हरिद्वार में बहुचर्चित भूमि घोटाले में उत्तराखंड सरकार ने बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई करते हुए जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह और आईएएस वरुण चौधरी को निलंबित कर दिया है। इस जमीन सौदे में कुल 12 अधिकारियों पर गाज गिरी है, जिनमें दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी शामिल हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में उठाए गए इस कदम को प्रशासनिक सुधार और भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की मिसाल माना जा रहा है।

जांच में सामने आए गंभीर आरोप
शहरी विकास विभाग द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह को दोषी ठहराया है। आरोपों के अनुसार, डीएम ने नगर निगम के प्रशासक के तौर पर अपने संवैधानिक दायित्वों की अनदेखी की, निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया और शासनादेशों की अवहेलना करते हुए निगम के हितों को नुकसान पहुँचाया। इस रिपोर्ट के आधार पर न केवल उन्हें निलंबित किया गया, बल्कि राज्यपाल की ओर से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुमति भी प्रदान कर दी गई है।
सिस्टम के शीर्ष अधिकारियों पर सीधी कार्रवाई
यह पहली बार है जब उत्तराखंड सरकार ने उच्च प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारियों के खिलाफ इतनी कठोर कार्रवाई की है। घोटाले का केंद्र बना 54 करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गई कृषि भूमि, जो कि नगर निगम के लिए अनुपयुक्त थी, अब प्रदेश में पारदर्शिता की कमी और सत्ता का दुरुपयोग दर्शाने वाला उदाहरण बन गई है।
तीन मुख्य अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध
- कर्मेन्द्र सिंह (जिलाधिकारी, हरिद्वार): भूमि खरीद की अनुमति और प्रशासनिक स्वीकृति देने में संदेहास्पद भूमिका।
- वरुण चौधरी (पूर्व नगर आयुक्त, हरिद्वार): भूमि खरीद प्रस्ताव पारित करने में प्रक्रिया की अनदेखी और वित्तीय अनियमितताओं की मुख्य भूमिका।
- अजयवीर सिंह (एसडीएम): भूमि निरीक्षण और सत्यापन में लापरवाही, जिससे शासन को भ्रामक रिपोर्ट मिली।
इन तीनों अधिकारियों को निलंबित करते हुए उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई है।
अन्य अधिकारियों पर भी कार्रवाई
इसके अतिरिक्त, नगर निगम हरिद्वार की वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की, रजिस्ट्रार कानूनगो राजेश कुमार, तहसील के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास को भी इस घोटाले में संदिग्ध पाए जाने पर तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया गया है।
अब तक हो चुकी कार्रवाई
जांच के बाद पहले चरण में सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को दोषी मानते हुए निलंबित किया गया था। वहीं, संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार रद्द कर दिया गया है। वे सेवानिवृत्त होने के बाद सेवा विस्तार पर थे। उनके खिलाफ सिविल सर्विसेज रेगुलेशन की धारा 351(ए) के अंतर्गत अनुशासनिक कार्रवाई की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो गई है।