मौंड़ा के चक्कर में छटी मोडी हो गई

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आनंद शर्मा
रविवारीय गपशप
फ़ोन पर आने वाले अनजान कॉल्स को अटेंड करना और चूक जाने पर कॉल्बैक करना मैंने अपने कलेक्टरों प्रभात पराशर और राकेश श्रीवास्तव से सीखा ,और इस आदत के कुलमिलाकर अच्छे परिणाम रहे । क्षेत्र की जानकारी सीधे मिलती रही और जरूरत पड़ने पर तुरंत कार्यवाही भी कर पाये , कई आकस्मिक आपदाओं के बारे में मैं समय पूर्व जान पाया और बार संवेदनशील खबरें समय से मिलने से मुसीबतों में पड़ने से बचा | कई बार तो हमारे एस.डी.एम. या तहसीलदार को भी वो खबर पता नहीं रहती थी , जो मैं उन्हें बताता था , दूसरा इस बात के कारण वे हमेशा सतर्क रहते कि साहब से कोई भी बात कर सकता है। लेकिन इसके कुछ मज़ेदार अनुभव भी रहे ।

ऐसी आदत से कई बार कुछ अजीब अनुरोधों को भी सुनना पड़ता था । विदिशा में जब मैं कलेक्टर था तो एक दिन सुबह सुबह छह बजे के आसपास एक फोन आया । मैंने फोन उठाया , दूसरी ओर जो सज्जन थे , वे बोले “ साब रात सेई हम दोनों मियां बीबी रो रय हैं “। मैं घबराया कि ऐसा क्या गजब हो गया | मैंने पूछा क्या बात हो गयी भाई ? दूसरी तरफ से आवाज़ आई “का बताएं साब छटवी मोड़ी हो गयी है “| मुझे कुछ गुस्सा आया मैंने कहा इतना परिवार क्यों बढ़ा रहे हो तो जबाब आया “मौड़ा के चक्कर में जा छटी मोड़ी हो गयी है “, मैंने उसे समझाते हुए कहा , लड़का लड़की सब बराबर होते हैं, अब तुरंत ऑपरेशन करवा लो | सज्जन बोले वो तो ठीक है पर आप लोग कहते रहते हो के बेटी बचाओ-बेटी बचाओ, हमारी इतनी बिटियाँ है तो सरकार कुछ देगी क्या ?

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इसी तरह राजगढ़ में पदस्थापना के दौरान रविवार की रात साढ़े-दस बजे के करीब मैंने ध्यान दिया कि मोबाइल में तीन मिस्ड कॉल थे | सामान्यतः रविवार के दिन, वह भी रात में कोई सामान्य जन फोन करता नहीं था | मैंने कॉल बैक किया तो उधर से जवाब मिला कि कलेक्टर साब बोल रहे हैं ? मैंने कहा जी हाँ, कहिये क्या बात है | वे सज्जन बोले , साब हमारे ग्राम पंचायत के मंत्री जी ने दो-दो औरतों से शादी कर रखी है और इस चक्कर में पंचायत के काम में ध्यान भी नहीं देते और कामों में भी बड़ी गड़बड़ी कर रखी है | मैंने कहा भाई, ये कोई समय है ऐसी चर्चा करने का ? काम में गड़बड़ी है तो शिकायत करो, जन सुनवाई में आओ, इतनी रात गए आप फोन लगा रहे हो | बोलने लगे अरे साब, हमने सोचा कि इस समय हम भी फ्री हैं और आप भी फ्री होगे, तो आराम से चर्चा हो जाएगी |

एक और मज़ेदार घटना तब की है जब मैं ग्वालियर में परिवहन विभाग में उपायुक्त के पद पर पदस्थ था | मेरे पास आईडिया का एक ऐसा सिम नंबर था , जो मुझसे पहले सम्भवतः किसी शराब ठेकेदार के पास था । इस नम्बर पर न जाने कहाँ-कहाँ से फोन आते थे , और विषय बड़े अजीब रहते , जैसे भाईसाब दारु की पेटी कहाँ भेजनी है, या बियर का स्टॉक खत्म हो गया है, जल्दी भेजो | मैं इन अवांछित कॉल्स से बुरी तरह परेशान हो चुका था , पर अनजान काल उठाने की आदत से मजबूर सुन कर रांग नम्बर बोलना ही पड़ता था ।

एक दिन सुबह साढ़े सात-आठ बजे मोबाइल की घंटी बजी , मैंने फोन उठाया तो आवाज़ आई, भैया क्षिप्रा नाके पे हमारी दारु की पेटी पुलिस वाले ने पकड़ ली है, क्या करूँ ? मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैंने ज़ब्त करते हुए कहा, करना क्या है, दो धक्का पुलिस वाले को और भागो लेके पेटी! उसने कहा सचमुच? आप सम्हाल लोगे ? मैंने कहा और क्या, मैं बैठा ही हूँ | भगवान जाने वहां क्या घटा होगा, लेकिन उस दिन के बाद दारू वाली पार्टी से सम्बंधित कॉल मुझे उस नंबर पर आने बंद हो गए |