(निरुक्त भार्गव, पत्रकार)
आज के ज़माने के लिहाज से 67 साल की आयु को लम्बी उम्र नहीं कहा जा सकता, सो विनोद दुआ का प्रयाण किसी त्रासदी से कम नहीं है. पिछले पांच-छ: वर्षों के दौरान और खासकर एक-डेढ़ वर्ष के दौरान उन्होंने जो मानसिक और शारीरिक कष्ट झेले, वो किससे छिपे हैं? बहरहाल, उनका पत्रकारिता की बिरादरी से इस तरस से चले जाना इस पेशे में एक बड़ा शून्य तो पैदा कर ही गया, क्योंकि जिन खबरिया चैनलों के वो जन्मदाता थे उनकी आज जो गति और चाल-ढाल है उन्होंने खुद-को मुंह छिपाने लायक तक नहीं छोड़ा है!
“मी टू” एपिसोड के चलते पार्श्व में धकेल दिए गए एमजे अकबर (राज्यसभा सदस्य और पूर्व केन्द्रीय मंत्री) को अपना आदर्श मानने वाले विनोद दुआ शायद आखिर तक नहीं समझ पाए कि खुद उनको गुरू मानने वाले लोग कहां-कहां तक फैले हैं! दूरदर्शन पर 1985 में प्रसारित होने वाली वीकली वीडियो मैगज़ीन ‘न्यूज़ लाईन’ ने उनकी पत्रकार के रूप में पहचान कराई थी. उड़ीसा के ‘कालाहांडी काण्ड’ में उनकी रिपोर्ताज ने तत्कालीन मुख्यमंत्री जानकीवल्लभ पटनायक को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था. इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा!
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दूरदर्शन के ‘जनवाणी’ कार्यक्रम की याद आज भी बहुत सारे लोगों के ज़हन में है. कहते हैं इस कार्यक्रम ने प्रधानमत्री राजीव गांधी के तमाम काबिना मंत्रियों की नींद उड़ा रखी थी! राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री और तब के केन्द्रीय मंत्री अशोक गेहलोत जब बिना तैयारी के विनोद दुआ के कार्यक्रम में पहुंच गए और उनके तीखे सवालों का जवाब नहीं दे पाए, तब उनको मंत्रीमंडल से हटा दिया गया था! 1980 और 1990 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले सभी चुनाव विश्लेषण कार्यक्रम में विनोद दुआ की प्रतिभा से भी अधिसंख्य लोग प्रभावित होते थे.
इसके बाद जब ‘लेट-1990’ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में निजीकरण का दौर आया, तो विभिन्न सेठों ने चैनल लॉन्चिंग के लिए विनोद दुआ की सेवाएं लीं. स्टार न्यूज़, ज़ी न्यूज़, आजतक, एनडीटीवी, सीएनएन-आईबीएन-7, सहारा समय वगैरह के पौधे उन्होंने ही रौंपे! 2000 के दशक में एनडीटीवी के साथ उनकी जुगलबंदी तो स्वर्ण अक्षरों में लिखी ही जाएगी.
विनोद दुआ और उनके परिवार पर भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का गहरा असर हुआ था. दिल्ली में आकर बसने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा पाई, पर कभी किसी सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास नहीं किया! जैसे वो पत्रकारिता पेशे के लिए ही जन्मे थे! पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी सहित कई अन्य भाषाओँ के जानकार विनोद दुआ बेहतरीन रंगकर्मी थे. वे कला और संस्कृति के मर्मज्ञ थे और न्यूज़ प्रोडक्शन व चलचित्र का निर्माण करने में माहिर थे.
उज्जैन में 2004 में संपन्न सिंहस्थ महापर्व (कुम्भ) में कथित तौर पर हुए भ्रष्टाचार और बहुतेरी अनियमितताओं पर एनडीटीवी द्वारा दिखाए गए विशेष कार्यक्रम को बनाने जब वे आए थे, तो उन्हें समक्ष में थोड़ा-बहुत समझने का सौभाग्य मिला था. लेकिन पत्रकारिता की 45 साल की उनकी यशोमय गाथा का जो निचोड़ मुझे लगा है, वो ये कि उन्होंने कभी भाषा की मर्यादा भंग नहीं होने दी और ना ही पेशे की सीमाओं को कभी लांघा! अपने साथी संतोष भारतीय को ‘लाउड टीवी न्यूज़’ पर उन्होंने अपना संभवत: जो अंतिम इंटरव्यू दिया, वो अब तारीख़ बन चुका है! बकौल विनोद जी, “पाठक अथवा दर्शक ही हमारे लिए कसौटी हैं क्यूंकि वे ही अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमको पढ़ते और देखते हैं.”…
ना कभी कैमरा बंद हो सकता है और ना ही छापेखाने, इसीलिए इन उपकरणों के साथ बहुत विनम्रता और साफगोई से काम कर अपनी छाप छोड़ गए विनोद दुआ कभी ओझल नहीं हो सकते हैं, मीडिया की दुनिया से…..