12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्राचीन है महाकालेश्वर, ऐसे हुए थे प्रकट, जानें रोचक कथा

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By Ayushi JainPublished On: July 9, 2021
mahakal

इस साल श्रावण मास जुलाई के अंतिम सप्ताह से शुरू होगा। जैसा की आप सभी जानते है ये श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। श्रावण का महीना हिन्दू धर्म में काफी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पावन महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा इस दौरान शिव भक्त देश में फैले 12 ज्योतिर्लिंगों की श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एकज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर है, जो मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। दरअसल, इस भव्य ज्योतिर्लिंग के स्थापना पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। आज हम आपको महाकालेश्वर की रोचक कथा बताने जा रहे है तो चलिए जानते है –

पौराणिक कथा –

मान्यताओं के अनुसार अवंती नामक रमणीय नगरी भगवान शिव को बहुत प्रिय थी। ऐसे में इसी नगर में वेद प्रिय नमक एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। वो बहुत ही बुद्धिमान और कर्मकांड का ज्ञाता था। बता दे, वह शिव भक्त ब्राह्मण प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी आराधना किया करता था। दरअसल, वह हमेशा वेद के ज्ञानार्जन में लगा रहता था।

उसे उसके कर्मों का पूरा फल भी प्राप्त हुआ था। दूसरी ओर रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस जिसे ब्रह्मा जी का वरदान मिला था। इसी वरदान के मद में वह राक्षस अवंती नगर के ब्राह्मणों को उनके धार्मिक कर्मकांडों को करने से रोकने लगा। राक्षस के इस अधार्मिक कृत्य से बहुत परेशान हो गए। ऐसे में तब इन ब्राह्मणों ने शिव शंकर से अपने रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया।

ब्राह्मणों के इस विनय से भगवान शिव ने पहले तो राक्षस को चेतावनी दी। लेकिन इस चेतावनी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन इन राक्षसों ने ब्राह्मणों पर हमला कर दिया। जब से ही राक्षसों से बचाने के लिए भगवान शिव ने धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और नाराज शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस को भस्म कर दिया।

इसे देखकर ब्राह्मण भक्त अति प्रसन्न हुए। साथ ही भगवान शिव को वहीं रुकने का निवेदन करने लगे। ब्राह्मणों के निवेदन से अभीभूत होकर होकर भगवान शिव वहीं विराजमान हो गए। इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाता है।