जिनके खून में पत्रकारिता थी और जिन्होंने देश की पत्रकारिता के हस्ताक्षर राजेंद्र माथुर और राहुल बारपुते के साथ काम किया ऐसे अभय छजलानी अब इस दुनिया में नहीं रहे। अभय जी के बारे में सबसे बड़ी बात यह थी कि वह नई दुनिया में काम करने वाले पत्रकारों पर भरोसा सबसे ज्यादा करते थे। जो आजकल गिनती के मालिक भी नहीं करते हैं। अपने पत्रकारों की इज्जत भी बहुत करते थे। अपनी टेबल के सामने पत्रकारों को बैठाने की वजह उनकी टेबल के सामने लगी कुर्सी पर जाकर बैठ जाते थे। रोज शाम को छः बजे दफ्तर में बैठकर सबके साथ अखबार की प्लानिंग करना, उसके बाद रात को ग्यारह बजे तक लगातार खबरों पर बात करना, उनकी पहचान थी। एक समय ऐसा था जब नई दुनिया में छपने वाला कॉलम ‘गुजरता कारवां’ पढ़ने के लिए लोग इंतजार करते थे। लंबे समय तक लोगों को यह पता नहीं चला कि यह कॉलम कौन लिखता है।
वास्तव में वह कलम अभय जी लिखते थे। शहर के मुद्दों पर जितनी पैनी नजर रखने के साथ जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल लिखने में भी करते थे। तो उनकी खबर, हेडिंग, आर्टिकल पढ़ने के बाद लगता था किसी सरस्वती पुत्र ने ऐसा लिखा है। अभय जी से शहर के विषय पर बात करने के लिए लोग लालायित रहते थे। सिर्फ राजनेता ही नहीं अफसर और दूसरे अखबार में काम करने वाले पत्रकार उनसे ज्यादा देर बात करने का मौका ढूंढते थे। अखबार यानी नईंदुनिया के लिए इतने ज्यादा समर्पित थे कि उनकी पहली प्राथमिकता हमेशा नईदुनिया ही रही। यही कारण है कि वहां काम करने वाले पत्रकार दो चार साल नहीं तीस चालीस साल तक लगातार काम करते रहे। किसी भी प्रकार की शिकायत मिलने पर पूरे प्रमाण आने के बाद ही पत्रकार से सवाल पूछते थे। नहीं तो मामले को टाल देते थे।
प्रदेश के वित्त मंत्री थे अजय नारायण मुशरान थे। तब नई दुनिया में जवाहरलाल राठौर ने बजट व मध्य प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति पर लगातार लेख छापे। जिससे परेशान होकर उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और वित्त मंत्री मुशरान ने अभयजी पर कई बार निवेदन किया कि यह लेख छापना बंद करें। तो अभयजी ने साफ कह दिया कि मैं जवाहर लाल जी राठौर को कुछ नहीं कह सकता। सरकार को कुछ कहना है तो अपना बयान लिखित में दे दे। हम उसे छापेंगे। सरकार का बयान आने के बाद पहली बार किसी अखबार में ऐसा हुआ कि सरकार के बयान के साथ-साथ जवाहरलाल राठौर लेकिन तर्कों के आधार पर लिखा था उसका भी पूरी ताकत के साथ जिक्र किया। इंदौर में एक बार ट्रैफिक पुलिस ने डिवाइडर की जगह बड़े-बड़े पत्थर सफेद रंग से पुताई करके सड़कों पर रख दिए। अभयजी ने पहले पन्ने पर लिखा कि शहर में जगह-जगह भेरु जैसे पत्थर रख दिए। खबर छपने के बाद उसी दिन ट्रैफिक पुलिस ने वह सारे पत्थर हटा दिए, क्योंकि उनके कारण दुर्घटना रोकने की बजाय बढ़ने की संभावना ज्यादा थी। अपने पत्रकार साथियों को यदि कोई तकलीफ होती थी। तो वह रोज उससे हालचाल पूछते थे। एक तरह से अभयजी परिवार का हिस्सा बन जाते थे।
अभय प्रशाल बनाने को लेकर जितनी परेशानियां उनको आई इतनी परेशानी किसी और को आती तो शायद आज इंदौर को इतनी बड़ी सौगात नहीं मिल पाती, लेकिन अभय जी हमेशा कहते थे की यदि नियत और ईमानदारी हो तो किसी से डरने की जरूरत नहीं। टेबल टेनिस स्टेडियम और उसके बाद मध्यप्रदेश का पहला सबसे बड़ा शुद्ध शाकाहारी क्लब की जो सौगात उन्होंने दी। वह जिंदगी भर उनकी याद दिलाती रहेगी। अभयजी के बारे में सैकड़ों किस्से हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उनको लिखना आता था। उनको पता था कि खबर का अंदाज कैसा होना चाहिए। जिससे सरकार हिल जाए। कई मुख्यमंत्री उनसे मिलने के लिए समय मांगते थे। इसके अलावा कई मंत्री तो उनके कहने पर ही बनाया जाते थे। इंदौर शहर में कोई भी कलेक्टर और एसपी उस जमाने में जब इंदौर आते थे। तो कार्यभार ग्रहण करने के बाद सीधे नईदुनिया ही जाते थे। अभयजी पढ़ने के भी शौकीन थे। ऐसा कहा जाता है कि द हिंदू अखबार के बाद यदि किसी अखबार के दफ्तर में सबसे अच्छी लाइब्रेरी है। तो वह नई दुनिया की है। सालों की मेहनत थी उसके पीछे। अभय जी का जाना निश्चित रूप से पत्रकारिता के लिए संकट जैसा है, क्योंकि अब अखबारों की भीड़ में और सोशल मीडिया के जमाने में सच्ची और निष्पक्ष पत्रकारिता करने के लिए बहुत कम लोग बचे है।
अभय छजलानी जी को विनम्र श्रद्धांजलि
@राजेश राठौर