मॉब लिंचिंग पर दाखिल जनहित याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज

Saurabh Sharma
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जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से मॉब लिंचिंग के बढ़ते मामलों को रोकने और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को लागू करवाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई थी। याचिका में दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं और सरकार उचित कदम नहीं उठा रही है। अधिवक्ता सैयद अली मुर्तज़ा, सीमाब कय्यूम और रज़ा अब्बास के माध्यम से याचिका दाखिल की गई थी।

सरकार की तरफ से दी गई कार्रवाई की जानकारी

सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पक्ष रखते हुए बताया कि सरकार मॉब लिंचिंग की घटनाओं को गंभीरता से ले रही है और इससे जुड़े मामलों में पहले ही उचित कदम उठाए जा चुके हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, समीक्षा बैठकें हो रही हैं और पुलिस विभाग इन मामलों में सक्रियता से कार्रवाई कर रहा है।

याचिका में थीं कई अहम मांगें

PIL में मांग की गई थी कि:- हर जिले में मॉब लिंचिंग रोकने के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जाए और इसकी अधिसूचना जारी हो। डीजीपी को निर्देशित किया जाए कि पिछले 5 वर्षों में हुई मॉब लिंचिंग घटनाओं की जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करें। इन मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएं। पीड़ितों को मुआवजा देने की जानकारी और योजनाओं का विवरण पेश किया जाए। अलीगढ़ में मई 2025 में हुई घटना में पीड़ित को 15 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश जारी किया जाए।

अदालत ने याचिका की पोषणीयता पर उठाया सवाल, याचिका खारिज

जनहित याचिका पर सुनवाई जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की बेंच ने की। सरकार के जवाब से संतुष्ट होकर अदालत ने माना कि इस मामले में पहले से उचित प्रशासनिक कार्रवाई हो रही है। साथ ही कोर्ट ने PIL की पोषणीयता (Maintainability) पर सवाल उठाते हुए याचिका को खारिज कर दिया।