राजबाडा 2 रेसीडेंसी

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By Mohit DevkarPublished On: July 6, 2020
rajwada to residency

अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते है

राजबाडा 2 रेसीडेंसी

मामला ज्यादा पुराना नहीं है।‌ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वन अधिकार पत्र के मुद्दे पर कमिश्नर- कलेक्टर से रूबरू हो रहे थे। खरगोन और अलीराजपुर के कलेक्टर के बजाय उन्हें अपर कलेक्टर रूबरू होते हुए दिखे तो थोड़ा नाराज हुए। जब संभागायुक्त पवन शर्मा ने कहा कि खरगोन कलेक्टर के बेटे की शादी है इसलिए उन्होंने छुट्टी ली तो मुख्यमंत्री ठहाका लगाते हुए बोले यह कोरोना ने इतनी दूरी बढ़ा दी है कि कलेक्टर बेटे की शादी में सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर हमें भी नहीं बुला रहे हैं। अगले दिन सुबह मुख्यमंत्री ने उन्हें फोन पर बेटे की शादी के लिए बधाई दे दी।

मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्तार में शिवराज सिंह चौहान और वी डी शर्मा की कितनी चली इसकी दो बानगी देखिए । शिवराज जी ने भूपेंद्र सिंह, रामपाल सिंह, गौरीशंकर बिसेन और राजेंद्र शुक्ला के नाम दिए थे इनमें से केवल भूपेंद्र सिंह बन पाए और वह भी दिल्ली मे नरेंद्र सिंह तोमर की मदद के बाद। बाकी 3 को दिसंबर की आस है।वीडी संजय पाठक को किसी भी हालत में मंत्री पद पर नहीं देखना चाहते थे और इसका फायदा मिल गया बृजेंद्र प्रताप सिंह को। एक बात और सुनिए यह सब जानते हैं कि वीडी शर्मा और अरविंद भदौरिया का आंकड़ा 36 का है। नरेंद्र सिंह भी अरविंद को पसंद नहीं करते हैं। इसके बावजूद भदौरिया मंत्री बन गए । बस अब ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं।

कमलनाथ भले ही अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ना हों लेकिन भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए लोगों ने उनसे अपने तार अभी भी जोड़ रखे हैं। उन्हीं में से एक हैं दीपक दरयानी। मध्यप्रदेश में अपनी बिरादरी में कन्फेक्शनरी किंग के रूप में पहचाने जाने वाले दीपक की पिछले दिनों कमलनाथ से हुई मुलाकात चर्चा में है। यह एक संयोग ही है कि इस मुलाकात के बाद कमलनाथ के निवास पर दिखी एक भव्य पेंटिंग सबकी निगाहें खींच रही है। संयोग यह भी है कि इसी मुलाकात के बाद दरियानी को एक सेंट्रल एजेंसी की जांच की जद में आए और नई फाइल तैयार हो गई।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट में माहिर चेतन कश्यप का दांव मंत्रिमंडल के मामले में कैसे फेल हो गया यह कोई समझ नहीं पा रहा है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपनी पसंद के जो दो-तीन नाम मंत्रिमंडल के लिए दिए थे उनमें चेतन कश्यप का नाम सबसे ऊपर था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उन पर भरोसा करते ही हैं। हेली रोड स्थित फ्लैट से जुड़े रहे दिल्ली के कुछ बड़े नेताओं का वरदहस्त भी था। इस सब के बावजूद दिल्ली से हुई अनुमोदित सूची में से चेतन बाहर हो गए। पूरी बात तो विनय सहस्त्रबुद्धे ही बता सकते हैं।

राजेश राजौरा और संजय शुक्ला जैसे दिग्गज आईएएस अफसरों ने क्यों जनसंपर्क विभाग के प्रमुख सचिव पद पर ज्यादा दिन रुकना उचित नहीं समझा यह अब समझ में आने लगा है। कहानी यह है कि मध्य प्रदेश माध्यम के कंधे पर रखकर जिस तरह से बंदूक चलाई जा रही थी उसकी गोली कभी भी इन अफसरों के गले में फंस सकती थी। एक सोची-समझी रणनीति के तहत कई विभागों का बड़ा फंड प्रचार प्रसार के लिए माध्यम को डायवर्ट किया जा रहा था और वहां से सब कुछ अपने मनमाफिक करवाने की तैयारी थी। आगे आप पता कीजिए।

गोविंद गोयल कई बार रात 8:00 बजे के बाद अपने मित्रों और कांग्रेस के नेताओं से यह कहा करते थे कि पार्टी ने उन्हें लूप लाइन के पद पर बैठा दिया है यानी कोषाध्यक्ष बना दिया। अलग-अलग माध्यमों से यह बात कमलनाथ तक भी पहुंचती थी। पहले तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन जब उनके नजदीकी कुछ नेताओं ने उनसे कहा कि जब वह इस पद पर काम ही नहीं करना चाहते तो आप उन्हें क्यों ढो रहे हैं। साहब तो साहब हैं, इतना सुनते ही गोयल द्वारा भेजा गया एक पुराना पत्र ढूंढवाया और निर्देश दे दिए कि इनका इस्तीफा मंजूर कर आज ही एक आभार पत्र मेरी ओर से भेज दो।

