बिहार में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बन गई है। मंगलवार को चली चुनावी जंग में देर रात को एनडीए ने अपनी जीत दर्ज कर बिहार में फिर से सरकार बनाने की राह पक्की कर ली। बिहार के 243 सीटों में एनडीए ने 125 सीटों में बढ़त प्राप्त कर बहुमत हासिल किया वहीँ दूसरी ओर महागठबंधन के खाते में 110 सीटें गई हैं।
तेजस्वी यादव सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने से मात्र कुछ सीटों से रह गए। तेजस्वी यादव ने अपनी रैलियों में उमड़ी भीड़ को वोटों में नहीं तब्दील कर पाए। ऐसे कौनसे महागठबधन के फैसले थे जिन्होंने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनांते बनाते छोड़ दिया।
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दागियों को टिकट और जंगल राज
इस पुरे विहार चुनाव में युवा नेता के तौर पर उभरे तेजस्वी यादव ने आरजेडी के खिलाफ जंगल राज का नैरैटिव सेट कर दिया। आरजेडी के दागी प्रत्याशियों की वजह से एनडीए के जंगल राज वाले दावे को बहुत मजबूती मिले। एनडीए के इस दावे बिहार की जनता के बीच संदेश गया कि अगर ऐसे लोग जीते तो जंगल राज वाला दावा सच साबित हो सकता है। तेजस्वी को उम्मीद थी की उनके नेतृत्व में आरजेडी पार्टी में बदलाव आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने फिर से अपने पुरे रवैये के जैसे चली और जमकर बाहुबलियों और उनके रिश्तेदारों को टिकट बांटे गए।
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औवेसी फैक्टर
बिहार में आरजेडी के मुख्य मतदाता के रूप में मुस्लिम समुदाय रहा। लेकिन इस बार के चुनाव में असदुद्दीन औवेसी की पार्टी ने महागठबंधन को करारा झटका दिया है। AIMIM पार्टी ने इस बार 20 उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमें 15 सीटों पर हार कर इस पार्टी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने से रोक दिए।
कांग्रेस कमजोर कड़ी
आरजेडी को कांग्रेस पार्टी का भरपूर साथ नहीं मिल पाया। उनका कांग्रेस के साथ किया गया गठबंधन गलत साबित हुआ। कांग्रेस पार्टी ने अपने 70 उम्मीदवार बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए उतारे थे लेकिन उनके आधे उम्मीदवार भी जीत दर्ज किये थे। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी ने भी कोई जोर नहीं लगाया और वो तेजस्वी के सहारे ही रहे। कांग्रेस का जीत प्रतिशत सिर्फ 20 फीसदी ही रहा जबकि आरजेडी के जीत का प्रतिशत 52.8 रहा।