मालवांचल यूनिवर्सिटी के इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और आईआईडीएस द्वारा हाइड्रोपोनिक खेती पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एक्सपर्ट एग्रीकल्चर रिसर्चर भाग्यश्री ओझा दुबे द्वारा छात्रों को हाइ़ड्रोपोनिक खेती और सब्जियों में पीएच स्तर और पोषक तत्वों का प्रबंधन करना भी सिखाया गया।
उन्होंने कहा कि विश्व में जलवायु परिवर्तन की वजह से फसल उत्पादन में तमाम तरह की चुनौतियाँ देखने को मिल रही हैं। यही नहीं, बढ़ते शहरीकरण से खेती का रकबा भी सिकुड़ रहा है। ऐसे में, हाइड्रोपोनिक प्रणाली से होने वाली खेती-बागवानी इन चुनौतियों से निपटने मददगार साबित हो सकती है। इसका उद्देश्य खुली जगहों की कमी को देखते हुए छात्रों को बिना मिट्टी के सब्जियों की खेती करने में सक्षम बनाना है।
उन्होंने बताया कि हाइड्रोपोनिक या मिट्टी के बगैर खेती की यह तकनीक आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से अपनाई जाती रही है। 600 ईसा पूर्व भी बेबीलोन में हैंगिंग गार्डन हुआ करते थे, जिसमें मिट्टी के बिना ही पौधे लगाए जाते थे।1200 सदी के अंत में मार्को पोलो ने चीन की यात्रा के दौरान वहाँ पानी में होने वाली खेती देखी गई।
इस अवसर पर आईक्यूएससी डायरेक्टर डॉ. रौली अग्रवाल ने भाग्यश्री ओझा दुबे को स्मृति चिन्ह प्रदान किया। इसमें विभिन्न फसलों के साथ सब्जियों की खेती के बारे में सहायक निदेशक डॉ. राजेंद्र सिंह, इंडेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, प्रभारी अजय कुमार गौड़ और विभागाध्यक्ष डॉ. शिवम कुमार द्वारा विद्यार्थियों के लिए विशेष सेमिनार आयोजित किया गया।
इसके अलावा पौधों को सटीक पोषक तत्व मिल सके, इसकी भी उन्हें जानकारी दी गई। इसमें विशेष बात यह है कि हाइड्रोपोनिक खेती करते हुए पानी की रीसाइक्लिंग करना भी सीखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि अक्सर हम सोचते हैं कि पेड़-पौधे उगाने और उनके बड़े होने के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूर्य का प्रकाश जरूरी है। लेकिन असलियत यह है कि फसल उत्पादन के लिये सिर्फ तीन चीजों- पानी, पोषक तत्व और की जरूरत है।
देखा गया है कि इस तकनीक से पौधे मिट्टी में लगे पौधों की अपेक्षा 20-30% बेहतर तरीके से बढ़ते हैं। इसकी वजह यह है कि पानी से पौधों को सीधे-सीधे पोषण जाता है और उसे मिट्टी में इसके लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है। साथ ही, मिट्टी में पैदा होने वाले खरपतवार से भी इसे नुकसान नहीं होता है।
इंडेक्स समूह के चेयरमैन सुरेशसिंह भदौरिया, वाइस चेयरमैन मयंकराज सिंह भदौरिया, मालवांचल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. संजीव नारंग और रजिस्ट्रार डॉ. लोकेश्वर सिंह जोधाणा ने कृषि के इस विशेष सेमिनार की सराहना की।