रविवारीय गपशप: चौबीस खम्बा माता का अद्भुत मंदिर, चढ़ाई में चढ़ती है ये चीज

Mohit
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aanand sharma

सर्वप्रथम तो आपको चैत्र नवरात्रि की अनेक शुभकामनाएँ । उज्जैन मध्यप्रदेश का एक ऐसा प्रसिद्द स्थल है , जिसकी ख्याति देश-विदेश में फैली हुई है । इस धार्मिक , ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व की नगरी का सम्बन्ध सम्राट विक्रमादित्य से है और इसी कारण नव संवत्सर के आरम्भ पर यहाँ हमेशा गरिमापूर्ण आयोजन होता है जिसमें कल माननीय मुख्यमंत्री जी ने भी रामघाट पर आयोजित एक भव्य समारोह में शिरकत की है । त्योहारों को मनाने का गजब उत्साह इस शहर के नागरिकों में है । विभिन्न पर्वों में निकलने वाली लाव लश्कर और गाजे बाजे के साथ निकलती शोभा यात्राओं को देख कर आप हैरान रह जाएँगे । शनिमंदिर पर शनिश्चरी अमावश्या के एक दिन पहले खड़े हो कर आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि दूसरे दिन यहाँ अचानक लाखों लोग सर पे गठरी रखे स्नान करने आ पहुंचेंगे । यहाँ मेलों और पर्वो के निर्धारित स्थल में बिना आमंत्रण ही हज़ारो हज़ार आदमी पहुंच जाते हैं । यहीं पर कुम्भ या सिंहस्थ का महापर्व आयोजित होता है जिसमे करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुगण पुण्य सलिला क्षिप्रा में स्नान करने बिना बुलावे ही तो आते हैं ।

नव संवत्सर के प्रारम्भ की परम्परा का एक दिलचस्प प्रसंग आपसे साझा कर रहा हूँ । महाकाल मंदिर के समीप ही एक बड़ा पुराना और पुरातात्विक महत्व ( नवीं से दसवी शताब्दी ) का एक देवी मंदिर है , जिसे चौबीस खम्बा माता का मंदिर कहते हैं । ये परम्परा है कि नवरात्री की अष्टमी को इस मंदिर में सुबह स्थानीय एस.डी.एम. के द्वारा पूजा की जाती है और देवी को प्रसाद के साथ सुरा( देशी मदिरा ) भी चढ़ाई जाती है । पूजन के बाद मशक में देशी मदिरा को भर कर पटवारी साहब और कोटवार जी उसे एक एक कर रास्ते में आने वाले सभी देवी और भैरव मंदिरों में चढ़ाते हुए गढ़कालिका (महाकवि कालिदास की आराध्य देवी ) तक ले जाते हैं जहाँ शाम को पुनः आरती में एस.डी.एम. शरीक होते हैं | यहाँ एस.डी.एम. के शामिल होने के पीछे का अर्थ है कि वे शासन का प्रतिनिधित्व इस पूजा में कर रहे हैं , यानि पहले कभी राजा जिस काम को करा करते थे उसके प्रतिनिधि के बतौर अब अधिकारी इन्हे निभाते हैं । मुझे याद है महाकाल मन्दिर में भी कुछ पर्वों में होल्कर और सिंधिया की ओर से की जाने वाली पूजा के लिए एक निर्धारित राशि शासकीय कोषागार से ही आती थी । वर्ष 1996 में जब मैं उज्जैन अनुविभाग का एस.डी.एम. बना तो ऐसी परम्परागत पूजा को करने का शासकीय दायित्व मेरे ज़िम्मे आया ।

तहसीलदार श्री अमरचिया ने मुझे एक दिन पूर्व ही ताकीद कर दिया था कि कल सुबह बारह खंबा माता मंदिर में समय से पहुँचना है । मैं सुबह उठ कर इस विधान में शामिल होने समय से पहुँच गया | पूजा करने के समय प्रसाद चढ़ाया गया जिसमें मिठाई आदि के साथ सुरा भी थी । पूजा के बाद प्रसाद वितरण का दौर चालू हुआ । कुछ शौक़ीन जिन्हे चलती थी उन्होंने चुल्लू में भर के प्रसाद का पान किया पर कुछ हम जैसे भी थे जिन्होंने केवल मीठा ग्रहण किया , इसके बाद पुजारी जी ने मशक से माता को चढ़ाया प्रसाद निकाल कर दर्शनर्थियों के ऊपर छिड़कना चालू किया । प्रसाद को हमारे ऊपर भी खूब छिड़का आखिर हम मुख्य जजमान थे | इसके बाद पटवारी जी मशक में प्रसाद भर कोटवार जी के साथ निकल पड़े और मैं वापस घर चल पड़ा | घर आकर घंटी बजाई और दरवाजे खोलने पर श्रीमती जी ने हमसे आती देशी मदिरा की गंध को श्वास में भर आश्चर्य से कहा ये कहाँ से आ रहे हो सबेरे सबेरे ?? मैंने उसकी आँखों के संशय को पढ़ा और हँसते हुए बोला एक तरफ हो भागवान पी कर नहीं आया हूँ देवी के प्रसाद का छिड़काव है , और फिर जब उसे पूरा किस्सा सुनाया तो अगले वर्ष उसने भी हमारे साथ ही देवी पूजा की ।