कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए डॉ. अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम के लिए इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह का फैसला बड़ा झटका साबित हुआ है। भंडारी मिल, जिसे होप टेक्सटाइल मिल के नाम से भी जाना जाता है, की 22.24 एकड़ जमीन (सर्वे नंबर 282/2), जिसकी कीमत 1000 करोड़ रुपये से अधिक है, को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया है। साथ ही, जिला प्रशासन ने गुरुवार, 21 अगस्त को मौके पर जाकर एसडीएम प्रदीप सोनी और उनकी टीम के साथ जमीन पर कब्जा भी कर लिया।
मिल पर कैसे हुआ कांतिलाल बम का कब्जा?
इस मामले की सबसे चौंकाने वाली बात कांतिलाल बम की एंट्री रही। साल 2003 से पहले बम का इस मिल से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन जब मिल के बीआईएफआर के समय नामिनी डीआर गंगोपाध्याय और वीके भूसारे मौजूद थे, सभी ने उन्हें एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त किया। इसके साथ ही बम को सभी प्रकार के कार्यकारी अधिकार भी दे दिए गए। तभी से बम इस मिल के सभी मामलों में औपचारिक चेहरा बन गए हैं। कलेक्टर कोर्ट में पहले चले मामले में और वर्तमान में भी कांतिलाल बम ही इस विवाद में सामने हैं।
कलेक्टर तक कैसे पहुंचा केस ?
तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने अक्टूबर 2012 में इस जमीन को सरकारी घोषित कर दिया था। इसके खिलाफ कांतिलाल बम ने 9766/2012 याचिका दायर की। इस मामले में 1 अप्रैल 2025 को आदेश आया, जिसमें कलेक्टर के फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया गया कि इस पर विधिवत सुनवाई नहीं हुई, और कलेक्टर को इसे फिर से सुनवाई के लिए निर्देशित किया गया। इसके बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने डीएम कोर्ट में मामला रजिस्टर्ड कर कांतिलाल बम को नोटिस जारी किया और उत्तर मांगा।
इस मामले में दो बार नोटिस जारी किए गए और विस्तृत जवाब लिया गया। इसके बाद 20 अगस्त को आदेश जारी हुआ और 21 अगस्त को जिला प्रशासन ने मौके पर जाकर जमीन पर कब्जा कर लिया। हालांकि, जिला कोर्ट की पार्किंग के लिए 4.93 एकड़ जमीन का उपयोग जारी रहेगा, जबकि बाकी जमीन को प्रशासन के कब्जे में लेने का आदेश दिया गया है।
जांच में उजागर हुआ हैरान कर देने वाला तथ्य
तत्कालीन आईएएस आश त्रिपाठी ने नजूल अधिकारियों से इस मामले की जांच करवाई। कमेटी ने पाया कि जिस 8.24 एकड़ जमीन पर मिल होने की बात कही जा रही थी, वहां कोई मिल मौजूद नहीं थी, यानी यह इंडस्ट्रियल यूज की जमीन पहले ही समाप्त हो चुकी थी। वहीं, 1982 में तय शासन शर्तों के अनुसार, केवल 4.5 एकड़ जमीन पर वाणिज्यिक और आवासीय न्यू सियागंज बनाना था, लेकिन इसके विपरीत 10.21 एकड़ जमीन पर यह विकसित कर बेच दी गई। शेष 12 एकड़ जमीन खाली है और इसे बाउंड्रीवाल से घेरा गया है।
इस मामले में कांतिलाल बम ने कलेक्टर कोर्ट में दावा किया कि 1996 के आदेश के तहत सभी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी मिली थी और न्यू सियागंज के विकास से प्राप्त 14.25 करोड़ रुपये से पूरी देनदारी निपटा दी गई। हालांकि, कलेक्टर कोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया और लीज उल्लंघन के आधार पर सभी जमीन को शासकीय घोषित करते हुए कब्जे में लेने का आदेश दिया।
BJP में शामिल होने के पीछे जमीन का अहम कारण
कहा जा रहा है कि इस जमीन को सुरक्षित रखने के लिए ही बम कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और किसी मंत्री के करीब पहुंचे। लेकिन यह योजना सफल नहीं रही। बीजेपी में जाने के बावजूद, उनके पिता के हाथ से करोड़ों की यह जमीन निकल गई, जिस पर वे वर्षों से कब्जा बनाए हुए थे।
कैसे जारी किया गया नोटिस
कांतिलाल बम को जब पहला नोटिस मिला, तो उन्होंने कलेक्टर कोर्ट में न्यायिक क्षेत्राधिकार को ही चुनौती दे दी और कहा कि उन्हें इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं है। इस पर कलेक्टर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राजस्व और पट्टेदार जमीन से जुड़े मामलों को सुनने का अधिकार उन्हें कानून के तहत प्राप्त है। साथ ही, हाईकोर्ट ने भी इस केस को फिर से कलेक्टर कोर्ट में सुनवाई के लिए भेजा है।
इसके बाद कांतिलाल बम को पुनः नोटिस जारी किया गया। उन्होंने विस्तार से जवाब में कहा कि यह जमीन कंपनी को 1939 में होलकर स्टेट से 99 साल की लीज पर मिली थी। समय-समय पर शासन के आदेश जारी होते रहे। 1982 में भी सरकार ने उनके पक्ष में आदेश दिए, और बाद में बीआईएफआर में जमीन को बिक्री के अधिकार भी प्रदान किए गए।