वाह जी महाराज वाह, संदर्भ राजा- महाराजा संवाद

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वाह जी महाराज वाह, वाह जी महाराज, ये वो शब्द थे जो गुरूवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के बजट भाषण पर हुये धन्यवाद प्रस्ताव पर हुयी बहस के बीच में सुनाई दिये। सुनाने वाले थे कांग्रेस के सांसद दिग्विजय सिंह और सुनाये गये थे बीजेपी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को। राज्यसभा में हुआ ये राजा महाराजा संवाद हम मध्यप्रदेश की राजनीति की समझ रखने वालों के लिये दिलचस्प और कई मायने में निराला है।
हुआ यूं कि जैसी कि सदन की परंपरा है राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर बीजेपी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोदी सरकार का पक्ष लेते हुये सरकारी नीतियों की तारीफ की और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हुये कहा कि जो सपना अटल सरकार ने देखा उसे मोदी सरकार ने पूरा कर दिखाया है।

अपने लंबे भाषण में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोरोना लाकडाउन और इमरजेंसी का जिक्र कर अपनी पुरानी पार्टी को घेरने की कोशिश की। सिंधिया जब भाषण खत्म कर बैठे तो जिसका नाम सभापति वैकेया नायडू ने पुकारा तो सदन में सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी ये नाम था कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का तो इस पर नायडू भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सके और बोल उठे मैंने कोई परिवर्तन नहीं किया जिसका नाम लिस्ट में आया है उसे ही पुकार दिया। बस फिर क्या था हंसते मुस्कुराते दिग्विजय सिहं खडे हुये और बोले कि सभापति जी मैं आपके माध्यम से सिंधिया जी को बधाई देता हूं कि जितने अच्छे ढंग से वो यूपीए सरकार का पक्ष रखते थे उतने ही अच्छे ढंग से उन्होंने आज भाजपा का पक्ष रखा। आपको बधाई हो। और फिर अपने दोनों हाथ उठाकर बोले ,,,वाह जी महाराज वाह,, वाह जी महाराज।

उधर दिग्विजय सिंह के इन व्यंग्य बाणों पर सिंधिया मंद मंद मुस्कुराते रहे और फिर बोल उठे आपका आशीर्वाद बना रहे। इस पर फिर दिग्गी राजा मुस्कुराते हुये बोले वो तो हमेशा रहेगा आप जिस पार्टी में रहें आगे भी जो हो हमारा आशीर्वाद आपके साथ था है और रहेगा। इस राजा महाराजा संवाद पर पूरा सदन ठहाका लगाकर हंस पडा और इस ठहाके की गूंज दूर मध्यप्रदेश तक सुनाई देती रही। इस दुर्लभ संवाद के कुछ घंटे बाद मैं भोपाल के कांग्रेस दफतर में था और वहां पर बने प्रवक्ताओं के कक्षों में भी बार बार यही वीडियो देखा जा रहा था और इसी पर चर्चा हो रही थी।

कांग्रेस में लंबे समय से सक्रिय एक नेता बोल उठा यार देख कर दुख होता है कि इस इंदिरा भवन में पंद्रह साल बाद रौनक लाने वाले भी ये दोनों ही थे तो रौनक लुटाने वाले भी ये दोनों ही हैं। और दोनों राज्यसभा में पहुंच ही गये हैं और एक दूसरे की तारीफ कर रहे हैं, एक दूसरे से आशीर्वाद मांग और आशीष दे रहे हैं। तो मुझसे रहा नहीं गया कि आपको दुख क्यों हो रहा है हमारे मध्यप्रदेश के दो दिग्गज नेता राज्यसभा में प्रदेश हित की बात कर रहे हैं संवाद कर रहे हैं तो आप दुबले क्यों हो रहे हैं गर्व करिये इस पर। मगर वो नेता जी तो सुलगे हुये थे भैया हमारा दुख तो ये कि पंद्रह साल पहले भी हम इस बेरौनकी में थे और आज भी हैं, अरूण यादव जी के साथ भी प्रदर्शन कर पुलिस के लटठ खाये थे तो अभी कुछ दिनों पहले कमलनाथ जी के साथ भी आंसू गैस झेली क्या हमारी किस्मत में लाठी और आंसू गैस ही लिखी है। जिसको जो मिलना था तो मिल ही गया। नेताजी की बात तो गहरी ही थी। एक महीने बाद ही साल भर होने को है जब मध्यप्रदेश में आपरेशन लोटस हुआ था और वो सत्रह दिन में ही कमलनाथ की सरकार पंद्रह महीने में ही पूर्व हो गयी थी।

आम कांग्रेसी सरकार गिरने की जो बात जानता है वो ये कि झगडा राज्यसभा की सीट का था। प्रदेश से कांग्रेस के हिस्से दो सांसद जाने थे और इसके लिये राजा महाराजा का नाम चल रहा था। नाम घोषित करने की देरी में महाराज सिंधिया नाराज हो गये और बीजेपी से जा मिले। उसके बाद कांग्रेस से राजा दिग्विजय सिंह और बीजेपी से महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया उम्मीदवार बने और निर्विरोध निर्वाचित होकर अब संसद के उच्च सदन की शोभा बढा रहे हैं। मगर हम जानते हैं कि बात सिर्फ इतनी सी नहीं थी। कमलनाथ सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस में बहुत कुछ सुलग रहा था जो बाद में राज्यसभा की सीटों के झगडे और बडे नेताओं के मनमुटाव के तौर पर सामने आया और कांग्रेस की सरकार कम उमर में ही अपनी गति को प्राप्त हो गयी।

राज्यसभा के इस एपीसोड को राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार रशीद किदवई अलग नजरिये से देखते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश के दो लोकप्रिय और भारी जनाधार वाले नेता संसद के सदन में चुन कर जाने की जगह यदि निर्वाचित होकर जा रहे हैं तो समझिये के अब राजनीति की दिशा किस ओर जा रही है। यदि लोकसभा चुनावों के परिणाम इन दोनों नेताओं के खिलाफ नहीं आते तो शायद कांग्रेस की सरकार को लेकर इस तरह का आत्मघाती झगडा भी नहीं होता और ये हास्य व्यंग्य और तंज हम राज्यसभा में मध्यप्रदेश के दो ताकतवर नेताओं के बीच देखने नहीं मिलता। हम भी कहेंगे कि बात में दम तो है अब तंज मारने से कुछ नहीं होगा। सरकार जाने का अफसोस लंबे समय तक कार्यकर्ताओं को सालता रहेगा नेताओं का क्या है लोकसभा नहीं तो राज्यसभा में चल देंगे।

ब्रजेश राजपूत, एबीपी नेटवर्क, भोपाल