बढ़ती उम्र के साथ जैसे-जैसे तजुर्बा और दुनियादारी की समझ बढ़ती है, वैसे-वैसे यह कई तरह की मानसिक और शारीरिक समस्याएँ भी अपने साथ ले आती है। व्यक्ति की सोच, व्यवहार, ऊर्जा या भावना में गड़बड़ी की वजह से ये मानसिक समस्याएँ धीरे-धीरे पनपकर तेज गति से शरीर में दौड़ने लगती हैं, जो बुरे मानसिक स्वास्थ्य को अंजाम दे जाती हैं। ऐसे में खुद का ध्यान रखना बेहद जरुरी है, जो कि इस स्थिति के दौरान सबसे मुश्किल कामों में से एक है। इसलिए सबसे अधिक जरुरी हो जाता है अपने डॉक्टर से परामर्श लेना, ताकि मौजूदा समस्या पर अंकुश लगाया जा सके। मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के मौके पर मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के जाने-माने कंसल्टेंट साइकाएट्रिस्ट, डॉ. रमण शर्मा इस लेख के माध्यम से मानसिक तनाव के प्रति लोगों को जागरूक करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. शर्मा कहते हैं, “आजकल के दौड़-भाग वाले जीवन में आगे निकलने की होड़ मानसिक समस्या के रूप में इंसान को बहुत पीछे ले जा चुकी है और एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या को जन्म दे चुकी है, जिससे निजात पाना काफी मुश्किल हो गया है, वह भी उस स्थिति में, जब व्यक्ति को महसूस ही न हो कि वह इस समस्या से गुजर रहा है। सोने के तरीकों में बदलाव, भूख में असहज कमी, आवेशपूर्ण निर्णय लेना, थोड़ी-सी मुश्किल में ड्रग्स या अल्कोहल की ओर रुख करना और आत्मघाती या किसी अन्य व्यक्ति को ठेस पहुँचाने के विचार आना आदि हमारे दिमाग को इस कदर घेरे में लेने लगते हैं कि बमुश्किल ही मानसिक समस्या की समझ हो पाती है। ऐसे में इस समस्या से निजात दिलाने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है, जो व्यक्ति को इस गर्त से सुरक्षित बाहर लाने में कारगर साबित होता है।”
तनाव किसी भी समस्या का हल नहीं
मानसिक तनाव न केवल हमें, बल्कि हमारे परिजनों को भी बुरी तरह प्रभावित कर देता है। तनाव अन्य कई तरह की बीमारियों, जैसे- उच्च या निम्न रक्तचाप, माइग्रेन, चिड़चिड़ापन और हृदय से जुड़ी समस्याओं को जन्म देता है। कभी-कभी स्थिति व्यक्ति को आत्महत्या की राह पर भी ले जाती है। ऐसे में लोगों को जागरूक करना प्राथमिकता बन जाती है कि तनाव किसी भी समस्या का हल नहीं है।
मानसिक तनाव का पागलपन से दूर-दूर तक नाता नहीं
डॉ. शर्मा मानसिक तनाव के बारे में गहराई से जानकारी देते हुए कहते हैं, “कई लोग इस समस्या से वाकिफ होने के बावजूद भी डॉ. आदि से परामर्श नहीं लेते हैं, क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि लोग उन्हें पागल समझेंगे। यह महज़ एक गलतफहमी है, मानसिक तनाव का पागलपन से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य परामर्श लेने से आप मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के एक कदम और करीब पहुँच जाते हैं।“
उम्र का हर एक पड़ाव है घेरे में
हमारे न्यूरॉन्स 20 की उम्र से घटने शुरू हो जाते हैं, जिसका असर हमें 60 साल की उम्र के बाद दिखता है। इस प्रकार बुजुर्गों में यह समस्या उस दौरान तेजी से पनपती है, जब वे ताउम्र साथ रहने वाले परिवार से बिछुड़न या किसी नई जगह पर रहने के दौरान उसे अपनाने में कठिनाई का सामना करते हैं, या फिर अपने जीवनसाथी का साथ छूटने या रिटायरमेंट के बाद अकेलेपन से गुजरते हैं। कई दफा यह अनिद्रा या इन्सोम्निया का कारण बन जाता है, जिसके चलते व्यक्ति बेहद चिड़चिड़ा हो जाता है। युवा आयु वर्ग भी मानसिक तनाव से अछूता नहीं रहा है। प्रतिस्पर्धा के दौरान मिली हार या निंदा कई दफा पूरा करियर बर्बाद करने का कारण तक बन जाती है। आजकल मोबाइल और सोशल मीडिया का गलत उपयोग भी तनाव का एक मुख्य कारण है। युवा वर्ग इनका आदी हो रहा है, जिसके कारण वह तनाव, अवसाद जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहा है। हर दिन युवाओं के मानसिक तनाव के मामलों में इजाफा देखा जाने लगा है।
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तनाव से न केवल बुजुर्ग और वयस्क ही ग्रस्त हैं, बल्कि आजकल बच्चे भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। अक्सर अखबारों में बच्चों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें पढ़ने में आ जाती हैं। इसका एक मुख्य कारण है उन पर डाला जाने वाला दबाव, या ऐसी कोई परिस्थिति, जिसे वे होने नहीं देना चाहते हैं। अभिभावकों द्वारा बच्चों पर अच्छे नंबर लाने के लिए और अपने साथियों से आगे निकलने के लिए दबाव डालना भी कई बार उनकी बुरी मानसिक स्थिति का कारण बन जाता है।
आँकड़ें क्या कहते हैं?
