स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के एक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता श्री मिलिंद जी दांडेकर कहा कि अंग्रेजों के साथ में केवल भारत की आजादी को लेकर ही नहीं, वरन भारत के स्वाभिमान भारत के मूल भाव को जिस प्रकार से समाप्त किया जा रहा था उस विषय को लेकर भी संघर्ष किया गया और यह केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था यह संघर्ष हमारी संस्कृति हमारे सम्मान के साथ हो रहे कुठाराघात के लिए था।
उन्होंने कहा कि कोलकाता को जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी घोषित किया तब उन्होंने पहली घोषणा की कि हम घर घर में नल लगवा कर पानी पहुंचाएंगे इस बात का युवा रविंद्र नाथ टैगोर ने विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि तालाबों के जल संरक्षण को लेकर भारत के लोगों में जो उनके रखरखाव को लेकर चिंता रहती है वह घर घर में नल लगवाने के कारण समाप्त हो जाएगी।
उन्होंने कहा था कि इस योजना से तालाबों पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो जाएगी, कुएं समाप्त कर दिए जाएंगे और एक समय देश में बड़ा भारी जल संकट आ सकता हैं। हमारी सामाजिक व्यवस्था जल के स्रोतों को संभाल कर रखना और उन्हें साफ रखना हैं और इस विषय को लेकर रविंद्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजों के साथ लंबे समय से संघर्ष किया।
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हालांकि यह बात अलग है कि उनके इस विषय को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। लेकिन यह चिंतन ध्यान दिलाता है कि हम लोग प्रकृति और उसके संरक्षण को लेकर कितना चिंतित हैं। और जब आजाद भारत के लिए संघर्ष चल रहा था तब उस समय भी हमारे स्वाधीनता संग्रामियों के अंदर प्रकृति के संरक्षण को को लेकर चिंता थी।
स्वाधीनता अमृत महोत्सव के पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के व्याख्यान कार्यक्रम शनिवार को संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री गोपाल जी देराड़ी थे। कार्यक्रम का प्रस्तावना विभाग संयोजक श्री सागर चौकसे ने रखा उन्होंने बताया कि स्वाधीनता हम सब का विषय है ऐसे ही पर्यावरण संरक्षण भी जन जन का विषय है आज इसके लिए भी हम सभी को जागरुक होने की अत्यंत आवश्यकता है।
वहीं कार्यक्रम का संचालन नीरजा जयसवाल दीदी ने किया कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन श्री योगेंद्र जी झा द्वारा किया गया।