Rang Panchami: देश भर में होली के बाद सबसे ज़्यादा रंगपंचमी का त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है, यह त्यौहार होली के ठीक पांच दिन बाद चैत्र माह की कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है, इस दिन का इंतजार लोगो को पुरे साल रहता है और होली के दिन से भी ज़्यादा लोग रंगपंचमी के लिए उत्सुक होते है। इस साल रंगपंचमी का त्यौहार 12 मार्च यानि कल मनाया जाएगा। जिस प्रकार कार्तिक पूर्णिमा देवताओं की दिवाली मानी गई है उसी प्रकार रंग पंचमी को देवताओं की होली माना गया है।
अपने इष्टदेव को इन रंगों में रंग दें
रंग पंचमी के दिन लोग हवा में देवी-देवताओं के निमित्त अलग-अलग फूलों से सुगंधित अबीर-गुलाल को उड़ाते है। इस दिन प्रभु श्री कृष्ण,श्री राम और प्रभु श्री विष्णु को पीला रंग अर्पित कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाएं तथा उनके चरणों में पीले रंग का अबीर चढ़ाएं। ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी,आध्यत्मिक ऊर्जा का विकास होगा। मां लक्ष्मी, बजरंगबली और भैरव महाराज को लाल रंग अर्पित करें,धन आगमन के साथ-साथ आपके जीवन के क्लेश दूर होंगे। मां बगलामुखी को पीले रंग का अबीर अर्पित करें एवं सूर्यदेव को लाल रंग का गुलाल अर्पित करने से सारे शोक दूर होकर मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शनि देव को नीला रंग बहुत प्रिय होता है,उन्हें नीला रंग अर्पित करें।
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रंग पंचमी 2023 तिथि
- चैत्र मास की रंगपंचमी तिथि आरंभ: 11 मार्च, रात्रि 10: 06 मिनट पर
- चैत्र मास की रंगपंचमी तिथि समाप्त: 12 मार्च रात्रि10.02 मिनट पर
- उदयातिथि के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च को मनाया जाएगा।
क्यों मनाई जाती है रंगपंचमी क्या है इसका महत्व
रंगपंचमी के दिन लोग रंग-बिरंगे अबीर से खेलते हैं और इस दिन रंगो से सबसे ज़्यादा खेले जाने के कारण इस दिन को रंगपंचमी का नाम दिया गया है। साथ ही इस ख़ास दिन राधा-कृष्ण को भी अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है और कई जगहों पर इस ख़ास दिन शोभायात्रा, गैर आदि के आयोजन भी रखे जाते है।
रंग पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगपंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ होली खेली थी। इसी कारण इस दिन विधि-विधान से राधा-कृष्ण का पूजा करने के बाद गुलाल आदि अर्पित करके खेला जाता है। दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, होलाष्टक के दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था जिसके कारण देवलोक में सब दुखी थे। लेकिन देवी रति और देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को दोबारा जीवित कर देने का आश्वासन भगवान शिव ने दिया तो सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गए और रंगोत्सव मनाने लगे। इसके बाद से ही पंचमी तिथि को रंगपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।