मध्य प्रदेश सरकार ने इस मानसून सीजन में एक अनोखी और सराहनीय पहल करते हुए ‘एक पेड़ माँ के नाम 2.0’ अभियान शुरू करने की घोषणा की है। यह कार्यक्रम 5 जून 2025 से प्रदेशभर के स्कूलों में चलाया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य बच्चों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देना और उन्हें सतत विकास में भागीदार बनाना है। स्कूल शिक्षा विभाग ने इस अभियान को व्यापक रूप देने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
राज्यभर में इस अभियान के तहत 30 सितम्बर 2025 तक 50 लाख पौधों के रोपण का लक्ष्य रखा गया है। हर जिले में औसतन एक लाख पौधे लगाए जाएंगे। इस विशाल कार्य में स्कूली छात्र-छात्राएं ईको क्लब की सहायता से भाग लेंगे। विद्यार्थियों के साथ-साथ उनकी माताओं का भी इस अभियान में भावनात्मक जुड़ाव सुनिश्चित किया गया है, हर पौधे के साथ एक पट्टिका लगाई जाएगी जिसमें छात्र और उसकी माँ का नाम अंकित होगा।

स्थानीय प्रजातियों को मिलेगा महत्व
शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि पौधरोपण में स्थानीय और क्षेत्रीय प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि वे उस क्षेत्र की जलवायु और भूगोल के अनुकूल रहें। इसके अलावा बच्चों को पौधों की प्रजातियों और उनके लाभ की जानकारी भी दी जाएगी जिससे उनका जुड़ाव और समझ दोनों बढ़े।
समिति और जिम्मेदारियाँ तय
इस अभियान की सफलता के लिए हर जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा। इसमें जिला शिक्षा अधिकारी, वनमंडल अधिकारी, जिला परियोजना समन्वयक, स्कूल प्राचार्य और समाज के प्रमुख नागरिक शामिल होंगे। जिला शिक्षा अधिकारी इस समिति के नोडल अधिकारी होंगे जबकि जिला परियोजना समन्वयक को सहायक नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पौधरोपण स्थल और देखरेख की योजना
पौधरोपण स्कूल परिसर, स्कूल से जुड़ने वाली सड़कों, सार्वजनिक स्थलों और अमृत सरोवर के आसपास किया जाएगा। साथ ही लगाए गए पौधों की देखरेख और सुरक्षा के लिए भी स्थानीय स्तर पर जिम्मेदारियाँ तय की जाएंगी, ताकि वे सही से विकसित हो सकें।
शिक्षा विभाग ने इस बार तकनीक को भी अभियान से जोड़ने की योजना बनाई है। हर पेड़ की प्रजाति के लिए एक क्यूआर कोड तैयार किया जाएगा, जिसे स्कैन कर पौधे की बॉटनिकल जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। इससे विद्यार्थियों को डिजिटल माध्यम से भी ज्ञान मिलेगा।
कक्षा अनुसार निगरानी व्यवस्था
कक्षा 9 से 12 तक के स्कूलों में इस कार्यक्रम की निगरानी की जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारी को दी गई है, जबकि कक्षा 6 से 8 तक के स्कूलों की निगरानी जिला शिक्षा केन्द्र के परियोजना समन्वयक करेंगे। 4 जून तक तैयारियाँ पूरी करने के निर्देश जारी किए गए हैं।