सत्यनारायण जटिया: एक दुर्लभ होती प्रजाति!

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(निरुक्त भार्गव)

वो ही हास-परिहास, तुकबंदी और अपनापन! वे 4 फरवरी को 76 बरस के हो रहे हैं! प्रथम परिचय से लेकर आज तक की यात्रा: एक प्रशिक्षु पत्रकार और एक संसदीय व्यक्तित्व के अनुभवों के बीच की! 3 फरवरी को जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं दीं, तो हाजिर जवाबी सत्यनारायण जटिया चुटकी लेते हैं: 3 के बाद 4 ही आता है! तत्क्षण वे यह भी जोड़ देते हैं, “परस्पर संबंधो का एहसास कराते हैं, ऐसे अवसर और चाहिए भी क्या”…

आज के दौर में किसी भी शख्सियत तो छोडिए, अपने यार अथवा पड़ौसी के बारे में ही कुछ लिखने बैठो तो लोग इसके मायने ढूंढने लग जाते हैं! मगर मैं तो एक राजनीतिक व्यक्ति और उच्च पदों पर आसीन रहे सत्यनारायण जटिया के बारे लिख रहा हूं, बिना किसी स्वार्थ के और बिना उनसे उपकृत हुए! प्रश्न किया जा सकता है कि आज ऐसा क्या हुआ कि उनके साथ के निजी अनुभव को इस तरह से साझा किया जा रहा है! और यह भी कि वर्तमान में तो वे ‘लो-प्रोफाइल’ ज़िंदगी बिता रहे हैं, तो फिर क्या आवश्यकता आ पड़ी उनका जिक्र करने की….

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मैंने उनके बारे में खूब सुन रखा था: बीबीसी रेडियो ने अपनी रिपोर्ताज में ये कह दिया था कि मध्य प्रदेश से लोक सभा में कोई भी बीजेपी सांसद जीतकर पहुंचे या नहीं, पर जटिया जरूर दिल्ली जाएंगे! तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने आसंदी से टिप्पणी की थी कि जटियाजी आपका कद भले ही छोटा हो, पर आपका व्यक्तित्व बहुत ऊंचा है!…इन विशेषणों से लबरेज जटिया जी से पहली मुलाकात तकरीबन 1990 में हुई थी, जब मैं ‘नईदुनिया’ में प्रशिक्षु पत्रकार था. माधव साइंस कॉलेज और विक्रम विश्वविद्यालय के मेरे सहपाठी और ‘विक्रम अवार्डी’ संजय भार्गव (अब दिवंगत) एक तरह से उनके योग और व्यायाम के प्रशिक्षक थे, सो उनके साथ नज़दीकियां बढ़ती गईं.

सिंहस्थ महापर्व-1992 को निकट से देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ और फिर उन दिनों का संसर्ग भी, जब जटिया जी अद्भुत कार्य किया करते थे! उन्होंने वर्ष 1992 के आखिर में महिदपुर में तीन दिवसीय शिविर लगाया था. अलसुबह प्रभातफेरी, फिर श्रमदान कर बपैय्या, कोयल आदि सुदूर ग्रामीण अंचल में लोगों के साथ मानव श्रृंखला के रूप में सड़क और नाली बनाना…संजय, मैं, हमारे सहपाठी जावेद कुरैशी (पूर्व पार्षद) और बहादुर सिंह चौहान (वर्तमान विधायक) भी पीछे नहीं रहते थे. अपराह्न सत्र में सुंदर सिंह भंडारी, माखन सिंह चौहान जैसे दिग्गज चिंतकों के उद्बोधन. फुर्सत के क्षणों में जटिया जी को कविता और लेखन कार्य करते देखना, उनकी हैण्ड राइटिंग और शब्द विन्यास के कायल वरिष्ठ पत्रकार ही नहीं, बल्कि विरोधी दल के नेता भी हुआ करते थे…

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शायद इन्हीं ‘इनहेरिटेड’ कारकों के चलते वे अटल जी और आडवाणी जी के दुलारे थे, तो आरएसएस के भी उतने ही प्यारे! ‘लेट’ 1990 के दौर में वो देश के श्रम मंत्री और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री बने. शपथ लेते ही उनके अभिन्न सहयोगी राजेंद्र शिंदे ने टेलीफोन लाइन मिलाते हुए रिसीवर उन्हें दे दिया: बात पक्की हो गई, वे अगली सुबह इंटरसिटी एक्सप्रेस से उज्जैन लौट रहे हैं, हमें ट्रेन से नागदा पहुंचना है और वहां से उज्जैन आते-आते उनका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करना है, ‘फ्री प्रेस’ के लिए!

इसके बाद वो मेरे लिए ‘दादा’ बन चुके थे और आज तक असंख्य लोगों में इसी संबोधन से जाने जाते हैं! 2 बार के विधायक, 7 बार के लोक सभा सदस्य और 1 बार के राज्य सभा सदस्य: 1970 से उनका ये सफ़र 2020 तक जारी रहा. वे प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे, लेकिन मजाल है कि कभी उनके बर्ताव में कोई बदलाव दिखा हो! ये बात जरूर है कि कोरोना की दूसरी लहर में वो स्वयं और परिजन बुरी तरह चपेट में आ गए. दिल्ली में लम्बा इलाज चला, महाकाल जी की कृपा से सभी लोग भले-चंगे होकर उज्जैन आ गए हैं! नीमच जिले की जावद तहसील के एक अत्यंत साधारण परिवार से निकलकर एक उच्च मुकाम को हासिल करना! बावजूद इसके हमेशा विनम्र, फिट और एक्टिव बने रहना! क्या आप सहमत हैं कि इस प्रकार के लोग दुर्लभ हो चले हैं…..