पिरामिड.. विधा की कविता

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By Akanksha JainPublished On: August 26, 2020

महिमा शुक्ला
इंदौर

1. अनिश्चित

ये
नदी
गहरी
लहराती
जिंदगी जैसी
ना रुकी ना मुड़ी
अंतहीन यात्रा सी.

2.  मजबूर

वो
झुका
चेहरा
थके पैर
लड़खड़ाते
चली कान्धों पर
उठाये अपना बोझ..