महात्मा गांधी की अहिंसा है लोकतंत्र की बुनियाद

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(प्रवीण कक्कड़)
आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की पुण्यतिथि है। गांधीजी (Gandhi ji) दुनिया के ऐसे अनोखे राजनेता हैं जिन्हें लोग नेता से बढ़कर संत के रूप में याद करते हैं। संयुक्त राष्ट्र उनके जन्म दिवस को अहिंसा दिवस के रुप में मनाता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर बराक ओबामा (Barack Obama) तक उनमें अपना आदर्श देखते हैं।

आखिर क्या वजह है कि भारत ही नहीं दुनिया की महाशक्ति और अन्य देशों के शीर्ष नेता भी गांधी जी को अपना आदर्श मान रहे हैं? इसकी सबसे बड़ी वजह है महात्मा गांधी का अहिंसक प्रतिरोध का दर्शन। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने जब अहिंसक प्रतिरोध का आधुनिक दर्शन दिया तो यह दुनिया के लिए नई चीज थी।

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उसके पहले विरोध का मतलब होता था आमने सामने की हिंसक लड़ाई। लेकिन गांधीजी ने इस बात को समझा कि अगर कोई सरकार खुद के लोकतांत्रिक होने का दावा करती है और राज्य खुद को कल्याणकारी राज्य कहता है तो वहां राज्य व्यवस्था बंदूक के बल पर नहीं बल्कि कानून और अर्थ तंत्र के जरिए चलती है।

अगर शोषण करने वाले कानूनों को मानने से इंकार कर दिया जाए और सरकार की कर प्रणाली का बहिष्कार कर दिया जाए तो नए जमाने की सरकार बहुत दिन तक टिक नहीं सकती। इस तरह का हमला किसी भी हथियारबंद हमले से ही ज्यादा ताकतवर होगा।

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गांधी जी का यह सूत्र वाक्य पूरी दुनिया ने अपनाया। इसीलिए महात्मा गांधी के आंदोलनों के बाद से दुनिया में जितने भी सामाजिक न्याय के आंदोलन हुए हैं, मोटे तौर पर उनका स्वरूप अहिंसक और गांधी के आंदोलन और जैसा ही रहा है।
भारत में भी हम देखें तो चाहे किसी नए राज्य के निर्माण का आंदोलन हो, नौकरियों में आरक्षण को लेकर होने वाले आंदोलन हो, किसानों का आंदोलन हो, अपनी मांगों के समर्थन में कर्मचारियों का आंदोलन हो, यह सारे आंदोलन अहिंसक तरीके से ही हुए हैं।

लोकतांत्रिक सरकार इस तरह के आंदोलनों पर बहुत ज्यादा जुल्म करने से बचती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि ऐसा करने से जन भावना आंदोलनकारियों के साथ हो जाएगी। भारत में और दुनिया के बहुत से लोकतांत्रिक देशों ने देखा है इस तरह के आंदोलन बिना किसी खून खराबे के आसानी से सरकार बदल देते हैं।

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आधुनिक विश्व को यह महात्मा गांधी का सबसे बड़ा उपहार है, क्योंकि आज का शासन रूल ऑफ़ लॉक से चलता है नाकी रूल ऑफ़ साॅर्ड से। यानी आधुनिक सरकार तलवार के जोर से नहीं कानून के जोर से चलती है। तलवार का मुकाबला तलवार से यानी हिंसा का मुकाबला हिंसा से किया जा सकता है, लेकिन कानून तो आम सहमति से ही बदले जा सकते हैं जिनके लिए जनदबाव यानी अहिंसक आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।

यही लोकतंत्र की बुनियाद है। यही गांधी जी की अहिंसा है। गांधीजी के सत्य, अहिंसा, स्वराज और सत्याग्रह के विचार शाश्वत है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने जमीनी तौर पर अपने विचारों का परीक्षण किया और जीवन में सफलता अर्जित की, जो न सिर्फ स्वयं के लिये अपितु पूरे विश्व के लिये थी।