कमलनाथ जी, अब आप नहीं रहे आलाकमान की आंखों के तारे

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

उप चुनावों में करारी शिकस्त के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने प्रदेश की राजनीति न छोड़ने की बात कही है। अर्थात उन्होंने इस पराजय से भी सबक नहीं लिया। अब भी वे प्रदेश कांग्रेस में कब्जा किए रहना चाहते हैं। कमलनाथ को शायद इस बात का अहसास नहीं है कि अब वे कांग्रेस आलाकमान की आंखों के तारे नहीं रहे। पहले तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष में से कोई एक पद छोड़ना होगा। यह भी संभव है कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें केंद्र की राजनीति में आने का हुक्म सुना दे। बुधवार 11 नवंबर की बैठक में हार की जवाबदारी लेकर यदि कमलनाथ पदों से इस्तीफा दे देते तो यह उनके लिए नैतिक रूप से अच्छा होता और राजनीतिक दृष्टि से भी।

दरअसल, विधानसभा चुनाव में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस आंशिक रूप से सफल होकर सत्ता में आई थी। आंशिक इसलिए क्यों कि उसे दूसरे की बैशाखियों के सहारे सरकार बनाना पड़ी थी। इसके बाद अब तक जो राजनीतिक घटनाक्रम हुए, इससे कमलनाथ असफल प्रदेश अध्यक्ष, असफल मुख्यमंत्री एवं असफल नेता प्रतिपक्ष साबित हुए। इसलिए 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में पार्टी की पराजय के बाद दो में से कोई एक संभावना पर अमल लगभग तय है। एक, कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष में से एक पद छोड़ना होगा। प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की ज्यादा संभावना है क्योंकि यह दायित्व निभाने में वे ज्यादा असफल रहे हैं। दो, कमलनाथ की प्रदेश की राजनीति से विदाई हो सकती है और उन्हें केंद्र की राजनीति में वापस बुलाया जा सकता है। अलबत्ता, इस बारे में फैसला पार्टी हाईकमान को लेना है। यह कमलनाथ से चर्चा के बाद होगा। कमलनाथ के एक पद छोड़ने की स्थिति में उनका स्थान लेने वाले नेताओं के नामों पर चर्चा शुरू हो गई है।

चंबल-ग्वालियर से उत्तराधिकारी संभव….
– कमलनाथ के एक पद छोड़ने की स्थिति में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा तेज हो गई है। दिग्विजय सिंह के बयान से संकेत मिलते हैं कि मौका चंबल-ग्वालियर अंचल के किसी वरिष्ठ नेता को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद यहां कांग्रेस को ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है। इस नजरिए से निर्णय हुआ तो प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व इस अंचल के सबसे वरिष्ठ अपराजेय नेता डा. गोविंदि सिंह को मिल सकता है। कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ा तब भी वरिष्ठता के नाते गोविंद सिंह ही उत्तराधिकारी बनने के हकदार हैं।

मालवा, विंध्य में भी कमजोर हुई कांग्रेस…=
– विधानसभा और उप चुनावों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने विंध्य एवं मालवा में नुकसान उठाया है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मालवा में अच्छी सफलता मिली थी लेकिन उप चुनाव में पार्टी सात में से सिर्फ एक सीट जीत सकी। साफ है कि कांग्रेस अपनी बढ़त बरकरार नहीं रख सकी। विधानसभा चुनाव में विंध्य अचंल में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा ही साफ हो गया था। ऐसे में कमलनाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर इन अंचलों के नेताओं के नामों पर विचार किया जा सकता है। विंध्य से वरिष्ठ नेता अजय सिंह को यह दायित्व मिल सकता है। उप चुनावों में उन्होंने लगभग पूरे प्रदेश का दौरा किया है और प्रदेश के लगभग हर क्षेत्र में उनके समर्थक हैं। मालवा को मौका मिला तो जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा, अरुण यादव जैसे नामों पर विचार हो सकता है।

नए चेहरे पर दांव लगा सकता है नेतृत्व….
– कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी को पार्टी में मौका मिल चुका है। अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष रहे हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व नहीं मिला। ऐसे में पार्टी नेतृत्व एक बार फिर किसी नए एवं युवा चेहरे पर दांव लगा सकता है। पार्टी ने अरुण यादव को मौका दिया था लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाकर कमलनाथ को ले आ गया। अरुण ने कई बार कहा कि चार साल संघर्ष कर जमीन हमने तैयार की, लाठी-डंडे खाए और फसल काटने किसी और को भेज दिया गया। संभव है पार्टी नेतृत्व भविष्य में ऐसा न करे और अंत तक किसी नए चेहरे को आजमाए। यदि ऐसा हुआ तो अरुण यादव, जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल जैसे किसी युवा को मौका मिल सकता है।

कांग्रेस में पूरा बदलाव भी संभव….
– प्रदेश की सत्ता जिस तरह कांग्रेस के हाथ से फिसली है। इसके लिए कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह को भी जवाबदार ठहराया जा रहा है। इसलिए संभव है कि इन दोनों नेताओं को प्रदेश की राजनीति से अलग कर केंद्र की राजनीति में उपयोग किया जाए। ऐसी स्थिति में कमलनाथ को दोनों पद छोड़ना पड़ सकते हैं। एक पद पर किसी वरिष्ठ जबकि दूसरे में किसी युवा को मौका देकर संतुलन साधा जा सकता है।