा है। यहां सिंधिया एवं शिवराज के मुकाबले वे ही दिखाई पड़ रहे हैं। भाजपा के नेता कई दौर के दौरे कर चुके हैं। इनके प्रतिद्वंद्वी के तौर पर डा. सिंह ‘नदी बचाओं यात्रा’ निकाल कर चर्चा में हैं। अवैध खनन के खिलाफ निकाली जा रही इस यात्रा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तो शामिल हो ही रहे हैं, जनता का भी अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं को डा. सिंह की तर्ज पर हर क्षेत्र में मैदानी मोर्चा संभालना होगा। तब ही वह उप चुनावों में पार्टी का माहौल बना पाएगी। कागजी अभियानों एवं बयानबाजी से कुछ होने वाला नहीं।