धार्मिक दृष्टि से माघ मास की इस सप्तमी का बड़ा ही महत्व है। इसे माघी सप्तमी, रथ सप्तमी, भानु सप्तमी, पुत्र सप्तमी, महती सप्तमी और सप्त सप्तमी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण और भविष्य पुराण में इस सप्तमी व्रत की बड़ी महिमा बतायी गई है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान सूर्य की प्रथम किरण माघ मास की सप्तमी को ही पृथ्वी पर आई थी। इसलिए इसे सूर्यदेव का जन्म दिवस भी मानते हैं।माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी 28 जनवरी शनिवार को है। इस व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस सप्तमी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करता है और सूर्यदेव का व्रत रखता है वह पाप मुक्त होकर उत्तम लोक में स्थान पाता है।
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क्या कहता है पंचांग
पंचांग की गणना के अनुसार माघ मास की सप्तमी तिथि 27 जनवरी को 9 बजकर 11 मिनट से लग गई है। और 28 जनवरी को सुबह 8 बजकर 44 मिनट तक सप्तमी तिथि व्याप्त रहेगी। पद्मपुराण में बताया गया है कि जिस दिन सूर्योदय काल में सप्तमी तिथि होगी उसी दिन माघी सप्तमी का व्रत पूजन किया जाना शास्त्र सम्मत होगा। इसी नियम के अनुसार 28 जनवरी को ही माघी सप्तमी का व्रत पूजन किया जाएगा। 27 जनवरी को सप्तमी तिथि सूर्योदय से बाद लगने से इस दिन माघी सप्तमी का व्रत शास्त्र सम्मत नहीं है।
माघी सप्तमी मुहूर्त
माघी सप्तमी पर स्नान का विधान पद्म पुराण में इस प्रकार बताया गया है कि अरुणोदय होने पर यानी सूर्य की प्रथम लाली दिखने पर सात बेर और आक के पत्ते सिर पर रखकर भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। ओम सूर्याय नमः, ओम भास्कराय नमः, ओम आदित्याय नमः, ओम मार्तण्डाय नमः मंत्र बोलते हुए स्नान करें।