घर-आँगन, द्वार-दहलीज पर पुराये मंगल चोक, गुड़ी संग लहराई भगवा पताकाएँ

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नितिनमोहन शर्मा। है, नूतन संवत्सर 2080… आपका सुस्वागतम। वंदन-अभिनंदन। आपका आगमन समूची श्रष्टि के लिए मंगलमय हो। समूची वसुंधरा धन धान्य से परिपूर्ण हो। प्रकृति हरी भरी हो। हर घर आँगन में खुशियाँ बरसे। जन-मन स्वस्थ रहें। आदि व्याधि से मुक्त हो। राष्ट्र वैभवशाली हो। मातृभूमि बलशाली हो। नेतृत्व निर्भीक हो और नागरिक कर्तव्यनिष्ठ। इन्ही मंगलकामनाओं के साथ ही नूतन संवत्सर आपका पुनश्च स्वागत, वंदन, अभिनंदन।

है, नूतन संवत्सर। आप आये तो समूची प्रकृति ने नव श्रंगार कर लिया हैं। कुदरत ने आपकी राह में नूतन पुष्प-पल्लव बिछा दिए हैं। खेत खलिहानों में सोने सी आभा के संग गेंहू की बालियाँ दमक रही हैं। नीम की कोमल कपोलों की गंध-सुगंध महक रही हैं। आम्रकुंजो पर फलों के राजा आकर विराज गए हैं। सुवासित-सुगन्धित बयार बह रही हैं। नील गगन पर दिनकर की दमक-चमक छाई हुई हैं। आपका आगमन जल से पूरित कलशों से सूर्यनारायण को अर्ध्य के साथ हो रहा हैं।

है, नूतन संवत्सर। आपके लिए घर-आँगन, द्वार-दहलीज पर चौक पुराये गए हैं। गेरू खड़िया के सुंदर मांडने उकेरे गए हैं। दहलीज़ हल्दी कुमकुम से लिपि गई हैं। अक्षत बिखेर दिए गए हैं। मुंडेर, अटारी और छज्जन पर गुढ़ी बंध गए हैं। भगवा पताकाएँ लहरा गई हैं। चहुँओर मंगलगान गूंज रहे हैं। सुहागनों का भाग-सुहाग सज संवर गया है और पूजन अर्चन कर रहा है। बाल गोपालो में भी नूतन परिधान धारण किये हैं। गुड़-धनिया-धानी संग मुंह मीठे हो रहे हैं। नीम की कोमल पत्ती और मिश्री मुंह मे वर्षभर की स्वस्थता की मिठास घोल रही हैं।

है, नूतन संवत्सर। आपके संग संग भगवती जगदम्बा का आगमन भी हो गया हैं। कुमकुम भरे कदमो के संग देवी ने घर घर सौभाग्य का वरदान बिखेर दिया हैं। चैत्र नवरात्र के साथ जगत जननी का पूजन अर्चन शुरू हो गया हैं। घर घर घट स्थापित हो गए हैं। ज्वारे सिंचित कर दिए गए हैं। देवी मंदिरों के शिखरो पर नूतन ध्वजा लहरा गई हैं। शप्तशती के स्वर वातावरण में गूँजने लगे हैं। देवी मंदिर जगमग हो उठे हैं। धूप की परवाह किये बगेर, बिन पदवेश नंगे कदम आपकी भक्ति में लीन हो चले हैं। नव दिवसीय, नवधा भक्ति की नवरात्र आ गई हैं।

है, नूतन संवत्सर। आप, अपने साथ कितनी अनुपम सौगातें लेकर आते है। आप आते है तो इस सनातन राष्ट्र का विक्रम संवत भी पुनः प्रतिष्ठित हो जाता हैं। गुड़ी पड़वा का पर्व साथ आता है और आती है चैत्र की नवरात्र। बनठन गणगौर भी आपके संग संग आती हैं। ब्रह्मा ने इस सकल श्रष्टि का निर्माण भी आज किया था और सतयुग का आगाज भी आज के ही दिन से हुआ। वर्ष प्रतिपदा के साथ अनेकानेक शुभ मंगल कारज का भी शंखनाद हो जाता हैं।

है नूतन संवत्सर। आप बुध राजा के संग आये हो। शुक्र आपके मंत्री हैं। गजकेसरी और बुधादित्य योग साथ लेकर आये हो। सबका शुभ मंगल करना। आपके वंदन, अभिनंदन के संग ये ही आपसे करबद्ध प्रार्थना।

युगांधर और नूतन संवत्सर

हिन्दू नववर्ष को लेकर एक दो दशक पहले तक ये स्थिति नही थी। जो आज इन्दौर में नजर आ रही है। मराठी भाषी परिवारों और कुछ सनातनी परम्परा वालो को छोड़ दो तो हिन्दू नववर्ष क्या है? किसे थी खबर? गुड़ी याद रहती और याद रहता गुड़ी पड़वा पर्व। पूरन पोली श्रीखंड याद रहता। लेकिन विक्रम संवत से नए साल की शुरुआत, “थर्टी फर्स्ट” के शोर में डूबी हुई थी। तब एक इस शहर के लिए एक अनाम सी संस्था युगांधर ने विक्रम संवत के अनुरूप हिन्दू नववर्ष मनाने का संकल्प लिया। दौर था कैलाश विजयवर्गीय के पहली बार महापौर बनने का। संस्था से जुड़े युवाओं ने इस संदर्भ में उनसे भी बात की। राजबाड़ा गणेश हाल में एक कार्यक्रम भी हुआ। फिर भगवा वंदनवार ओर स्टिकर से शुरुआत हुई। पहला स्टिकर तत्कालीन महापौर विजयवर्गीय की सफेद एम्बेसडर पर ही चस्पा कर समूचे शहर में हिन्दू नववर्ष को उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। शहर के प्रमुख चौराहों पर घण्टे घड़ियाल के शंखनाद के संग गुड़ धनिया का प्रसाद बांटकर आमजन को अहसास कराया गया कि आपका हमारा नया साल 31 दिसंबर-1 जनवरी नही, वर्ष प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा हैं। संस्था युगांधर की इस एकाकी और छोटी सी शुरुआत ने आज इस दिन विशेष का समूचा स्वरूप ही बदल दिया है। अब “थर्टी फर्स्ट” को पीछे धकेलते हुए नव संवत्सर चहुँओर छाया हैं। जन सामान्य से लेकर श्रेष्ठिवर्ग और नेतृत्व से लेकर सरकार तक इसे उत्सव का स्वरूप दे चुके है। संस्था आज भी कायम है लेकिन कभी श्रेय लेने आगे नही आई।