इंदौर शहर ने रविवार को एक और मानवीय मिसाल देखी, जब हाईकोर्ट एडवोकेट अभिजीता राठौर (38 वर्ष) के अंगदान के लिए 65वां ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। अभिजीता के लिवर और दोनों किडनियों को इंदौर के अलग-अलग अस्पतालों तक पहुँचाने के लिए प्रशासन, पुलिस और अस्पतालों के बीच तेज़ और सटीक समन्वय हुआ। यह कदम न केवल तीन लोगों को नई ज़िंदगी देने वाला साबित हुआ, बल्कि इंदौर की मानवता और संवेदना की भावना को भी जीवंत कर गया।
तीन अस्पतालों में हुआ अंगों का ट्रांसप्लांट
मुस्कान ग्रुप पारमार्थिक ट्रस्ट से जुड़े सेवादार जीतू बगानी और संदीपन आर्य ने बताया कि अभिजीता का लिवर सीएचएल हॉस्पिटल, एक किडनी जुपिटर हॉस्पिटल और दूसरी किडनी चोइथराम हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट के लिए भेजी गई। तीनों अस्पतालों में अंगों को समय पर पहुँचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया गया, जिसमें पुलिस ने मिनटों में रास्ता खाली करवाया। शेष अंगों की एलोकेशन प्रक्रिया भी पूरी की जा रही है, ताकि ज़रूरतमंद मरीजों को जल्द से जल्द जीवनदान मिल सके।
अभिजीता को कुछ समय पहले लंग्स इंफेक्शन हुआ था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उपचार के दौरान ब्रेन में खून का थक्का जम जाने के कारण उनकी स्थिति गंभीर हो गई और शनिवार को डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। परिवार के लिए यह पल बेहद कठिन था, लेकिन उन्होंने साहस दिखाते हुए अंगदान का निर्णय लिया ताकि अभिजीता किसी और की सांसों में, किसी और की धड़कनों में जीवित रह सकें।
इंजीनियर से एडवोकेट तक का प्रेरणादायक सफर
अभिजीता राठौर का जीवन संघर्ष, समर्पण और प्रेरणा का संगम था। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में प्रथम श्रेणी से डिग्री हासिल की। इसके बाद, जब वे गर्भवती थीं, तब भी उन्होंने अपने सपनों को विराम नहीं दिया इसी दौरान उन्होंने एलएलबी (कानून) की पढ़ाई पूरी की। उनकी जिज्ञासा यहीं नहीं रुकी। आगे चलकर उन्होंने क्रिमिनोलॉजी में एलएलएम (मास्टर ऑफ लॉ) की डिग्री भी प्राप्त की और कानून की दुनिया में अपने ज्ञान और संवेदनशीलता से एक अलग पहचान बनाई।
परिवार के बारें में संतुलन की मिसाल
अभिजीता के पति प्रवीण राठौर रेलवे कॉन्ट्रेक्टर हैं। परिवार में 13 वर्षीय बेटी पर्णिका और 5 वर्षीय बेटा अभिरत्न हैं। वे अपने बच्चों के साथ बेहद घुली-मिली रहती थीं और उनके भविष्य को लेकर हमेशा सजग रहती थीं। उनके बड़े भाई अभिजीत सिंह राठौर, जो इंदौर में लोक अभियोजक (Public Prosecutor) हैं, ने बताया कि अभिजीता ने उनकी प्रेरणा से ही वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था। शुरुआत में उन्होंने हाईकोर्ट और जिला न्यायालय, दोनों जगह काम किया, और अपने मिलनसार स्वभाव तथा गहरी कानूनी समझ से लोगों के बीच खास पहचान बनाई।
मानवता की मिसाल बनीं अभिजीता
अभिजीता राठौर न केवल एक कुशल एडवोकेट थीं, बल्कि समाज के प्रति गहरी संवेदना रखने वाली इंसान भी थीं। उनकी मुस्कान, उनका आत्मविश्वास और दूसरों के लिए कुछ करने का जज़्बा, उन्हें खास बनाता था। आज उनके जाने के बाद भी, उनके अंगों के ज़रिए तीन से अधिक लोगों को नई ज़िंदगी मिली है। यह सच्चे अर्थों में जीवन का पुनर्जन्म है जो अभिजीता को हमेशा जीवित रखेगा।
मानवता की नई मिसाल
ग्रीन कॉरिडोर के दौरान अस्पताल से अस्पताल तक अंगों को ले जाने की प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में पूरी हुई। यह न केवल चिकित्सा प्रणाली की सफलता है, बल्कि उस परिवार के साहस की भी सराहना है, जिसने दुःख के बीच भी दूसरों की जिंदगी रोशन करने का निर्णय लिया। इंदौर ने एक बार फिर साबित किया कि यह शहर सिर्फ स्मार्ट नहीं, दिलदार भी है।










