अब देव दुर्लभ नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण हो गया है भाजपा कार्यकर्ता होना- अरविंद तिवारी

Author Picture
By Bhawna ChoubeyPublished On: May 31, 2023

कल यानि 30 मई को उमेश शर्मा का जन्मदिन था। फेसबुक पर इस दिवंगत आत्मा को बधाई देने वालों की कतार थी। वाट्सएप के अलग-अलग ग्रुप पर उनसे जुड़े किस्से प्रसारित हो रहे थे। उन्हें महान नेता, जुझारू कार्यकर्ता, प्रखर वक्ता और लोगों के सुख-दुख में सहभागी रहने वाला नेता बताते हुए श्रद्धांजलि देने की होड़ लगी थी। ऐसा लग रहा था मानो उमेश जी के जाने से इन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

कुछ पीछे चलते हैं, शंकरबाग स्थित उमेश शर्मा के पुस्तैनी निवास पर उनकी पार्थिव देह को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए लोगों की कतार लगी थी। पार्टी के बड़े-बड़े नेता और छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंच रहा था। अंतिम यात्रा में भी भारी भीड़ थी और घर से लेकर जूनी इंदौर मुक्तिधाम तक कारवां सा था। यहीं पर बात शुरू हो गई थी कि शहर के मुद्दों पर और पार्टी के भीतर व बाहर तो उमेश भाई हमेशा मुखर रहते थे, लेकिन घर-परिवार को लेकर हमेशा लापरवाह रहे। बैंक बैलेंस तो दूर की बात है, अपने पीछे काफी कर्ज भी छोड़ गए। अब क्या होगा, घर-परिवार कैसे चलेगा, जैसे तमाम मुद्दों पर भांति-भांति की राय सामने आने लगी। पार्टी के कद्दावर लोगों की बात से लगा कि इस देव-दुर्लभ कार्यकर्ता के परिवार की सबको बहुत चिंता है और जो उमेश जीते-जी नहीं कर पाए, वह उनके परिवार के लिए तो हो ही जाएगा।

अब देव दुर्लभ नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण हो गया है भाजपा कार्यकर्ता होना- अरविंद तिवारी

कुछ दिन बाद पता चला कि पार्टी के 100-50 लोगों की एक सूची बन गई है। यह सब एक निश्चित राशि अंशदान के तौर पर देंगे और जो भी पैसा इकट्ठा होगा उससे सबसे पहले बैंक का कर्ज चुकाया जाएगा और जो पैसा बचेगा, उससे कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी जाएगी, ताकि परिवार के गुजर-बसर में कोई दिक्कत न आए। यह बात भी सामने आई कि कैलाश विजयवर्गीय इस मामले में बहुत संवेदनशील हैं और उन्होंने उमेश के कुछ स्नेहियों को आश्वस्त कर दिया है कि आप लोग चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। दादा दयालु यानि रमेश मैंदोला के स्वर भी कुछ ऐसे ही थे। उमेश के प्रति बहुत स्नेह रखने वाली सुमित्रा महाजन और मालिनी गौड़ यानी ताई मां और भाभी मां की चुप्पी भी सब को खल रही हैं। मंत्री तुलसी सिलावट के सामने जब भी यह मामला आता है वह एक ही बात कहते हैं कि उमेश के परिवार की मदद तो करना है।

मेल-मुलाकात का दौर शुरू हुआ और उम्मीद जगी कि जल्दी ही इस काम को निपटा लिया जाएगा। फिर सुनने में आया कि इस काम को व्यक्तिगत स्तर पर करने के बजाय पार्टी के सर्वशक्तिमान नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के माध्यम से आगे बढ़ाया जाए। इसके पीछे दो बातें थी, एक तो पार्टी के माध्यम से यदि मदद की जाती है तो अच्छा संदेश जाएगा और दूसरा यह कि कोर्ई भी नेता इस काम में हाथ डालकर हमेशा तीखे तेवर रखने वाले रणदिवे की नाराजगी का शिकार नहीं बनना चाहता था। उमेश से स्नेह रखने वाले पत्रकार साथियों ने जब अपने अंशदान की पहल की तो कहा गया कि पहले हमें कुछ करने दो, फिर आपसे भी सहयोग ले लेंगे।

