बिजासन मंदिर में माता के नौ स्वरूप के दर्शन नौ पींडियों के रूप में होते है, प्राचीनकाल में दर्शन के लिए आते थे शेर और अन्य जीव..

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By Shivani RathorePublished On: May 3, 2023

इंदौर : इंदौर शहर शुरुआत से ही धार्मिक स्थलों के लिए मशहूर है। मां अहिल्याबाई की इस नगरी में कई प्राचीन मंदिर है जो अपनी मान्यताओं के कारण काफी प्रसिद्ध है। शहर के पश्चिम क्षेत्र में स्थित बिजासन माता मंदिर अपनी मान्यताओं और अन्य कारणों से काफी प्रसिद्ध है। यहां माता के नौ स्वरूप के दर्शन नौ पींडियों के रूप में बिजासन माता मंदिर में होते हैं। जानकारी के अनुसार मंदिर का इतिहास 900 साल से पुराना बताया जाता है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण महाराजा शिवाजीराव होलकर ने 1750 में कराया था। बिजासन माता को सौभाग्यदायिनी माना जाता है।


 

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माता रानी के दरबार में विवाह के बाद दूर-दूर से माता के दर्शन के लिए नवविवाहिता महिलाएं आती है। पुजारी सतीश वन गोस्वामी बताते हैं कि वैसे तो यहां सालभर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है, वहीं नवरात्र में यहां हजारों श्रद्धालु आते रहते हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्र में कई भक्त बाहर से भी आते हैं और यहां भक्तों का मेला लगता है। इसी के साथ भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर माता रानी के दरबार में हाजरी देने के लिए आते हैं।जानकारी के अनुसार पुरातन तंत्र विद्या पत्रिका चंडी’ में इंदौर के बिजासन माता मंदिर में विराजमान नौ दैवीय प्रतिमाओं को तंत्र-मंत्र का चमत्कारिक स्थान व सिद्ध पीठ माना गया है। कहा जाता है की यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती हैं।

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मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है कि बुंदेलखंड के आल्हा-उदल ने जब अपने पिता कि हत्या के प्रतिशोध में जब मांडू के राजा कडांगा राय से बदला लेने यहां आए, तब उन्होंने बिजासन में मिट्टी-पत्थर के ओटले पर सज्जित इन सिद्धिदात्री नौ दैवीयों को अनुष्ठान कर प्रसन्न किया और मां का आशीर्वाद प्राप्त किया। तब से देवी को बिजासन माता के नाम से जाना जाता है। तब से लेकर आज तक भक्तों का जमावड़ा यहां लगा रहता है।

मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि यहां बहुत पहले जंगल हुआ करता था। मंदिर के पिछले उतार पर नाहर खोदरा नामक जलाशय है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां शेर और अन्य जीव पानी पीने आया करते थे। जंगल में पहले बहुत हिरण भी हुआ करते थे जो देवी के दर्शन के लिए यहां आया करते थे।

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मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है कि इस प्राचीनतम सिद्धि स्थल पर चबूतरे पर आसीन देवियों को प्रतिष्ठित करने के इरादे से महाराजा शिवाजीराव होलकर ने जीर्णोद्धार करवाने का विचार किया। इसको लेकर जब जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया तो यह कार्य पूर्ण नही हो सका कहा जाता है कि माताजी के मंदिर का काम इसकी दीवारें बनाने से शुरू हुआ, लेकिन दीवारें रात में गिर जाया करती थीं कहा जाता है कि महाराज के सपने में बिजासन माता ने दर्शन देकर यह इशारा किया कि पहले कोई मन्नत मांगों जब वह मन्नत पूरी हो जाए तो निर्माण करना। तब से लेकर आज तक लोग मंदिर में पहले मनोकामना लेकर आते हैं वहीं इसके पूर्ण होने पर यहां पूजन पाठ करते हैं।