जयराम शुक्ल
आज से कोई बारह-चौदह साल पहले जब यूपीए सरकार ने यूनिक आईडी की अवधारणा दी थी तब स्तंभकार व मैनेजमेंट गुरू रघुरामन ने इसकी बड़ी ही दिलचस्प सरल व सहज व्याख्या की थी। यही यूनिक आईडी को आधार कहा जाता है। यह आधार नंबर अब जीवन का आधार बनने के करीब है। पिछले माह इंदौर में था तो होटल वाले ने आधार की महत्ता समझा दी। रुकने के लिए पैन कार्ड के साथ लिखित अंडरटेकिंग देनी पड़ी कि मैं वही हूँ जो आधार में दर्ज हूँ। अब अपनी बल्दियत के ऐसे भी प्रूफ देने पड़ेते हैं यदि आधार नहीं है तो।

कुछ दिन बाद ये होगा कि यदि आप आधार में दर्ज नहीं हैं तो जीते जी ये समझ लीजिए कि इस दुनिया में ही नहीं हैं। आधार आपके जिंदा होने का सबूत बनने जा रहा है। अस्पताल में डाक्टर आपकी साँस चल रही है या नहीं बाद में देखेंगे, आधार की नब्ज पहले। क्योंकि आधार ही बताएगा कि आप वहीं आदमी हैं जिसे वे देखने के बाद डाटा की यथेष्ट फीडिंग करेंगे। कवि लोग इसीलिये आजकल तुलसीदास की वो चौपाई पकड़े हुए हैं कि..कलयुग केवल नाम अधारा..। कवि त्रिकालदर्शी वैग्यानिक होता है। बाल्मीकि विग्यान बिशारद, अरु घटसंभव(अगस्त्य) मुनि विग्यानी। सो तुलसी पंद्रहवीं सदी में ही घोषणा कर गए कि कलयुग केवल नाम ‘अधारा’।

ये आधार कार्ड जनम और करम कुंडली दोनों बनने जा रहा है दुख, सुख, जीवन, मरण, गृहस्थी, धंधा-पानी, आपकी प्रवृति ये सब कुछ इसी में दर्ज होगा। आप भले ही अपने घर में कपड़े पहने इतराते रहें पर हुकूमत आधार कार्ड के जरिए आपके नंगेपन पर नजर रखेगी। कुछ ऐसा इंतजामात पिछली सरकार कर गई है और ये सरकार उसे द्रुतगति से आगे बढ़ा रही है। तो हाँ..रघुरामन जी वाले किस्से की बात कर रहा था। वो कुछ इस तरह का फिक्शन था.. मिस्टर एक्स नेे फोन पर एक फूडआउटलेट को पिज्जे का आर्डर दिया। आउटलेट वाले ने आर्डर बुक करने से पहले पूछा..योर आधार नंबर प्लीज़..? मि.एक्स ने बता दिया..।
उधर से आवाज आई.. तो आप फला स्ट्रीट के गली नंबर इतने में इस अपार्टमेंट के चौथे माले के इस नंबर के फ्लैट में रहते हैं मिस्टर एक्स..।
हाँ रहता हूँ तुम्हें कैसे पता..। मुझे अब आपके बारे में सबकुछ पता है। ओह..तो..। आपके पिज्जे में क्रीम कम और शुगर फ्री रहेगा..। क्यों…? इसलिए कि आपको डायबिटीज है। हाँ वो तो है..लेकिन तुमसे क्या मतलब,ज्यादा बकवास नहीं.. आर्डर लो पिज्जा भेजो। आप ज्यादा भड़भड़ाएं नहीं धैर्य रखें.. क्योंकि आप दिल के भी मरीज हैं,ब्लडप्रेशर बढ जाएगा। ..तू पिज्जा वाला है कि डाक्टर …? ज्यादा दिमाग खराब न कर, नहीं तो..। नहीं तो क्या.?
