तुम्हारे पाँव के नीचे जमीन नहीं, कमाल है कि तुम्हें यकीन नहीं!

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जयराम शुक्ल

फेसबुक हर वर्ष बता देता है कि मैं दस नवंबर को पैदा हुआ, इस नाते जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ मिल जाती हैं। लेकिन इस बार जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ बोनस में मध्यप्रदेश के उपचुनाव परिणाम की भी बधाइयां भी मिली। वह इसलिए नहीं कि मैं कोई भाजपा का कार्यकर्ता हूँ, वरन् इसलिए कि मतदान के ठीक दूसरे दिन मैंने परिणाम का जो आँकलन किया, अनुमान लगाया वह सौ प्रतिशत सही साबित हुआ।

यद्दपि मैंनें कैफियत दी थी कि यदि अपने अनुमान से गलत साबित हुआ तो उसके भी ठोस तर्क मेरे पास सुरक्षित हैं। क्योंकि किसी अँग्रेज विचारक ने कहा था- कि अच्छा पत्रकार वह है जो घटना होने से पहले ही उसकी भविष्यवाणी कर दे और जब वह न घटे तो अपने तर्कों से यह साबित कर दे कि वह क्यों नहीं घटी।

मध्यप्रदेश के उपचुनाव के परिणामों को लेकर मैं पूर्णतया आस्वस्त था कि ऐसा ही होगा। पैतीस वर्ष से हर चुनावों को कवर करते हुए इतना आत्मग्यान तो हो ही गया है। कहते हैं कि-
करत-करत अभ्यास से जड़मति होहिं सुजान।
रसरी आवत जात ते सिलपर परत निशान।।

यह चुनाव और इसके परिणाम की भविष्यवाणी कोई भी सहजता से कर सकता था बिना सुजान हुए। बस वह खुद को एक निरपेक्ष वोटर की भूमिका में रखता। क्योंकि पूरा दृष्य दर्पण की भाँति स्पष्ट था। अब सिलसिलेवार जानिए वह कैसे?

एक- विधायकों ने कांग्रेस क्यों छोड़ी..? इसलिए नहीं छोड़ी कि वे मंत्री नहीं बनाए गए..। और जो मंत्री थे उन्होंने इसलिए नहीं छोड़़ी कि उनकी ताकत में कोई कमी थी। विधायकों ने इसलिए छोड़ी कि इस सरकार के मुख्यमंत्री के पास जब मुझे सुनने का समय नहीं तो उस जनता की क्या सुनी जाएगी जिसने मुझे विधायक बनाया..। कमलनाथ जी इतिहास के पहले मुख्यमंत्री हैं जो कर्मचारियों/अधिकारियों की तरह वीकेंड मनाते थे।

दो- मंत्रियों को जबरिया ज्योतिरादित्य के पाले मान लिया गया और उसी हिसाब से उनके साथ सलूक भी। ऐसे मंत्रियों को कैबिनेट में रहते हुए भी कमलनाथ ने कभी अपना नहीं माना। सरकार का राजदार बनाना तो दूर उन पर जासूस बैठाए। चंपुओं के कहने पर उनके निर्णयों को उलटा-पलट किया। वे उन्हें अपने से दूर करते गए।

तीन- सन् 2018 का चुनाव लड़ा गया तब भाजपा का नारा था- ‘माफ करना महराज, हमारा नेता शिवराज!’ भाजपा मानकर चल रही थी कि कांग्रेस का चेहरा ज्योतिरादित्य हैं और उसके जीतने पर स्वाभाविक तौरपर वही मुख्यमंत्री बनेंगे। दूसरे नंबर पर थे दिग्विजय सिंह..। चुनाव अभियान में कमलनाथ को भाजपा ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। भाजपा ने उन्हें एक संसदीय क्षेत्र के नेता, व्यवसायी और कांग्रेस के फंड प्रबंधक से ज्यादा कुछ माना ही नहीं।

चार- ज्योतिरादित्य और दिग्विजय सिंह की बजाय कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के दिन से ही भाजपा ने कांग्रेस की उस बारूदी सुरंग को भाँप लिया जिस पर उसे भविष्य में विष्फोट करना था। राजनीति का ककहरा जानने वाला भी समझ सकता था कि कांग्रेस सरकार में विद्रोह तय है। वैसे मैं अभी भी मानता हूँ कि कमलनाथ की जगह ज्योतिरादित्य या दिग्विजय सिंह होते तो कांग्रेस की सरकार अल्पमत होते हुए भी कभी नहीं गिरती। दिग्विजय होते तो वही करवाते जो आज भाजपा ने करवाया( विधायकों से इस्तीफा दिलाकर उपचुनाव)