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, मानसिक बीमारियों के कारण दुनिया भर में हर वर्ष लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, जिसमें हर वर्ष 10 फीसद इजाफा हो रहा है। नेशनल काउंसिल ऑन एजिंग के अनुसार, हर चार में से एक वयस्क को डिप्रेशन (अवसाद), एंज़ाइटी (चिंता) और डिमेंशिया (मनोभ्रंश) जैसे मानसिक विकारों का अनुभव होता है। इसे ध्यान में रखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि यह संख्या वर्ष 2030 तक बढ़कर 15 मिलियन तक पहुँच जाएगी। पाइन रेस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, मानसिक विकार हर वर्ष 15% बुजुर्गों, 19% वयस्क आबादी, 46% किशोरों और 13% बच्चों को प्रभावित करते हैं। हालाँकि, प्रभावित लोगों में से केवल आधे ही इसका इलाज लेते हैं।
मानसिक तनाव के कारण पनपने लगता है इन्सोम्निया नींद की कमी या नींद न आने की समस्या को ही अनिद्रा या इन्सोम्निया कहा जाता है।
नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार, 30% से 40% लोगों को कभी-कभी इन्सोम्निया की समस्या होती है। वहीं, 10% से 15% लोगों को हर समय नींद न आने की समस्या से जूझना पड़ता है। इन्सोम्निया के कारण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि नींद की कमी ज्यादा दिनों तक बनी रहे, तो लगातार थकावट के साथ ही इंसान को हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, कम इम्युनिटी पॉवर, डायबिटीज जैसी तमाम बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
“जीवन अनमोल है”, इसके मूल्य को समझें इन्सोम्निया के केस में सोने से कम से कम दो घंटे पहले किसी प्रकार की एक्सरसाइज़ नहीं करना चाहिए, साथ ही इस दौरान चाय, कॉफी अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए। बिस्तर आरामदायक होने के साथ ही कम से कम रोशनी होना चाहिए।
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तनाव के दौरान जब भी मन में बुरे ख्याल या कुछ गलत करने के विचार मन में आने लगे, तो भूलकर भी इन्हें अपने तक न रखें, और अपने करीबी से जरूर साझा करें। नशीले पदार्थों से दूरी बनाए रखें। यह ध्यान रखें कि दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं है, दुःख और सुख आते-जाते रहते हैं। दुःख के दौरान अपने मनोबल को बनाए रखें। फाइनेंशियल क्राइसिस आदि होने पर विचलित न हों, यह याद रखें कि क्राइसिस तब ही हुआ है, जब आप एक बेहतर स्थिति में थे, तो खुद पर विश्वास बनाए रखें कि आप एक बार फिर उठ खड़े होंगे। शादी टूटने या ब्रेक अप की स्थिति में मैरिज या कपल काउंसलिंग द्वारा ठीक किया जा सकता है। कुल मिलाकर अपने ज़हन में यह बात उतार लें कि “जीवन अनमोल है”, इसके मूल्य को समझें, बुरी से बुरी स्थिति से उबरा जा सकता है लेकिन तब, जब आप चाहें।
तनाव में होने पर डॉक्टर से परामर्श लेने में लापरवाही न करें; साथ ही अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष तौर पर सचेत रहें; खानपान पर ध्यान दें; बीपी, शुगर आदि को नियंत्रित रखें; रिटायर होने के बाद भी खुद को सामाजिक रूप से जोड़े रखें; खेलकूद, वॉक, योग, एक्सरसाइज़ जारी रखें; दोस्तों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएँ; और वो सभी काम करें, जिनसे आपको खुशी मिलती है।
Source : PR