लेखक : कमलगुप्ता “विश्वबंधु “
जीव अकेला आया है अकेला ही जायेगा। आत्मा सर्वथा निर्लिप्त है। संसार के सभी बन्धन मिथ्या है। माता-पिता जीव के प्रादुर्भाव के निमित्त है। ईश्वर को किसी ने देखा नहीं इसी लिये कहा गया है “मातृ देवों भव: पितृ देवों भव:” माता-पिता का संतान के प्रति व संतान का माता पिता के प्रति कभी भी लगाव, स्नेह व प्रेम कम नहीं होता है।
![एकाकी परिवार 4](https://ghamasan.com/wp-content/uploads/2020/09/single-family.jpg)
इकलोती संतान व माता-पिता के समक्ष साथ-साथ रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। कोई मजबूरी ही होने से वे एक दुसरे से प्रथक रहते है। नोकरी व काम धन्धे की वजह से घर तो क्या शहर व देश के बाहर भी रहना पड़ता है। संतान व माता-पिता के प्रथक रहने की बड़ी वजह है माता-पिता की एक से अधिक संतानों का होना है। सभी संतानों के स्वभाव,विचार,आचरण,चरित्र व प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है उनमें साम्य स्थापित होना मुश्किल होता है। माता-पिता के लिये भी कोई संतान प्यारी तो कोई अडारी हो जाती है। श्रवण कुमार के भी यदि दो-चार भाई होते तो वह भी शायद माता-पिता की वो सेवा नही कर पाते जिसकी वजह से वो जाने जाते है।
एकांकी परिवार के भी अपने लाभ-हानि है। “छोटा परिवार सुखी परिवार ” जितने कम लोग परिवार में होगें उतने कम सरंजाम जुटाना पड़ेगे। घर भी छोटा हो तो चलेगा महानगर संस्कृति में दो,तीन,बी. एच. के. का मकान या फ्लेट उपलब्ध हो जाये बहुत है। ऐसी स्थिति में संयुक्त परिवार को साथ रखना कतई सम्भव नहीं होता है। एकांकी परिवार स्वच्छंदता के साथ अपना जीवन व्यतित करता है। काम कम और सुख ज्यादा होता है। रोज रोज की कल-कल और कलह की गुंजाइश नही रहती है।
बच्चों की शिक्षा दीक्षा व देख भाल पर समुचित ध्यान दिया जाता है। रुढ़ि व परम्पराओं को जबरन ढ़ोना नही पड़ता है। जैसा चाहों वैसा खाने व पहनने की आजादी होती है। अपना कमाओं,अपने पर खर्च करों व अपने लिये बचाओं और विनियोग करों इसकी स्वतंत्रता रहती है। जितना बड़ा परिवार उतनी ज्यादा समस्याएं होती है। साथ रहकर विवाद करने से अच्छा है दूर रह कर प्रेम करना। साथ रहने या प्रथक रहने से कर्तव्य और अधिकारों में कोई परिवर्तन नही होता है।
एक गलत फहमी पितृ-ऋण को लेकर समाज में व्याप्त है कि माता-पिता की सेवा से पितृ-ऋण चुकाया जाता है। वस्तुत: माता-पिता द्वाराअपनी संतान के लिये जन्म लेने से व्यस्क होने तक किये गये उचित लालन-पालन से पितृ-ऋण चुकाया जाता है। आपके लिये जो माता-पिता ने किया उससे बेहतर आपको अपनी संतान के लिये करना है, यही पितृ-ऋण का चुकारा है।