इंदौर : ‘लिटरेचर फेस्टिवल’ का हिस्सा बने स्टोरी टेलर, गीतकार और लेखक नीलेश मिसरा ने मंच पर आते ही जैसे ही कहा कि ‘दोस्तों मेरा नाम नीलेश मिसरा है’, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। रेडियो की दुनिया से निकलकर अपने प्रशंसकों के बीच आए नीलेश ने कहा कि कहानियां सुनाते-सुनाते मैं बेहतर इंसान बन गया हूं। जब कोई कहता है कि मेरी कहानी सुन उसके जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव आया तो मुझे मुकम्मल सफलता नजर आती है। असल में कहानियों के जरिए हम कोई और बनकर दुनिया देख पाते हैं, दूसरों के बारे में सोच पाते हैं।
मैं से दूसरा बनकर जब देखता हूं तब ही कहानी उसी भाव से सुना पाता हूं। मिसरा ने कहा कि एक स्टोरी टेलर में संवेदनशीलता और उसका अभिनेता होना भी जरूरी है, पर नाटकीयता न हो। बात अगर लेखन की करें तो लेखन किसी के लिए भी किया जाए, हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि असली लड़ाई एकाग्रता की है। इसके लिए दो बातों का हमेशा ध्यान रखें।
![Indore Literature Festival : लेखन अलग नहीं होता, व्याकरण भर बदलता है : नीलेश मिश्रा 4](https://ghamasan.com/wp-content/uploads/2021/01/nilesh-mishra-Indore.jpg)
लेखन अलग नहीं होता, व्याकरण भर बदलता है
मिसरा ने कहानी विधा की विशेषताओं की चर्चा करते हुए कहा कि सबसे पहले अपने पात्र का परिचय इस तरह से कराएं कि सुनने-पढ़ने वाला उससे सरोकार स्थापित कर सके। दूसरा यह कि उस कहानी की भावनाएं वैश्विक हों जिससे हर व्यक्ति खुद को जुड़ा महसूस कर सके। यदि अपनी कहानी इस फिल्टर से पास करेंगे तो सुनने-पढ़ने वालों को रोक पाएंगे। लेखन अलग नहीं होता, बस जिस माध्यम के लिए आप लिख रहे हैं, उसका व्याकरण थोड़ा बदला हुआ होता है।