तुम बिन नही है कोई भारत का रखवाला

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नितिनमोहन शर्मा

है मोहन…आपका आगमन हो गया है इस धरा पर। आप आ गए है इस पुण्य भू पर। उसी आर्यावर्त में, जहाँ आपके आगमन ने सदियों से चली आ रही अराजकता ओर आतंक का अंत कर दिया था। नैराश्य का नाश कर दिया था। निश्चल निर्मल ओर निस्पर्ह प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक बने थे न तुम। संग संग स्वामीनी श्रीराधे भी थी। यमुना पुलिन का वो बंसी वट भी आपके लिए लालायित है जहां आपकी वेणु ने मधुर स्वर लहरिया छेड़ी थी।

है गोपाल.. वो गो धन भी आपकी बाट जोह रहा है जिसे तुम पूजने का कह गए थे। अब उनका कोई धणी धोरी नही प्रभु। उपयोगिता खत्म होते ही वे खत्म किये जा रहे है। बड़ी निर्ममता से। उनके मालिक ही उन्हें कसाई खाने छोड़ रहे है। आपकी गैया मैया की कातर आंखों में अश्रुबिन्दु है कान्हा। समाज को भी उनकी चिंता नही। शहरी समुदाय में तो अब गोधन…ढोर कहला रहे है। सरकारें उन्हें समाज जीवन से दूर जंगलों में छोड़ रही है। भूख प्यास से दम तोड़ती गो माता का कारुणिक रुदन आपके कानो तक पहुंच रहा है न गोपाल? तो अब मत जाओ इनको छोड़कर। आप इनके सर्वेश्वर है प्रभु। आप रहेंगे तो ये फिर से सम्मान पा जाएंगी। अन्यथा सरकारों के महंगे स्लॉटर हाइस में सरियों में फंसाकर उलटी टांग दी जाएगी भगवन।

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है मधुसूदन… जाओ मत उस देश से जहां कभी आपने भरी सभा मे द्रोपदी की लॉज बचाई थी। रुक्मणि के संकल्प की रक्षा की थी। बृषभानु लली के श्रीचरणों को महावर से सजाया था और वो महारास भी तो रचाया था जिसमें गोपियों के अभीष्ट की पूर्ति हुई थी। अब ये सब तो आपको नजर नही आएंगे लेकिन प्रभु नारी की बहुत बुरी गत बनी हुई है।
अब भी आपकी ऐसी ही जरूरत है भगवन जैसी कौरवों की सभा मे द्रोपदी चीरहरण के समय थी। ऐसा दिन तो दूर, मिनिट-घड़ी नही बीतती जब इस देश के किसी हिस्से में द्रोपदी समान नारी न सताई जाए। कही उसका शील भंग हो रहा है तो कही उसकी मान मर्यादा। जिंदा भी वो जला दी जाती है।

है करुनानिधान अब तो इस धरा पर मासूम बच्चियां ओर बुजुर्ग मैया भी सुरक्षित नही। नराधमों को आपका भय नही प्रभु। वे नारी शक्ति के साथ विभत्स से विभत्स कृत्य कर रहे है प्रभु। अबकी बार रुक जाओ…ओर इनकी खबर लो प्रभु। कानून कायदे तो इनकी जमानत करवा देते है। और ये फिर अट्टहास करते है। है योगेश्वर… अब आ गए हो तो जाओ मत। तुम्हारा भारत फिर से उसी दुर्दिनों का सामना कर रहा है जो द्वापर में थे। इस कलियुग के हाल भी द्वापर से ज्यादा बेहाल है। वर्तमान का युग भी तो आप ही स्थापित कर के गए थे न? आपके प्रस्थान के बाद जम्बू द्वीप वाला भारत, आप वाला भारत नही रहा।

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है नंद जू रे लाल…संकट में है आज वो धरती..जिस पर तुमने जन्म लिया। और मोहन तुम तो जानते हो न कि इस भारत का तुम बिन कोई रखवाला नही है। तुम बिन भारत के हाल वैसे ही बेहाल है, जेसे तुम्हारे गोकुल छोड़कर जाने पर बृज मंडल हुआ था। भारत का सांस्कृतिक पतन तेजी से हो रहा है। राजनीति तो रसातल में जा रही है प्रभु ओर धर्मनीति अधर्म का साथ दे रही है। अर्थ नीति धूल धूसरित हो चली है। दंड नीति पैसे वाले के खिंसे में खिसक गई है।

है कन्हैया…न्याय पाना अब आसान नही रहा। सब तरफ अन्याय और अत्याचार का बोलबाला है। राजा का आचरण अंधा बाटे रेवणी जैसा हो गया है। जनता के सेवक, जनता के मालिक हो गए है। बेईमानी नस नस में समा रही है। कोई भी अपने पेशे के प्रति ईमानदार नही। अब तो कलम तक बिक गई बनवारी। हुक्मरानों का वैभव आसमान छू रहा है। और प्रजा…वो तो बस आपकी तरफ बड़ी उम्मीद से टुकर टुकुर देख रही है।

है केशव…सब उम्मीदें बस अब आपसे ही है। आप हमे अब मत छोड़कर जाओ। द्वापर में भी आप हमें ऐसे ही छोड़कर चले गए थे। फिर पलटकर ही नही आये। अपना गोकुल, अपना बंसी वट, अपने कुंज निकुंज, अपनी दान घाटी, सांखरी खोह, गोविंद कुंड, अप्सरा कुंड, मानसी गंगा, चन्द्र सरोवर… ओर अपनी कनुप्रिया राधे रानी। सब छोड़कर चले गए। ये सब आपको याद कर रहे है। इनका विरह भी 5 हजार साल से ज्यादा हो गया है और हम सबका भी।

है नंदनंदन…
है नंदकिशोर….
आपको तो पता है न…संकट में है आज भरत भू। आपने कहा भी तो था…यदा यदा ही धर्मस्य…..!!! तो प्रभु सब हालात वैसे ही है जो आपके पुनः प्राकट्य के लिए कहे गए थे।
तो है माधव…रुक रहे हो नअबकी बार। कही जाना नही। क्योंकि तुम बिन नही है मोहन कोई भारत का रखवाला….!!!