हिंदू धर्म में तुलसी को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि माता का स्वरूप माना गया है। यह पौधा न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है, बल्कि भगवान विष्णु की पूजा में इसका अत्यंत विशेष स्थान है।
यही कारण है कि तुलसी के बिना वैष्णव पूजा अधूरी मानी जाती है। लेकिन सावन के महीने में, जब शिव भक्ति का विशेष महत्व होता है, तुलसी के पौधे से जुड़े कुछ धार्मिक नियमों का पालन करना आवश्यक हो जाता है।

सावन में क्यों नहीं तोड़नी चाहिए तुलसी की पत्तियां?
श्रद्धालुओं के लिए यह जानना जरूरी है कि सावन के महीने में तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित माना गया है। यह समय शिव उपासना का होता है, लेकिन इसी समय भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। माना जाता है कि जब विष्णु निद्रा में होते हैं, तब तुलसी माता भी विश्राम करती हैं। इसीलिए इस पावन माह में तुलसी को छेड़ना या उसके पत्तों को तोड़ना धार्मिक रूप से अनुचित और अशुभ माना गया है।
धार्मिक ग्रंथों में क्या है उल्लेख
गरुड़ पुराण, पद्म पुराण और विष्णु धर्म सूत्र जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। यह काल तुलसी का ‘निद्रा काल’ माना जाता है और इस दौरान उसे छेड़ने से पाप का भागी बनना पड़ सकता है।
प्रकृति के भी हैं अपने नियम
हिंदू दर्शन के अनुसार पेड़-पौधों को चेतन, जीवित और पूजनीय माना जाता है। सावन के महीने में अत्यधिक वर्षा के कारण तुलसी की ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता घट जाती है। ऐसे में तुलसी माता ध्यान और तपस्या में लीन मानी जाती हैं। इस स्थिति में उन्हें छेड़ना या उनका पत्ता तोड़ना प्रकृति के नियमों के भी विरुद्ध होता है।
तुलसी से शिव पूजा हो सकती है निष्फल
शिव पूजा में तुलसी का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है। सावन के दौरान शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र आदि चढ़ाए जाते हैं, लेकिन यदि अनजाने में तुलसी चढ़ा दी जाए, तो पूजा का फल प्राप्त नहीं होता। यह शिव भक्ति के नियमों का उल्लंघन माना जाता है और ऐसी पूजा निष्फल हो जाती है।
Disclaimer : यहां दी गई सारी जानकारी केवल सामान्य सूचना पर आधारित है। किसी भी सूचना के सत्य और सटीक होने का दावा Ghamasan.com नहीं करता।