बस, यहीं से बात आई-गई होना शुरू हो गई। एक धेला इकट्ठा नहीं हुआ। होना भी नहीं था और यह संकेत तो उसी दिन से मिलने लगा था जब अपने एक कद्दावर नेता के असामयिक निधन के बाद पार्टी ने उनकी याद में एक श्रद्धांजलि सभा करना भी उचित नहीं समझा था। खैर, इसमें कुछ नया नहीं था, क्योंकि इंदौर में जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा की नींव जमाने वाले विष्णुप्रसाद शुक्ला और फूलचंद वर्मा के निधन के बाद भी ऐसा ही हुआ था। उमेश के परिवार की मदद की पारिवारिक स्नेही भी अब थक-हारकर घर बैठ गए और तब से लेकर आज तक व्यक्तिगत स्तर पर जो मदद शर्मा परिवार की कर सकते हैं, वह ईमानदारी से कर रहे हैं। उमेश का परिवार अपने बलबूते पर गाड़ी खींच रहा है।

सवाल यह खड़ा होता है कि एक तरफ तो भाजपा में कार्यकर्ता को देव-दुर्लभ बताया जाता है, उससे बहुत सी अपेक्षाएं रखी जाती हैं, यह कहा जाता है कि हमारे कार्यकर्ता 24 घंटे सातों दिन पार्टी के लिए समर्पित रहता है और पार्टी भी उसकी बहुत चिंता रखती है। उसका परिवार हमारा परिवार है। लेकिन उमेश शर्मा के निधन के बाद जो नजारा देखने को मिल रहा है, उससे तो यही संदेश जा रहा है कि पार्टी उन्हें भूल चुकी है। उनके परिवार की किसी को चिंता नहीं है। कुछ लोग तो यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि जीते-जी जो लोग उमेश शर्मा से पार नहीं पा सके थे, अब वे उनके परिवार से हिसाब बराबर कर रहे हैं।

सवाल भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे से भी किया जाना चाहिए कि आखिर अपने एक दिवंगत साथी के परिवार की मदद के लिए जो पहल हुई थी, वह आगे क्यों नहीं बढ़ पाई। आखिर क्यों उनके दिव्यांग बेटे को जो पूरी तरह से काबिल है सरकारी नौकरी दिलवाने की पहल नहीं की गई। पिछले 25 साल में हमारे सामने अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जब विशेष परिस्थितियों में नियमों को शिथिल करते हुए सरकारी नौकरी दी गई है। सुनने में यह आ रहा है कि सिटी ट्रांसपोर्ट कंपनी के माध्यम से उमेश के बेटे को जिस नौकरी का प्रस्ताव दिया गया था, उससे अच्छी नौकरी तो उसे निजी क्षेत्र के एक दर्जन से ज्यादा संस्थान देने को तैयार थे।

अपने देव-दुर्लभ कार्यकर्ताओं की हमेशा चिंता करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो इंदौर से रॉबर्ट नर्सिंग होम में शर्मा की पार्थिव देह के समीप खड़े होकर उनके परिजनों से कहा था कि आप चिंता मत करो मैं आपके साथ हूं। ‌भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने हजारों लोगों की मौजूदगी जूनी इंदौर मुक्तिधाम में हुई शोकसभा मैं कहा था कि शर्मा का परिवार हमारा परिवार है और उसकी चिंता हम करेंगे। दोनों नेताओं की स्मृति भी बहुत तीक्ष्ण है। इन दोनों नेताओं को चाहिए कि वे पार्टी के प्रति ताउम्र समर्पित रहे और हर मोर्चे पर ईमानदारी से काम करने वाले नेता के परिवार के लिए कुछ करवा दें।

वैसे इन दोनों से पहले अपने रुतबे, दादागिरी और अपनी सदाशयता के लिए पहचाने जाने वाले इंदौर के भाजपा नेताओं को भी एक बार फिर इस मुद्दे पर कुछ सोचना चाहिए। ताकि यह संदेश न जाए कि जो कुछ है वह आदमी के जिंदा रहने तक ही है, उसके बाद कुछ नहीं। शायद यही कारण है कि भाजपा के कई नेता अभी खुद को इतना ‘मजबूत’ करने में लगे हुए हैं कि बाद में उनके परिवार को कोई दिक्कत न हो। उनके साथ किसी तरह की अनहोनी होने पर उनके परिजनों को वह न भुगतना पड़े जो अभी उमेश के परिजनों को भुगतना पड़ रहा है। उमेश जैसी गलती को वे दोहराना नहीं चाहते।