मध्य प्रदेश में 5 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन विसंगतियां एक बड़ा मुद्दा बनी हुई हैं। इन कर्मचारियों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है, जिससे उनमें भारी रोष है।
इस मुद्दे को हल करने के लिए सरकार ने एक कर्मचारी आयोग का गठन किया था। लेकिन अब इस आयोग का कार्यकाल 12 दिसंबर 2024 तक बढ़ा दिया गया है। यह पहली बार है जब किसी ऐसे आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया है जिसने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
कर्मचारियों का आरोप:
कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सरकार ने आयोग का कार्यकाल मनचाही रिपोर्ट हासिल करने के लिए बढ़ाया है। उनका कहना है कि सरकार वेतन वृद्धि को टालने के लिए ऐसा कर रही है।
कई विभागों में वेतन में भारी अंतर:
मध्य प्रदेश के सभी 52 विभागों में स्टेनोग्राफर और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी काम करते हैं। इन सभी कर्मचारियों के वेतन में भारी अंतर है। उदाहरण के लिए, पुलिस मुख्यालय, मंत्रालय एवं विधि विभाग में काम करने वाले स्टेनोग्राफरों का प्रारंभिक वेतनमान 5500-9000 है, जबकि विभाग अध्यक्ष और कलेक्ट्रेट में काम करने वाले स्टेनोग्राफर का वेतनमान 4500-7000 रुपये हैं।
कई सालों से चली आ रही समस्या:
यह वेतन विसंगति कोई नई समस्या नहीं है। यह कई सालों से चली आ रही है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित तृतीय श्रेणी के बाबू और चतुर्थ श्रेणी के भृत्य हैं। इनकी संख्या 1.25 लाख के आसपास है। इसको लेकर वित्त विभाग के प्रमुख सचिव मनीष सिंह का कहना है कि कर्मचारी आयोग का कार्यकाल को बढ़ाया गया है। जो सिफारिशें आएंगी उनका परीक्षण किया जाएगा। इधर, मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा कि पिछली रिपोर्ट में जो विसंगतियां छूटी हैं, उनपर भी विचार होना चाहिए। लिपिकों की वेतन विसंगति सबसे पुरानी है।