‘निराशा’ के विरुद्ध “आशा”!

Shivani Rathore
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निरुक्त भार्गव:

केंद्र सरकारें पिछले कई-कई वर्षों से लगातार ये कोशिश कर रहीं हैं कि देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन हों. विद्यार्थियों को उबाऊ और गैर-जरूरी पाठ्यक्रम पढ़ाने की बजाए अत्यंत उपयोगी और जीवन में रस भरने वाला सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान दिया जाए. ये विषय जिसकी मैं आज चर्चा कर रहा हूं, वो व्यापक बहस और फिर उसके निष्कर्षों को सही मायनों में कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर लागू करने की गुंजाइश छोड़ता है. इस तरह के सर्व-अपेक्षित और बहु-प्रतिक्षित सुधारात्मक कार्य कब किए जाएंगे, ये तो भविष्य के गर्भ में है, पर शैक्षणिक ढांचे और शिक्षा परिसरों के मौजूदा हालात बेहद शोचनीय हैं. ढर्रे पर चलनेवाली व्यवस्था ने जैसे जीवन्तता को ही लील लिया है! और, कोरोना संक्रमण ने मानों समूची शैक्षणिक व्यवस्था को ही चौपट कर दिया है!

बहरहाल, उज्जैन में हाल के कुछ घटनाक्रमों ने संकेत देना शुरू किए हैं कि भाषणों में थूक उड़ाने के बजाए यदि योजनाबद्ध तरीके से कुछ ठोस कार्य किए जाएं तो तस्वीर को बदला जा सकता है. इसकी एक झलक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और अश्विनी शोध संस्थान, महिदपुर के बीच 20 दिसम्बर 2020 को एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाने के दौरान मिली। इसके अंतर्गत इन दोनों ने शोध कार्य, क्रियान्वयन एवं शोधार्थियों के हितार्थ कार्य करने के लिए सहमति जताई है.

नवागत कुलपति अखिलेश कुमार पाण्डेय का इस अवसर पर दिया गया वक्तव्य एक तारीख बन गया. उन्होंने कहा, “विक्रम विश्वविद्यालाय के छात्र इंग्लैंड के बारे में पढ़ें और उज्जैन के बारे में अवगत न हों, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है?” घर बैठे पी.एचडी. और डी.लिट्. की उपाधि लेने वालों पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “जरूरी नहीं कि हम अन्तर्राष्ट्रीय विषय पर ही रिसर्च करें, हम लोकल प्रोब्लेम्स पर भी फोकस कर सकते हैं.”

मूलत: अयोध्या से जुड़े और जबलपुर में अपना करियर खपा देने वाले वनस्पतिशास्त्री प्रो पाण्डेय भली-भांति समझ गए हैं कि अति-प्राचीन काल से उज्जैन में पाताल से लगाकर आकाश तक हर तरह की विशिष्टता विद्यमान है, पर ये सब शैक्षणिक और भौतिक रूप से ट्रांसलेट नहीं हो सका है. इन्हीं जड़ताओं पर अब वे पूरी तैयारी के साथ प्रहार करना चाहते हैं: (1) विक्रम विश्वविद्यालय में श्रीरामचरित मानस एवं महाभारत जैसे प्राचीन ग्रन्थों पर विज्ञान और संस्कृत प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे; (2) विद्यार्थियों को क्षेत्रीय एवं स्थानीय महत्व के रिसर्च प्रोजेक्ट्स असाइन किए जाएंगे; (3) मालवा की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए परफोर्मिंग आर्ट्स डिपार्टमेंट अगले जुलाई से काम करना शुरू कर देगा; (4) होटल मैनेजमेंट एवं कैटरिंग टेक्नोलॉजी पर कोर्सेस शुरू करेंगे जिसमें सिर्फ मालवा रीजनल को प्रमोट किया जाएगा; (5) मॉडर्न कैंटीन भी विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित करने जा रहे हैं, जो पूर्व छात्रों के द्वारा संचालित किया जाएगा और उसमें लजीज मालवी रिफ्रेशमेंट परोसा जाएगा तथा (6) विक्रम विश्वविद्यालय के म्यूजियम में “कॉफ़ी विथ म्यूजियम” कार्यक्रम शुरू करेंगे: उज्जैन में प्रतिदिन आने वाले लोगों को यहां आमंत्रित किया जाएगा. आगंतुकों को यहां विश्व की दुर्लभ पुरा-संपदाओं को देखकर और यहां का इतिहास जाकर आश्चर्य होगा.