पाँच- ऐसा क्यों..? क्यों कि अरबपति कमलनाथ के पास हैलीकॉप्टर/हवाई जहाज तो हैं। उड़ने को पूरा आसमान है पर जमीन नहीं। कांग्रेस का अध्यक्ष फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद पूरे प्रदेश के राजनीतिक मुख्यालयों पर अपने ऐसे चंपू बैठाए जो अपने इलाके में पार्षदी जीतने तक की क्षमता नहीं रखते। विधायक, सांसद रह चुके नेताओं को कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता के चलते इन चंपुओं को तेल लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

छह- कुछ न रहते हुए भी दिग्विजय सिंह ने सरकार में अपना लायन शेयर छीन लिया। पुराने राजे-रजवाड़े, सामंती परिवारों के बच्चे भले ही पहली दफे विधायक बने हों, उन्हें कैबिनेट मंत्री बनवा दिया। वरिष्ठ हाथ मलते रह गए। प्रशासन तंत्र में भी दिग्विजय सिंह अपनी गोट जमाने में सफल रहे वजह- क्योंकि जिनेटिकली वे एक नेता थे और कमलनाथ व्यवसायी, प्रबंधक और उसके बाद नेता।

सात- राजनीति को साधना सहिष्णुता की पराकाष्ठा है। यह कमलनाथ के वश की थी नहीं। सो ज्योतिरादित्य को खुलेमुँह कह दिया उतरना है तो उतर जाओ सड़कपर..। यह दिग्विजय सिंह के लिए बिन माँगी मुराद थी। यद्यपि दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री होते तो ज्योतिरादित्य और कमलनाथ दोनों को ऐसे ही साधे रखते जैसे..सोनिया गांधी व नरसिंह राव, जैसे अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी।

आठ- गांधी ने कहा लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन(भगवान) है। चुनाव की घोषणा होने से लेकर परिणाम आने तक यानी कि पाँच साल में दो महीने जनता जनार्दन रहती है। शिवराज ने जब इस जनार्दन को मंच से शरणागत होकर प्रणाम किया तो कमलनाथ ने मजाक उड़ाया। जनता को यह ठीक नहीं लगा। सो ‘शिवराज है तो विश्वास है’ की भावना और बलवती हुई।

नौ- मीडियावी युग में राजनीति शो बिजनेस है। देह और जुबान की भाषा जनता समझती ही नहीं देखती भी है। उसने स्क्रीन पर अंहकार और विनम्रता दोनों को देखा। ठसक और लचक दोनों को महसूस किया। इमरती देवी को आयटम कहे जाने पर कांग्रेस सुप्रीमो राहुल गांधी माफी मागते हैं और कमलनाथ यह कहते हुए अपने बयान पर कायम रहते हैं कि यह राहुल गांधी का अपना निजी विचार है। संगठन के भीतर निजी अहंकार और जिद की पराकाष्ठा रही। इंदिरा जी के दौर में ऐसा होता तो कमलनाथ राजनीतिक पतन के किस पाताल में जा चुके होते उन्हें पता ही नहीं चलता। राहुल गांधी को उनके विरोधी पप्पू कहते ही हैं। लेकिन कमलनाथ ने अपने वक्तव्य के मन्तव्य से यह साबित कर दिया।

दस- जनता को मूर्ख समझने की कोशिश कोई नटवरलाल ही कर सकता है। कांग्रेस के नेता अट्ठाईस की अट्ठाईस सीट जीतने का दावा करते रहे। जबकि भाजपा के नेता अपने आधिकारिक वक्तव्यों में भी बीस सीट से आगे नहीं बढ़े। वोटरों को यह मालूम था कि कांग्रेस अट्ठाईस सीटें कभी नहीं जीत सकती, लिहाजा उसकी सरकार बनना असंभव है। सो अब जिसकी सरकार है उसी को क्यों न स्थाई बनाया जाए। इसलिए उसने मुक्तहस्त से भाजपा के पक्ष में मतदान किया, परिणाम सतसठ हजार तक के रिकॉर्ड तोड़ मतों से उम्मीदवार जीते।

अब बस फिलहाल इतने ही तथ्य और तर्क पर्याप्त हैं। इसके बावजूद भी कमलनाथ (संपूर्ण कांग्रेस नहीं) व उनके को यथार्थ न समझ में आए तो वे दुष्यंत कुमार जी के इस शेर पर गौर फरमाएं-

तुम्हारे पाँव के नीचे जमीन नहीं,
कमाल है कि तुम्हें यकीन नहीं।

संपर्क:8225812813