आज है श्रीनाथजी की उर्ध्व भुजा प्राकट्य दिवस, श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता ये उत्सव

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श्रीनाथजी की उर्ध्व भुजा प्राकट्य दिवस की ख़ूब ख़ूब बधाई

नागपंचमी

विशेष – आज नागपंचमी है. भारत देश के विभिन्न हिस्सों में नागपंचमी कई अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है. देश के कुछ भागों में नाग-पंचमी श्रावण कृष्ण पंचमी को भी मनायी जाती है. व्रज में आज नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. श्रीजी में आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. पूर्ण प्राकट्य से पूर्व प्रभु श्रीजी श्री गिरीराजजी की कन्दरा में विराजित थे. विक्रम संवत 1465 की श्रावण शुक्ल पंचमी के दिवस श्रीजी को दूध अरोगाने गये व्रजवासियों को श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन हुए थे.

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तब से सभी व्रजवासी उनके दर्शन कर दही, दूध आदि भोग रख उनकी आराधना करने लगे. आगामी 70 वर्षों तक व्रजवासियों ने इसी प्रकार प्रभु की उर्ध्वभुजा का पूजन किया. इसके पश्चात विक्रम संवत 1535 की चैत्र कृष्ण एकादशी को प्रभु का मुखारविंद प्रकट हुआ. श्री महाप्रभुजी ने विक्रम संवत 1549 में प्रभु को श्री गिरिराजजी की कन्दरा से बाहर पधराया एवं प्रभु की सेवा का कार्य अपने हाथ में लिया. तब तक सर्व व्रजवासी ही प्रभु को दूध, दही एवं मक्खन आदि का भोग रखते थे.

श्रीजी में विशेष – आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. आज की सेवा हंसाजी की ओर से की जाती है. श्रीजी को नियम से कोयली (सोसनी या गहरे नीले) रंग का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर पाग के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है. गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की पाटिया के लड्डू एवं पाटिया (गेहूं की सेवई) की खीर आरोगायी जाती है. सेव की खीर आज के अतिरिक्त केवल कुंडवारा मनोरथ में अथवा अन्नकूट उत्सव पर आरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आशावरी)

देखो अद्भुत अवगति की गति, कैसो रूप धर्यो है हो l
तीनलोक जाके उदर बसत है सो सूप कैं कोन पर्यो है हो ll 1 ll
जाकें नाल भये ब्रह्मादिक, सकल भोग व्रत साध्यो हो l
ताको नाल छीनि ब्रजजुवती बोटि तगा सौं बांध्यो हो ll 2 ll
जिहिं मुख कौं समाधि सिव साधी आराधन ठहराने हो l
सोई मुख चूमति महरि जसोदा दूध लार लपटाने हो ll 3 ll
जिन श्रवननि गजकी बिपदा सुनी, गरुडासन तजी धावै हो l
तिन श्रवननि के निकट जसोदा हुलरावे अरु गावै हो ll 4 ll
जिन भुजबल प्रहलाद उबार्यो हिरनाकसिप उर फारे हो l
तेई भुज पकरि कहति व्रजनारी ठाड़े होहु लला रे हो ll 5 ll
विश्व-भरन-पोषन सब समरथ, माखन काज अरे है हो l
रूप विराट कोटि प्रति रोमनि, पलना मांझ परे हे हो ll 6 ll
सुरनर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधिन टारी हो l
सोई ‘सूर’ प्रकट या ब्रजमें गोकुल गोप बिहारी हो ll 7 ll

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साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की एक ओर आन्योर ग्राम एवं दूसरी ओर जतीपुरा ग्राम, दोनों ग्रामों से व्रजवासी श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन करने जा रहे हैं ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल का सुनहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कोयली रंग की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तुर्री डाँख का जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थाग वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में कली की मालाजी धरायी जाती हैं. त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट कोयली व गोटी चांदी की आती है.अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है.