300 साल पुरानी अहिल्या बावड़ी का हुआ कायाकल्प, मुख्यमंत्री मोहन यादव करेंगे लोकार्पण

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By Srashti BisenPublished On: May 11, 2025
Indore News

इंदौर के कनाड़िया क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक अहिल्या बावड़ी, जिसे लगभग तीन शताब्दी पूर्व लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने बनवाया था, अब पुनः अपने गौरवशाली स्वरूप को प्राप्त कर लिया हैं। वर्षों की उपेक्षा के बाद यह बावड़ी जर्जर हो चुकी थी, लेकिन इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) द्वारा कराए गए जीर्णोद्धार कार्य ने इसे फिर से जीवंत कर दिया है। इस कार्य पर लगभग एक करोड़ रुपए की लागत आई है, और अब यह स्थल न केवल ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक बनेगा, बल्कि एक अहम जलस्रोत के रूप में भी काम करेगा।

मुख्यमंत्री मोहन यादव करेंगे लोकार्पण

इसी बावड़ी के सौंदर्यीकरण के क्रम में यहां लोकमाता अहिल्या की प्रतिमा स्थापित की जा रही है और एक मंदिर का भी निर्माण किया जा रहा है। इस ऐतिहासिक धरोहर को जनता के लिए पुनः समर्पित करने हेतु मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव रविवार को विशेष रूप से यहां पहुंचेंगे। इस अवसर पर वे कनाड़िया तालाब के गहरीकरण अभियान में श्रमदान भी करेंगे, जिससे क्षेत्रीय जलसंवर्धन को और बल मिलेगा।

कनाड़िया टीपीएस योजना में शामिल है ऐतिहासिक बावड़ी

बायपास मार्ग के समीप स्थित कनाड़िया क्षेत्र में वर्तमान में टीपीएस 5 आवासीय योजना विकसित की जा रही है, जिसमें यह बावड़ी भी शामिल है। वर्षों पूर्व यह बावड़ी क्षेत्र के लिए एक प्रमुख जलस्रोत हुआ करती थी। इसके जीर्ण दशा में पहुंचने पर जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने इसके संरक्षण की पहल की और IDA को इसके जीर्णोद्धार के निर्देश दिए।

मंत्री सिलावट की पहल से मिली नई दिशा

सितंबर माह में कनाड़िया क्षेत्र के दौरे के दौरान मंत्री सिलावट को जानकारी मिली कि यह बावड़ी अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित की गई थी, और वर्तमान में कुछ लोग इसे भरकर निजी उपयोग की योजना बना रहे हैं। उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप कर किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ पर रोक लगाई।

तत्पश्चात अधिकारियों के साथ बैठक कर जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण की रूपरेखा तैयार की गई और तेज़ी से काम शुरू कराया गया। अब यह कार्य अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही क्षेत्रवासियों को एक ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ एक उपयोगी जलस्रोत भी प्राप्त होगा।

वर्षा जल संचयन और जल पुनर्भरण में होगी सहायक

पुनर्जीवित की गई अहिल्या बावड़ी अब वर्षा जल संचयन, भूजल स्तर बढ़ाने और ग्रामीण जल आपूर्ति में सहायक सिद्ध होगी। यह सिर्फ एक सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत उपयोगी पहल है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से राहत मिल सकती है।