सनातन धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना जाता है। हर पूजा और शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की आराधना से ही होती है। मूषक यानी चूहा उनका प्रमुख वाहन है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह उनका एकमात्र वाहन नहीं है। कई शास्त्रों और कथाओं में बताया गया है कि भगवान गणपति ने अलग-अलग युगों में भिन्न-भिन्न वाहन धारण किए। इसी वजह से गणेश जी को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी और वाहन का महत्व
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भक्त गणपति को घर लाते हैं और उनकी मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान गणेश जी की प्रतिमा के साथ मूषक की मौजूदगी विशेष रूप से अनिवार्य मानी जाती है क्योंकि यह उनकी सवारी और भक्त तथा देवता के बीच जुड़ाव का प्रतीक है।
अलग-अलग युगों में गणेश जी की सवारी
शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश ने सतयुग से लेकर कलियुग तक अलग-अलग वाहन धारण किए। सतयुग में उनका वाहन सिंह माना गया है और उस समय वे दस भुजाओं वाले “विनायक” नाम से प्रसिद्ध थे। त्रेतायुग में उनका वाहन मोर था और वे “मयूरेश्वर” कहलाए, जिनका वर्ण श्वेत था और छह भुजाएँ थीं।
द्वापरयुग में गणेश जी ने मूषक को अपना वाहन बनाया और “गजानन” नाम से पूजे गए। इस युग में उनकी भुजाएँ चार थीं और रंग लाल था। वहीं कलियुग में गणपति को “धूम्रकेतु” के नाम से जाना गया, जिनका वर्ण धूम्रवर्ण है और वाहन घोड़ा है। इस युग में उनकी दो भुजाएँ बताई गई हैं।
मूषक कैसे बना गणेश जी का वाहन?
चूहा गणेश जी की सबसे प्रमुख सवारी माना जाता है। पुराणों की कथा के अनुसार, क्रौंच नाम का एक गंधर्व अपनी घमंड भरी प्रवृत्ति के कारण ऋषि वामदेव का अपमान कर बैठा। क्रोधित ऋषि ने उसे चूहा बनने का श्राप दे दिया। श्राप के बाद क्रौंच एक विशालकाय मूषक बन गया और उसने चारों ओर विनाश करना शुरू कर दिया।
जब ऋषियों ने भगवान गणेश की स्तुति की तो उन्होंने चूहे को अपने पाश से बांध लिया। उस समय मूषक ने क्षमा मांगते हुए शरण ली। गणेश जी ने उसका अभिमान तोड़ने और उसे सही मार्ग दिखाने के लिए उसे अपना वाहन बना लिया।
धार्मिक मान्यता
गणेश जी की सवारी मूषक केवल एक प्रतीक नहीं बल्कि गहरी शिक्षा का द्योतक भी है। मूषक का स्वभाव होता है हर जगह प्रवेश करना, छिपना और छोटी-छोटी वस्तुओं को भी हानि पहुँचाना। इसे गणेश जी ने अपने अधीन करके यह संदेश दिया कि यदि मनुष्य अपने अहंकार और नकारात्मक प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर ले तो वे उसके साधन बन सकते हैं। इस तरह मूषक गणपति की शक्ति, करुणा और विनम्रता का अद्वितीय प्रतीक माना जाता है।
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