शहर के भानतलैया स्थित मां बड़ी खेरमाई मंदिर में हर साल नवरात्र पर्व पर हजारों की संख्या श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां हर साल नौ दिनों तक सुबह से रात तक मातारानी के दरबार में मेला लगता है। वहीं रात को महाआरती के साथ ही मां का भव्य श्रृंगार होता है। लेकिन इस साल कोरोना की वजह से मंदिर में मेला नहीं लगाया जाएगा। आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते है –
इतिहास –
मान्यताओं के अनुसार, मां भगवती की 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त शक्तिपीठ का ज्ञात इतिहास कल्चुरी काल का लगभग 800 वर्ष पुराना है। उसके पूर्व यहां शाक्त मत के तांत्रिक और ऋषि मुनि अनंतकाल से यहां शिला रूपी मातारानी की आराधना करते थे। खास बात ये है कि मंदिर में पहले प्राचीन प्रतिमा शिला के रूप में थी जो वर्तमान प्रतिमा के नीचे के भाग में स्थापित है।
एक बार गोंड राजा मदनशाह मुगल सेनाओं से परास्त होकर यहां खेरमाई मां की शिला के पास बैठ गए। तब पूजा के बाद उनमें नया शक्ति संचार हुआ और राजा ने मुगल सेना पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया। 500 वर्ष पूर्व गोंड राजा संग्रामशाह ने मढ़िया की स्थापना कराई थी।
369 साल से जवारा स्थापना –
जानकारी के मुताबिक, मंदिर में जवारा विसर्जन की परंपरा भी वर्ष 1652 की चैत्र नवरात्र में शुरू हुई थी। इस बार जवारा स्थापना का 369वां वर्ष है। सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर में हाइटेक तकनीक अपनाई गई है। यहां 27 सीसीटीवी के द्वारा हर आने-जाने वाले पर नजर रखी जाती है। मंदिर में मुख्य पूजा वैदिक रूप से होती है। यहां सप्तमी, अष्टमी और नवमी को रात में मातारानी की महाआरती की जाती है। परंपरा के अनुसार आज भी आदिवासी समाज के लोग यहां पूजन करने पहुंचते हैं।