नई दिल्ली। भारत की न्यायपालिका के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ा है। 73वें स्थापना दिवस (73rd foundation day) से नई परंपरा की शुरुआत हुई है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 4 फरवरी को पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया। सिंगापुर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुंदरेश मेनन ( justice Sundaresh Menon) इस समारोह के मुख्य अतिथि थे।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (D Y chandrachud) समेत कोर्ट के सभी जजों की उपस्थिति में हुए कार्यक्रम में पूरी दुनिया में न्यायपालिका की भूमिका और उसकी चुनौतियों पर चर्चा हुई। सिंगापुर के मुख्य न्यायाधीश सुंदरेश मेनन ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि गलत संदर्भों को पेश करने के कारण अदालती कार्यवाही प्रभावित हो रही है।
लगभग एक घंटे के संबोधन के दौरान न्यायाधीश सुंदरेश मेनन (justice Sundaresh Menon) ने कहा कि सबसे व्यस्ततम माना जाने वाला भारत का सुप्रीम कोर्ट न केवल विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखता है बल्कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी भारतीय न्यायपालिका के जजों ने अपना परचम लहराया है। स्थापना दिवस के अवसर पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ (d y chandrachud) ने भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हरिलाल जे. कनिया को याद किया। चंद्रचूड़ ने कहा कि जस्टिस कनिया ने शुरू में ही सुप्रीम कोर्ट की भूमिका स्पष्ट की थी। उन्होनें कहा था कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की व्याख्या करने के साथ संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करेगा।
जानकारी के लिए आपको बता दे कि, 26 जनवरी 1950 को भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद यानी 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया था। चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार ने बजट प्रस्तावों में न्यायपालिका के लिए 7,000 करोड़ का प्रावधान किया है।