एक ऐसी जगह जहां फूलों से नहीं, पत्थरों से खेली जाती है ‘खूनी होली’, जानिए इस पर्व से जुड़ी हिंदू मान्यता

Simran Vaidya
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फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन 7 मार्च के दिन किया जाएगा और इसके अलगे दिन 8 मार्च को होली का पर्व देशभर में मनाया जाता है। होली पर लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं लेकिन देश के कुछ हिस्सों में होली से जुड़ी कुछ अजीबों-गरीब मान्यताएं हैं, जिनके विषय में सुनकर आप लोग भी दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे।

यहां खेलते हैं खूनी होली

300 साल पुरानी है परंपरा, होली के तीसरे दिन पुरुष खाली कर देते हैं गांव,  डंडे लेकर बाहर निकालती हैं महिलाएं | The tradition is 300 years old, on the  third day

 

राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में रहने वाले आदिवासी लोग बेहद ही खतरनाक होली मनाते हैं। इसे खूनी होली के नाम से भी जाना जाता है। होली के खास अवसर पर लोग जलते हुए अंगारे पर चलते हैं और इसके बाद दो अलग-अलग टोलियों में बंट जाते हैं। फिर ये दोनें टोली के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगते हैं। इस बीच बहुत से लोग जख्मी हो जाते हैं।ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों को इस बीच खून निकलता है, उनके आना वाला समय ठीक रहता है।

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60 फीट ऊंचे मचान पर झूला झूलने की है परंपरा

एक ऐसी जगह जहां फूलों से नहीं, पत्थरों से खेली जाती है 'खूनी होली', जानिए इस पर्व से जुड़ी हिंदू मान्यता

होली के खास अवसर पर सिवनी जिले के पांजरा गांव में एक अनोखी प्रथा मनाई जाती है। होलिका दहन के दूसरे दिन यहां पर मेघनाद मेले का आयोजन भी किया जाता है। मेघनाद के प्रतीक के रूप में यहां पर 60 फीट ऊंची मचान बनाई जाती है। ऐसा कहते हैं कि जिस व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, उन्हें उस चकरी के सिरे पर बांधकर झूले की तरह घूमाया जाता है। इसे देखकर अच्छे-खासों का सिर चकरा जाता है।

जलते अंगारों पर चलने की भी प्रथा है

Women, men and children walk barefoot on coals | होलिका दहन : अंगारों पर  नंगे पैर चलते हैं यहां महिला, पुरुष और बच्चे, नहीं जलते हैं एक के भी पैर |  Patrika News

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी क्षेत्र में होलिका दहन के अवसर पर लोग धधकते अंगारों पर चलते हैं। इसमें बच्चे, बूढ़े स्त्रियां सभी लोग शामिल होते हैं। यहां पर ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। इस परंपरा को लेकर मान्यता है कि इससे घर के सदस्यों पर किसी भी प्रकार की कोई कठिनाएं नहीं आती है। इस परंपरा में आजतक किसी को कभी गंभीर चोट नहीं लगी।

किया जाता है अग्नि से स्नान

माता का श्रृंगार, चुनरियां, धागे और पूजा सामग्री सब राख हो गए, प्रतिमा को  कुछ नहीं हुआ | Idana mata File Udaipur, Mother's make-up, chunaris, threads  and worship materials all turned to

मथुरा की होली तो जग जाहिर है। ऐसा कहते हैं कि यहां पर एक बेहद खतरनाक प्रथा भी मनाई जाती है। यहां फौलन गांव में होलिका दहन की रात को मंदिर के पंडित जी जलती हुई आग में से निकलते हैं। इस दृश्य को सोचकर भी भय लगता है। लेकिन इस परंपरा को निभाने में कभी किसी को नुकसान नहीं हुआ है।