तुम उस कुर्सी पर बैठने लायक नहीं… MP के इस पुलिस अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, जानें पूरा मामला

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By Raj RathorePublished On: December 5, 2025
Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की इंदौर पुलिस की जांच प्रक्रिया पर बेहद तल्ख टिप्पणी की है। एक ही साल में दर्ज 165 अलग-अलग मामलों में सिर्फ दो लोगों को गवाह बनाए जाने का खुलासा होने पर अदालत ने गंभीर नाराजगी व्यक्त की। इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने संबंधित थाना प्रभारी (TI) इंद्रमणि पटेल को कड़ी फटकार लगाई और उनकी योग्यता पर ही सवाल उठा दिए।

यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली में एक बड़ी चूक को उजागर करता है, जहां जांच की विश्वसनीयता बनाए रखने के बजाय आसान रास्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है। अदालत ने इस चलन को न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया है।

क्या है ‘पॉकेट गवाह’ का पूरा मामला?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सामने यह तथ्य लाया गया कि इंदौर पुलिस ने एक साल के भीतर 165 FIR में दो ही व्यक्तियों को गवाह के तौर पर पेश किया था। इस तरह के गवाहों को आमतौर पर ‘पॉकेट गवाह’ या ‘स्टॉक विटनेस’ कहा जाता है। ये ऐसे लोग होते हैं जो पुलिस के लिए कई मामलों में गवाही देने के लिए आसानी से उपलब्ध रहते हैं, भले ही वे घटना के वास्तविक चश्मदीद हों या नहीं।

इस प्रैक्टिस से केस की जांच प्रक्रिया और उसकी निष्पक्षता पर गंभीर संदेह पैदा होता है। अदालत ने इस बात पर हैरानी जताई कि कैसे दो व्यक्ति एक साल में 165 अलग-अलग आपराधिक घटनाओं के गवाह हो सकते हैं।

तुम उस कुर्सी पर बैठने लायक नहीं

मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए और TI इंद्रमणि पटेल को फटकार लगाई। उन्होंने पुलिस अधिकारी से सीधे तौर पर कहा:

“तुम दुर्भाग्य से उस कुर्सी पर बैठे हो, तुम्हें वहां नहीं होना चाहिए। यह हमारी आत्मा की पीड़ा है।” — न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

अदालत की यह टिप्पणी सिर्फ एक अधिकारी के लिए नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। न्यायमूर्ति ने कहा कि इस तरह की हरकतें पुलिस विभाग की छवि को धूमिल करती हैं और आम लोगों का न्याय से भरोसा उठाती हैं।

जांच प्रणाली पर गंभीर सवाल

सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार ने पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच के तरीकों पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। ‘पॉकेट गवाहों’ का इस्तेमाल अक्सर कमजोर मामलों को मजबूत दिखाने या जांच में की गई लापरवाही को छिपाने के लिए किया जाता है। इससे न केवल निर्दोष लोगों के फंसने का खतरा बढ़ता है, बल्कि असली अपराधी भी सबूतों के अभाव में छूट सकते हैं।

अदालत का रुख स्पष्ट था कि इस तरह की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यह घटना पुलिस सुधारों की तत्काल आवश्यकता को भी रेखांकित करती है, ताकि जांच पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से हो सके।