समीक्षा तैलंग। खारा पानी आंसुओं को कहा जाता है इसलिए आंखों की तुलना समुंदर की गहराई से की जाती है जिसमें रहस्य से भरी एक अलग दुनिया होती है।
इन रहस्यों का उद्घाटन परत दर परत करने में आज भी लोग लगे हैं लेकिन उन्हें पूरी सफलता हासिल नहीं हो पायी है। एक जीवन में सारे रहस्यों से परदाफाश हो जाए तो सात जनम की व्याख्या बेवजह ही रहेगी। सात समुंदर जैसे सात जनम।
रहस्यों का पानी में डूबा होना, सोचकर ही एक रोमांच पैदा करता है। यह रोमांच बना रहे जिससे जीवन को एक उद्येश्य की तरह जिया जा सके। उद्देश्यहीन जीवन धरती पर भार से ज्यादा कुछ नहीं है।
सोचने वाली बात यह है कि पानी रहस्यों की जननी है। इसका मतलब जिस दिन जीवन से पानी खत्म हो जाएगा उस दिन रोमांच और रहस्य जैसे शब्द शब्दातीत हो जाएंगे। वह पानी आंखों का हो या समुंदर का, जीवन को संवेदनशील बनाने का, उसे सहेजने का गुण है। जब गुण ही खत्म हो जाएगा तो हम अवगुणों की व्याख्या कैसे कर पाएंगे।
इससे परे आदमी की मौत का कारण क्या होगा? संवादहीनता। संवेदनशील व्यक्ति ही संवाद करता है। यह संवाद वो अपने मन से, अपनों से, किसी अनजाने व्यक्ति से, प्रकृति से किसी से भी कर सकता है। जब आंखों का पानी सूख जाएगा तो संवाद खत्म हो जाएगा क्योंकि वही क्षण असंवेदनाओं का चरम होगा।
वर्तमान देखकर कभी-कभी लगता है जैसे हम इसी चरम की राह देख रहे हैं। पानी सूखने के बाद शेष बंजर ही बचेगा जबकि हम बेसब्री से उसी पानी की राह देखते हैं। असंवेदनशीलता सूखे की पराकाष्ठा है जिसे हम मानकर भी अनदेखा करते जा रहे हैं।
पानी खुशियां भी लाता है और बाढ भी। जीवन भी देता है और आजीवन भोग भी। इन दो बातों में एक संवेदनाओं के परे है और एक संवेदनाओं के साथ है।
अनुशासन से बाहर पानी भी अपनी सीमाएं लांघकर सबकुछ तहस-नहस कर सकता है। सीमा में रहकर एक खुशहाल जिंदगी भी देता है।
दिक्कत यह है कि मनुष्य यह सब अनुशासन केवल पानी से ही चाहता है, खुद अनुशासन में रहना भूल चुका है। इसलिए पानी नहीं तरस रहा। अब उस पानी की कमी से मनुष्य पानी के लिए तरस रहा है।
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