तेरी ऐसी कम तैसी कर दूंगा..। मिस्टर एक्स दो साल पहले आप इसी तरह किसी दूकानदार से भिड़कर थाने तक पहुंच चुके हैं। कोर्ट ने आपको आचरण सुधारने की हिदायत के साथ प्रोबेशन पर छोड़ा है। ..मिस्टर एक्स जरा ढीले पड़े..बोले पिज्जा तो भेज दे मेरे बाप। ..ओके लेकिन वो आपकी बच्ची और दोनों बेटे घर में नहीं हैं ..क्या.?.एक पिज्जे से काम चल जाएगा..? मिस्टर एक्स ने माथा पकड़ लिया.. बुदबुदाए हे प्रभु अब ये जमाना कि मेरा सबकुछ इस बनिए को भी पता। वो दिन अब बहुत नजदीक है जब आदमी आदमी नहीं रह जाएगा। वह आँकडों के नंबर में बदल जाने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। उसकी भूख, उसकी तृप्ति, उसकी खुशी, उसका गम, उसका आनंद,उसका गुस्सा सबकुछ आँकड़ों के सूचकांक में व्यक्त होगा। ये सबकुछ प्रतिशत के हिसाब से सामने आएगा।
मनुष्य का जीना और मरना सबकुछ जल्दी ही अंकगणित में सिमट जाएगा। जैसे कुछ दिन पहले अस्पताल में एकमुश्त थोक में बच्चे मरे तो मंत्री ने बड़े इत्मीनान के साथ सफाई दी-पिछले पांच सालों में इस सीजन में औसतन इतने प्रतिशत बच्चे मरे थे मेरे कार्यकाल में मरने का प्रतिशत घटा है। इस नए जमाने में मौत के घटे हुए प्रतिशत भी कामयाबी की कहानी हैं। इस पर भी एवार्ड, रिवार्ड, इन्क्रीमेंट मिलते हैं। सलाना रिपोर्ट के बाद जश्न भी होता है। सीमा पर जवान मरने के बाद आँकडों में बदल जाते हैं। इस वर्ष इतने, तो गए वर्ष उतने। आँकडे़ मानवीय संवेदनाओं को सोख लेते हैं। ये रंगहीन, गंधहीन, ठोस, तरल और द्रव्य के रूप में होते हैं। आँकडों में अंकों की घटबढ़ व्यवस्था में कोई कयामत नहीं लाती। कयामत तो उसके घर आती है जिसका बेटा या प्रियजन आँकडों में बदल जाता है।
कयामत या प्रलय की प्रचलित और प्रचारित थ्योरी को मैं नहीं मानता। कयामत भी किश्तों में आती है, अपने, अपने हिस्से की। जिस गति से समाज का डिजिटलाइजेशन हो रहा है तो आने वाला कल कैसे होगा यह समझ अभी से बननी शुरू हो जानी चाहिए। यानी दिमागी तौरपर हम अभी से तैयार हो लें कि आने वाले दिनों में हम आदमी नहीं महज एक नंबर होंगे जो आँकडों के समुच्चय में शामिल कर दिए जाएंगे। हमारे न रहने के बाद हमारे लिए, रोना, पछताना, नफे, नुकसान का हिसाब भी आँकडों का सूचकांक बताया करेगा।
पुनश्चः-आधार कार्ड वाकई चमत्कारिक है। भविष्य में इसी के आधार पर शादी के रिश्ते तय हुआ करेंगे। पहले लड़की लड़के के आधार कार्ड का मिलान होगा. बाकी सभी प्रक्रियाएं बाद में। बाराती, नात रिश्तेदार भी आधारकार्ड के आधार पर न्योते जाएंगे क्योंकि इवेंट मैनेजमेंट कंपनी इसी आधार पर व्यवस्थाएं किया करेंगी। होटल बुक कराने से लेकर कौन क्या खाएगा, क्या पिएगा ये सब तो आधार कार्ड के ही आधार पर तय होगा ना। हम इस डिजिटल युग की नई सभ्यता की ओर बढ रहे हैं। इतिहास के कालखंड में ..जैसे प्रस्तरयुग, लौहयुग, प्लास्टिक युग दर्ज हैं उसी तरह अब सभ्यता का डिजिटल युग भी अपनी उपस्थिति के लिये दस्तक दे रहा है। एक ऐसा युग जिसमें आंकडों ने संवेदनाओं को सोख लिया है और मनुष्य की उत्सवधर्मिता के आनंद को निचोडकर उसे इवेंट(घटना) में बदलके रख दिया है।