धनतेरस से प्रारम्भ हुए दीपावली महापर्व का समापन सामान्यतः पांचवे दिन भाईदूज के साथ होता है। इस दिन बहन अपने भाइयों के माथे पर तिलक करती हैं और साथ ही अपने भाई की खुशहाली और लम्बी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। जिसके बाद भाई अपनी बहन के चरण छूकर आशीर्वाद लेते हैं और अपनी बहन को यथायोग्य उपहार और साथ ही जीवनपर्यन्त रक्षा का वचन भी देते हैं। हमारे देश के अधिकतम राज्यों में यह त्यौहार विषेश रूप में मनाया जाता है।
भाई यमराज और बहन यमुना को समर्पित है भाईदूज का त्यौहार
उल्लेखनीय है कि हमारे सत्य सनातन धर्म में आने वाले प्रत्येक त्यौहार के पीछे एक कथा होती है। उसी आधार पर भाईदूज महापर्व के लिए भी एक कथा की मान्यता हमारे सनातन धर्म में उपस्थित है, जिसके अनुसार यह त्यौहार यमराज और यमुना मैया को समर्पित माना जाता है। दरअसल सनातन धर्म के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज और पुण्य सलिला माँ यमुना आपस में भाई बहन हैं, जिनके पिता सूर्यदेव और माता देवी संध्या मानी जाती हैं। माना जाता है कि अपनी माता संध्या के व्यवहार से रूठ कर यमुना पृथ्वीलोक पर आकर मथुरा के विश्राम घाट पर निवास करने लगीं। एक बार उनके भाई यमराज, अपनी बहन की यमुना की तलाश करते हुए विश्राम घाट तक पहुंचे। अपने भाई को देखकर यमुना मैया भाव विभोर हो गईं और अपने भाई का अच्छी तरह से स्वागत सत्कार किया और अपने हाथों से बनाकर भोजन कराया, जिसके बाद यमराज ने अपनी बहन को आशीर्वाद दिया कि आज के दिन जो भी भाई-बहन यमुना में विशेषकर विश्राम घाट में एक साथ डुबकी लगाएंगे, वे निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त होंगे। इसी कथा के आधार पर हमारे देश और धर्म में भाईदूज का त्यौहार पूरे हर्षोल्लास और प्रेमपूर्वक मनाया जाता है।
मथुरा के विश्राम घाट पर होती है विशेष भीड़
भाईदूज के दिन उपरोक्त कथा की मान्यता के अनुसार मथुरा के विश्राम घाट पर भक्तों की विशेष भीड़ कालिंदी में स्नान के लिए उपस्थित होती है, इसके साथ ही यहां एक मेले का भी आयोजन होता है । इन भक्तों में बड़ी संख्या में भाई और बहन एक साथ उपस्थित होते हैं और साथ ही यमुना मैया में स्नान करके अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं। इसके साथ ही यमुना नदी के अन्य सभी घाटों पर भी इस दिन विशेष भीड़ होती है।