कौन बनेगा मध्यप्रदेश का नया परिवहन आयुक्त? यह चर्चा इन दिनों पुलिस के आला अफसरों के साथ ही भाजपा के बड़े नेताओं के बीच में जोरों पर है। 15 साल के भाजपा शासन में हमेशा प्राइम पोस्टिंग पर रहे वी मधुकुमार कांग्रेस की सरकार बनते ही जब लूप लाइन में भेजे गए थे तब उन्होंने कांग्रेस में भी अपनी पकड़ का एहसास करवाया था और एक ही दिन में आदेश बदल गया था। बाद में वे परिवहन आयुक्त बनकर ही माने। इसी मुद्दे को अब संघ ने पकड़ लिया है और दबाव इस क्रीम पोस्टिंग से उन्हें बेदखल करने के लिए है। परेशानी यह है कि अब अरविंद मेनन भी मधुकुमार की मदद की स्थिति में नहीं हैं।उम्मीद दक्षिण के कुछ नेताओं से जरूर है।

सरकार चाहे कमलनाथ की रही हो या शिवराज सिंह चौहान की डॉक्टर आनंद राय के तेवर हमेशा तीखे ही रहते हैं। सरकारी नौकरी में होने के बावजूद वह मंत्री हो या अफसर या फिर मुख्यमंत्री, मौका आने पर इन्हें कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं रहते। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर डॉक्टर राय अपने तीखे तेवरों का एहसास कराते रहते हैं। अभी तक तो कोई इनका बाल बांका नहीं कर पाया लेकिन पिछले दिनों वायरल हुई एक पोस्ट के बाद जब कनाडिया थाने में इन पर मुकदमा दर्ज हुआ तो सब का चौंकना स्वाभाविक था। इसके पीछे की कहानी क्या है यह समझना बहुत जरूरी है।

चलते चलते

मालिनी गौड़ यह मानकर चल रही थीं कि छोटे ठाकुर यानी नरेंद्र सिंह तोमर उन्हें मंत्री बनवा ही देंगे। पर बड़े ठाकुर यानी राजनाथ सिंह भारी पड़े। संघ भी मददगार बना और वो उषा ठाकुर कैबिनेट मंत्री बन गईं जिन्हें महापौर रहते हुए मालिनी ने कई बार परेशानी में डाला था।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति का फैसला होने में तो अभी कुछ समय लगेगा लेकिन विक्रम विश्वविद्यालय का कुलपति जल्दी ही तय होना है देखना यह है कि प्रोफेसर आशुतोष मिश्रा को कहां मौका मिलता है।

पुछल्ला

वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग का इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का उनसे मिलने जाना और रामेश्वर शर्मा और विष्णु खत्री को धता बताकर विश्वास सारंग का मंत्री बन जाना महज एक संयोग तो नहीं कहां जा सकता है।

अब बात मीडिया की

इस बार बड़ी खबर नईदुनिया -नवदुनिया से है। राजनीतिक पत्रकारिता के दिग्गज ऋषि पांडे ने समूह के राजनीतिक संपादक(मप्र) पद से इस्तीफा दे दिया है।

नईदुनिया में ग्रुप एडिटर और भास्कर के इंदौर और भोपाल संस्करण में संपादक रह चुके आनंद पांडे अब इंडिया टीवी में एडिटर रिसर्च की भूमिका निभाएंगे

दैनिक भास्कर के रतलाम, रायगढ़, गया और होशंगाबाद संस्करण में संपादक रहे विनोद सिंह अब उज्जैन से प्रजातंत्र का प्रकाशन आरंभ करवाएंगे, इसमें नईदुनिया जबलपुर के संपादक रहे अनूप शाह का भी सहयोग रहेगा अनूप भास्कर के सागर और कोटा संस्करण के भी संपादक रहे हैं।

विपिन नीमा के बाद ललित मोरवाल ने भी संपादकीय प्रभारी के रवैये से परेशान होकर पीपुल्स समाचार को अलविदा कह दिया था पर प्रबंधन के आग्रह पर उन्होंने पुनः संस्थान मैं आमद दे दी है।

दबंग दुनिया में अलग-अलग चरणों में तीन पारी खेल चुके ललित उपमन्यु नेअनादि टीवी का मालवा निमाड़ क्षेत्र का काम संभाल लिया हैं। ललित दैनिक भास्कर और नई दुनिया में भी सेवाएं दे चुके हैं। उपमन्यु और अनादि टीवी के संपादक प्रकाश भटनागर का तालमेल अच्छा है।

कुछ अलग से

कैलाश विजयवर्गीय की उपेक्षा यह प्रमाणित करती है कि मोदी-शाह के युग में उनकी किसी ने जमकर वाट लगा दी है। न राज्यसभा ले पाये न चेले को मंत्री बनवा सके।