निरंजन वर्मा
बहुत ही महीन लाइन है पत्रकार और फ़र्जी पत्रकार के बीच .. पत्रकार फर्जी ही होते हैं एक वो फर्जी जो अपनी ख़बरों से लोगो का भला कर अपना फर्ज़ निभा रहा है दूसरे वो जो गलत काम की रसीद काट रहा है …वैसे तो शब्द ही गलत है फर्जी… फर्जी यानी नकली …. पत्रकार नकली कैसे हो सकता है पत्रकार तो असली ही होता है उसके कर्म नकली होते हैं ….वैसे ही नकली होते हैं जैसे कुछ पुलिस वालों क , अधिकारियों और नेताओं के कर्म नकली होते हैं …. शपथ ईमानदारी की खाते हैं ….पर खाते कुछ और है … बदनाम पूरे विभाग को करते हैं …. खैर बात पत्रकारों की करें तो गौर करने वाली बात है कि प्रजातंत्र के जो खम्बे हैं कार्यपालिका , न्यायपालिका , विधायिका और पत्रकारिता …. इसमें सबसे कमजोर ही पत्रकारिता है जिस पे चाहे जब कोई भी टांग ऊंची कर लेता हैं…. क्योंकि इसे ना तो कोई अधिकार मिले हैं और ना ही मिलने की उम्मीद…पैसे की तो बात ही छोड़ दो ….. हां यूज सब करते हैं….. चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के जज को पत्रकारों की जरूरत पड़ती है … अब नेताओं को ही देख लो जब तक मन की हुई तो ठीक है वरना गोदी मीडिया चिल्लाने लगते हैं ….. अपने कर्मों का ठीकरा मीडिया के माथे तुरंत फोड़ देते हैं ……. एक सवाल यह भी है की पत्रकार ब्लैकमेल करते हैं …. करते होंगे …लेकिन ऐसा क्या होता है कि वह लोग ब्लैकमेल होते हैं ….. यह सवाल तो उनसे भी पूछा जाना चाहिए कि आपने क्या ऐसे क्या काले कर्म किए हैं जो पत्रकार आप को ब्लैकमेल कर रहे हैं …
कई आदर्शवादी नेता , प्रशासक अधिकारी , पुलिस अधिकारी रहे हैं जिनकी ईमानदारी की मिसाले आज तक दी जाती है ….. उन पर तो कोई हाथ नहीं डाल पाया क्योंकि उनका दामन पाक साफ था .…..निश्चित तौर से पत्रकारिता में ब्लैक मेलिंग वर्जित है …. होना भी चाहिए लेकिन साथ ही साथ इस बात को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसमें सच्चे ईमानदार पत्रकार अपने कर्मों से ही ना डरने लगे …. वह कोई खबर बनाने जाएं अधिकारी ब्लैकमेलिंग का आरोप उसी तरह लगा दे जैसे लड़की किसी भी लड़के पर छेड़खानी का आरोप लगा दे फिर भीड़ उसे मारने पीटने लग जाए …अगर सच्चाई जाने बगैर ऐसा हुआ तो पत्रकारिता का गला ही घुट जाएगा … लोग सच्ची पत्रकारिता से भी डरेंगे … क्या पता कब कौन आरोप लगा दे …. तुरंत मुकदमा भी दर्ज हो जाएगा और उसी दिन ब्लैकमेल का “टैग लगाकर संस्थान भी घर बिठा देगा …. लगे हाथों बात संस्थानों की भी कर ले ₹16 का अखबार ₹3 में बेच के कैसे करोड़पति हुआ जाता है अपने आप में रिसर्च का विषय है … कैसे सरकारी जमीनों पर कब्जे किए जाते हैं , बड़े-बड़े ठेके लिए जाते हैं , सरकारी महकमों से काम निकलवाये जाते हैं , विज्ञापन लिए जाते हैं यह तो वही बेहतर बता सकते होंगे लेकिन उन्हें ब्लैक मेलिंग की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता , ये विचित्र प्राणी है इनके सारे गुनाहों माफ हैं …. पत्रकारिता की आड़ में ब्लैक मेलिंग और पैसा कमाने की बात हो रही है तो फिर तो कार्रवाई सब पर ही होना चाहिए ना …. क्या छोटा क्या बड़ा …. क्या नौकर … क्या मालिक …कुल मिलाकर पत्रकारिता से गंदगी साफ कर रहे हैं तो पूरी तरह से हो .. एक चिंता यह भी है कि इस मुहिम की आड़ में असल पत्रकार निशाने पर आए तो आने वाली पीढ़ी खबरों से दूर रहकर आर्यन खान जैसे नशेड़ियों के घर के बाहर खड़े रहने में ही अपनी पूरी जीवन बिता देगी …ना कोई खोजी पत्रकारिता करेगा और ना ही कोई सरकार की आलोचना कर पायेगा…….पत्रकार नाम का यह प्राणी इस पृथ्वी पर ढूंढे नहीं मिलेगा …. निश्चित तौर से पुलिस , प्रशासन और प्रेस क्लब इस अभियान से पत्रकारिता की गंदगी साफ करना चाहते हैं लेकिन उन्हें इस बात का भी ध्यान देना होगा की पत्रकारिता कि इस मुहिम को भ्रष्ट अपने काले कारनामों को छुपाने के लिए हथियार ना बना ले ।।।