नगरीय निकाय चुनाव में बड़ा बदलाव, अब जनता सीधे चुनेगी अध्यक्ष, शिवराज के फैसले को मोहन सरकार करेगी रिवर्स

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By Raj RathorePublished On: August 27, 2025

मध्य प्रदेश सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव करने का फैसला किया है। अब नगर पालिका और नगर परिषद चुनावों में भी जनता सीधे तौर पर अध्यक्ष का चुनाव कर सकेगी, जैसे कि नगर निगम के महापौर का चुनाव होता है। इसके लिए विधानसभा सत्र में नया विधेयक पेश किया जाएगा। जब तक यह व्यवस्था लागू नहीं हो जाती, तब तक मौजूदा अध्यक्षों को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाया नहीं जा सकेगा। सरकार अगली कैबिनेट बैठक में इसका अध्यादेश लाने की तैयारी कर रही है। साथ ही, अविश्वास प्रस्ताव की अवधि को तीन साल से बढ़ाकर साढ़े चार साल करने का भी प्रस्ताव है।


कैबिनेट बैठक में हुआ अहम फैसला

भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस मुद्दे पर गहन चर्चा हुई। बैठक में इस बात को लेकर सहमति बनी कि मौजूदा अप्रत्यक्ष प्रणाली से अध्यक्ष का चुनाव कराने में कई तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं। कई बार धन-बल और दबाव की राजनीति (प्रेशर पॉलिटिक्स) हावी हो जाती है, जिससे निकायों का माहौल बिगड़ता है और विकास कार्य रुक जाते हैं। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी माना कि यह व्यवस्था भ्रष्टाचार और कलह को बढ़ावा देती है, इसलिए अब सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाना जरूरी है।

क्यों पड़ी इस बदलाव की जरूरत

बीते कुछ समय से प्रदेश के कई निकायों में गुटबाजी और विवाद की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में देवरी नगर पालिका अध्यक्ष को हटाया गया था। अब शिवपुरी नगर पालिका में भी ज्यादातर भाजपा पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ खड़े हो गए हैं और अविश्वास प्रस्ताव लाने की चेतावनी दी है। पहले सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि 2 साल से बढ़ाकर 3 साल की थी, लेकिन समय पूरा होते ही विवाद फिर से सामने आ जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि मौजूदा व्यवस्था स्थिरता देने में असफल साबित हो रही है।

शिवराज सरकार ने बदली थी प्रणाली

गौरतलब है कि 2014 तक नगर पालिका और परिषद अध्यक्ष जनता के वोट से चुने जाते थे। लेकिन तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू कर दी थी। इसके तहत केवल चुने हुए पार्षद ही अध्यक्ष का चुनाव करते थे। हालांकि, इसके बाद से लगातार शिकायतें आने लगीं कि यह व्यवस्था पारदर्शी नहीं है और यहां दल-बदल व दबाव की राजनीति को बढ़ावा देती है।

कमलनाथ सरकार ने भी की थी कोशिश

बीच में जब प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता में आई, तब उन्होंने भी इस प्रणाली को बदलने का प्रयास किया था। लेकिन इससे पहले ही कांग्रेस सरकार गिर गई और यह बदलाव अधूरा रह गया। अब मौजूदा मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार ने इस व्यवस्था को पलटने का मन बना लिया है।