भारत और इंग्लैंड के बीच लॉर्ड्स में खेले जा रहे तीसरे टेस्ट का दूसरा दिन केवल क्रिकेट की शानदार पारियों के लिए नहीं, बल्कि गेंद की गुणवत्ता को लेकर हुए विवाद के लिए भी याद किया जाएगा। पूरी टेस्ट सीरीज़ में ड्यूक्स बॉल को लेकर भारतीय टीम नाखुश नजर आई है। खासकर दूसरे दिन टीम इंडिया ने कई बार अंपायरों से गेंद बदलने की मांग की।
गेंद की स्थिति को लेकर भारतीय खिलाड़ियों का तर्क था कि ड्यूक्स बॉल महज कुछ ओवरों के भीतर ही अपनी चमक और आकार खो रही है, जिससे न सिर्फ स्विंग में दिक्कत हो रही है बल्कि गेंदबाज़ों की रणनीति भी प्रभावित हो रही है। अंपायरों ने बॉल चेक करने के लिए जांच रिंग का इस्तेमाल किया, लेकिन ज्यादातर मौकों पर गेंद नहीं बदली गई।

शुभमन गिल की अंपायर से तीखी नोकझोंक
मामला तब और गरमा गया जब भारतीय कप्तान शुभमन गिल अंपायरों से बहस करते नजर आए। गिल का गुस्सा इस बात को लेकर था कि बार-बार गेंद का आकार बिगड़ने के बावजूद अंपायर उसे बदलने के लिए तैयार नहीं थे। लाइव कैमरों में गिल की नाराज़गी और अंपायरों से हुई तीखी बातचीत साफ दिखाई दी। इतना ही नहीं, मोहम्मद सिराज भी स्टंप माइक में अपनी शिकायत दर्ज कराते नजर आए। सिराज ने अंपायर से कहा कि उन्हें 10 ओवर पुरानी गेंद दे दी गई है, जो कि बिल्कुल नई नहीं लग रही।
स्टुअर्ट ब्रॉड ने भी उठाए सवाल
गेंद की गुणवत्ता को लेकर सिर्फ भारतीय खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ स्टुअर्ट ब्रॉड भी अपनी नाराज़गी जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने कहा, एक अच्छी क्रिकेट गेंद ऐसी होनी चाहिए जिस पर ज़्यादा चर्चा न हो। लेकिन इस सीरीज़ में हर पारी में बॉल मुद्दा बन गया है। ये सही नहीं है। ब्रॉड का मानना है कि गेंद कम से कम 80 ओवर तक टिकनी चाहिए, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा। उन्होंने इसे टेस्ट क्रिकेट की गंभीर समस्या बताया और कहा कि ड्यूक्स बॉल को लेकर जल्द सुधार की ज़रूरत है।
बुमराह की शुरुआत तेज़, फिर विकेट का सूखा
दूसरे दिन की शुरुआत भारत के लिए शानदार रही। जसप्रीत बुमराह ने 14 गेंदों में ही 3 विकेट झटक लिए। लेकिन जैसे ही गेंद थोड़ी पुरानी हुई, विकेट आना बंद हो गए। पूरा सेशन भारतीय टीम एक भी विकेट नहीं निकाल पाई। क्रिकेट एक्सपर्ट्स का मानना है कि पुरानी गेंद के साथ गेंदबाज़ों को संघर्ष करना पड़ रहा है और इससे टीम की रणनीति पर असर पड़ता है। गेंद का जल्दी बेकार हो जाना न सिर्फ प्रदर्शन पर असर डालता है, बल्कि टेस्ट क्रिकेट की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े करता है।