डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने भाषण में एक अहम घोषणा की। उन्होंने कहा कि वह अमेरिका में घरेलू ऊर्जा उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए नेशनल एनर्जी इमरजेंसी की घोषणा करेंगे। इसके तहत वह जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए जो कदम जो बाइडन ने उठाए थे, उन्हें पलटेंगे। आइए जानते हैं कि यह “नेशनल एनर्जी इमरजेंसी” क्या है, और इसका अमेरिकी ऊर्जा नीति पर क्या असर पड़ सकता है।
चुनाव प्रचार में किया था यह वादा
अपने चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया था कि वह अमेरिका में ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए कदम उठाएंगे। उनका लक्ष्य था कि अमेरिका में तेल और गैस के नए स्रोत विकसित किए जाएं और जो बाइडन द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए गए उपायों को पलट दिया जाए।
ट्रंप का जलवायु परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण
ट्रंप ने हमेशा जलवायु परिवर्तन को एक बड़ा मुद्दा नहीं माना और इसे एक “धोखा” बताया। उनके मुताबिक, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं अमेरिका की ऊर्जा स्वतंत्रता को कमजोर कर सकती हैं। पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के उनके निर्णय ने इस दृष्टिकोण को और मजबूत किया था, क्योंकि उनका मानना था कि यह समझौता अमेरिका के आर्थिक हितों के खिलाफ है।
क्या बदलेगा? पारंपरिक ऊर्जा को मिलेगी प्राथमिकता
नेशनल एनर्जी इमरजेंसी के तहत ट्रंप पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों जैसे तेल और गैस को प्राथमिकता दे सकते हैं। इसका सीधा असर नवीनीकरण ऊर्जा सेक्टर पर पड़ेगा, जो बाइडन प्रशासन के समय ऊर्जा उत्पादन के नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा दिया गया था। अगर ट्रंप अपनी नीतियों को लागू करते हैं तो नवीनीकरण ऊर्जा सेक्टर को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे टैक्स क्रेडिट्स का समाप्त होना।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती मांग और ऊर्जा संकट
ट्रंप का कहना है कि नेशनल एनर्जी इमरजेंसी इसलिए जरूरी है ताकि अमेरिका की ऊर्जा उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सके, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के तेजी से बढ़ते उपयोग को देखते हुए। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऊर्जा की मांग दोगुनी हो सकती है, और इसके लिए उन्हें बड़े AI प्लांट्स के संचालन के लिए पर्याप्त ऊर्जा की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रपति के विशेषाधिकार का इस्तेमाल
नेशनल एनर्जी इमरजेंसी की घोषणा के लिए राष्ट्रपति को 150 से ज्यादा अधिकार मिलते हैं, जिनका इस्तेमाल वह प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवादी हमलों या अन्य संकटों से निपटने के लिए कर सकते हैं। ट्रंप इस अधिकार का इस्तेमाल ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए कर सकते हैं। हालांकि, उनके पहले कार्यकाल में कुछ फैसलों को बाद में वापस लिया गया था, जैसे कोल और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को चालू रखने का निर्णय।
क्लाइमेट इमरजेंसी पर असर
यदि ट्रंप पेरिस जलवायु समझौते से फिर से बाहर निकलते हैं, तो इससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को गंभीर धक्का लगेगा। पेरिस समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना और 2100 तक धरती के तापमान को 2 डिग्री से अधिक न बढ़ने देना है। ट्रंप के इस कदम से न केवल अमेरिका के पर्यावरणीय प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका असर देखने को मिलेगा।