पिछड़े वर्ग के व्यापक हित में मध्य प्रदेश सरकार के गंभीर प्रयासों को मिली सफलता

Author Picture
By Raj RathorePublished On: August 12, 2025

मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 से जुड़े ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर चल रहे विवाद में आज सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसला लिया। अदालत ने राज्य सरकार के पक्ष में प्रस्तुत तर्कों से सहमति जताते हुए मामले की गंभीरता को देखते हुए 23 सितंबर 2025 से “टॉप ऑफ द बोर्ड” पर रोज़ाना सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इसका मतलब है कि इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर प्रतिदिन सुना जाएगा।

राज्य सरकार का पक्ष और कानूनी टीम की दलीलें

राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम. नटराज और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने अदालत में विस्तृत तर्क रखे। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा ओबीसी आरक्षण पर लगाई गई रोक के कारण नई भर्तियों की प्रक्रिया ठप पड़ी हुई है। इससे न केवल प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं बल्कि बड़ी संख्या में योग्य उम्मीदवारों के रोजगार के अवसर भी रुक गए हैं।

भर्ती प्रक्रिया पर असर और सामाजिक न्याय का मुद्दा

सरकार के वकीलों ने कहा कि यह केवल आरक्षण नीति का मसला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समान अवसर और प्रशासनिक दक्षता से भी सीधा जुड़ा हुआ है। रोक के चलते विभिन्न विभागों में खाली पदों को भरना संभव नहीं हो पा रहा है, जिससे सरकारी सेवाओं की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख और आगे की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बात से सहमति जताते हुए माना कि यह मामला संवेदनशील है और इसका असर व्यापक स्तर पर पड़ेगा। अदालत ने कहा कि लंबी देरी से न केवल भर्ती प्रक्रियाएं बाधित होंगी, बल्कि कई उम्मीदवारों का भविष्य भी अधर में लटक जाएगा। इसलिए, 23 सितंबर 2025 से प्रतिदिन सुनवाई करते हुए इस विवाद का जल्द समाधान निकालने की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा।