प्रदेश में लगातार बारिश और बाढ़ जैसी स्थिति बनने के बावजूद किसानों ने स्वेच्छा से फसल बीमा कराने में कोई खास रुचि नहीं दिखाई है। बीमा कराने के लिए जो आवेदन आए हैं, उनमें ज्यादातर वे किसान शामिल हैं जिन्होंने खरीफ सीजन में खेती के लिए सहकारी संस्थाओं या अन्य बैंकों से ऋण लिया है। स्वैच्छिक बीमा कराने वालों की संख्या बेहद कम है, जिसके कारण बीमा कंपनी ने इनके लिए अंतिम तिथि नहीं बढ़ाई। स्वेच्छा से बीमा कराने वाले किसानों को केवल 14 अगस्त तक का समय दिया गया था।
ऋणी किसानों के लिए बीमा अनिवार्य
कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, अब तक करीब 1.14 लाख ऋणी किसानों ने फसल बीमा के लिए आवेदन किया है। इन किसानों की लगभग 2.54 लाख हेक्टेयर जमीन पर बोई गई खरीफ फसल का बीमा किया जा रहा है। नियमों के तहत, कृषि ऋण लेने वाले किसानों के लिए बीमा कराना आवश्यक होता है। नुकसान की स्थिति में बैंक ऋण वसूली बीमा क्लेम से करता है, इसलिए ऋणी किसान स्वतः बीमा योजना में शामिल हो जाते हैं। यही वजह है कि स्वैच्छिक बीमा की तुलना में ऋणी किसानों की संख्या कहीं ज्यादा है।
स्वैच्छिक बीमा में बेहद कम आवेदन
इसके विपरीत, स्वेच्छा से बीमा कराने वाले किसानों की ओर से केवल 7,400 आवेदन ही आए हैं। इन आवेदनों के जरिए करीब 4,500 हेक्टेयर भूमि पर बोई गई फसल का बीमा किया गया है। इस स्थिति से साफ है कि किसान बीमा योजना को लेकर उत्साहित नहीं हैं। कृषि विभाग का मानना है कि स्वेच्छा से बीमा कराने वालों की अरुचि के कारण ही उनकी तिथि नहीं बढ़ाई गई, जबकि ऋणी किसानों के लिए अंतिम तिथि अब 30 अगस्त कर दी गई है।
बीमा क्लेम की राशि बनी मुख्य समस्या
किसानों की उदासीनता का सबसे बड़ा कारण बीमा क्लेम की राशि है। किसानों को हुए वास्तविक नुकसान की तुलना में मिलने वाला मुआवजा बेहद कम होता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2024 के खरीफ सीजन में बीमा कराने वाले 29,029 किसानों को कुल 76 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान किया गया। औसतन प्रति किसान सिर्फ 2,622 रुपए ही मिले। वहीं, बीमा कराने के लिए किसानों को फसल बीमा राशि का लगभग 2% प्रीमियम के रूप में देना पड़ता है। इस असमानता के कारण किसान स्वेच्छा से बीमा कराने से कतराते हैं।
सोयाबीन की फसल सबसे ज्यादा बीमित
फसल बीमा में शामिल फसलों में सबसे अधिक हिस्सेदारी सोयाबीन की है। करीब 70 प्रतिशत बीमा आवेदन इसी फसल के लिए आए हैं। इसके बाद धान की फसल का स्थान आता है। वहीं, सबसे कम बीमा मक्का की फसल के लिए कराया गया है। अधिसूचना के मुताबिक, सोयाबीन बोने वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है, जिसके चलते यह फसल बीमा में सबसे आगे है।